कोरोना ने उजागर की निरंकुश शासकों की नाकामयाबी, जनता का दमन कर अपनी ताकत बढ़ाने में लगे आज के ‘राजा’
भारत में लॉकडाउन में मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते रहे और सरकार कोरोना के बहाने विरोधी स्वर कुचलती रही। यही नहीं, छुटभैये नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक कोरोना पर अफवाह फैलाते रहे। अब प्रश्न है कि देश में कोरोना से लॉकडाउन का कोई रिश्ता था भी या नहीं?
कोविड-19 वायरस ने दुनिया भर की निरंकुश, दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी सरकारों को बेनकाब कर दिया है। अमेरिका, भारत, ब्राजील, रूस, मिस्र, फिलीपींस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, मेक्सिको जैसे देश इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और इन सभी देशों में घोषित तौर पर दक्षिणपंथी और कट्टर राष्ट्रवादी सरकारें हैं। इन सभी देशों ने जनता के दमन, दुनिया में दिखावा और आंकड़ों की बाजीगरी के दम पर इस महामारी से निपटने का दिखावा किया, जैसा कि ऐसी सरकारें दूसरी समस्याओं के लिए भी करती हैं। इनमें से अधिकतर सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी से जनता को बरगलाती रहीं और जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ करती रहीं।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट उमा कम्भाम्पति के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति पुतिन कोविड-19 के शुरुआती दौर में इस महामारी के प्रसार का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ते रहे और अब जब स्थिति नियंत्रण से बाहर है, तब इसके बारे में चुप्पी साध ली है।
कोविड-19 के विश्वव्यापी विस्तार के आरंभिक चरण में चीन और रूस जैसे देशों ने स्पष्ट तौर पर यह भी कहा था कि वामपंथी निरंकुश शासक इस महामारी का नियंत्रण बेहतर तरीके से करने में सक्षम हैं। हमारे देश में भी शुरुआत में जब कोरोना के कम मामले सामने आ रहे थे, तब बिना किसी विस्तृत योजना के ही सख्त लॉकडाउन लगा दिया गया, मोमबत्तियां जलीं, दिये जले और थालियां पीटी गईं।
लेकिन जब भारत में जनता लॉकडाउन से बेहाल थी, उसी बीच में दिल्ली दंगों की रिपोर्ट आई। जैसा कि अनुमान था, इसमें बीजेपी के नेताओं को सरकार के इशारे पर छोड़ दिया गया और जितने भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोधी थे, सबको नामित कर दिया गया। यही न्यू इंडिया का असली और सबसे भद्दा चेहरा था, जिसे लॉकडाउन की आड़ में सरकार ने प्रस्तुत किया। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लगातार चलता आन्दोलन भी लॉकडाउन ने रोक दिया।
मजदूर वर्ग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलता रहा और सरकार कोविड-19 की आड़ में विरोधी स्वर कुचलती रही। यही नहीं, कोविड-19 से संबंधित अफवाह भी छुटभैये नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक फैलाते रहे। अब तो कोरोना के मामले देश में प्रतिदिन एक लाख के लगभग उजागर हो रहे हैं और लगभग 1100 लोग रोजाना अपनी जान गंवा रहे हैं, पर देश अनलॉक हो चुका है और बीजेपी नेता रैलियां आयोजित कर रहे हैं और कोविड 19 के जाने की सूचना दे रहे हैं। अब प्रश्न यही है कि हमारे देश में क्या कोविड 19 से लॉकडाउन का कोई रिश्ता था भी या नहीं?
भारत और अमेरिका ऐसे दो ही देश हैं, जो कोविड-19 के लगातार बढ़ते मामलों के बीच भी बाजार से लेकर स्कूलों को खोलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ इजरायल में हाल ही में जब कोरोना संक्रमण के मामले दोबारा बढ़ने लगे तो फिर से देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया है। न्यूजीलैंड समेत अनेक देशों में जिस शहर में कोरोना के मामले दोबारा बढ़ रहे हैं, उन शहरों में भी लॉकडाउन लगाया जा रहा है। हमारे देश में बढ़ते मामलों के साथ लॉकडाउन तेजी से हटाया जा रहा है।
15 सितंबर तक दुनिया में कोविड-19 के कुल 2,90,93,851 मामले थे और इस कारण 9,22,853 मौतें दर्ज की गई थीं। इस समय तक दुनिया में हरेक दिन कोविड-19 के 1,96,017 मामले सामने आ रहे थे और 3,376 मौतें हो रहीं थीं। पिछले दो सप्ताह में कोरोना के कुल मामले और मौत के आंकड़े में भारत दुनिया के किसी भी देश से बहुत आगे है। इस दौरान भारत में 10,76,904 मामले और 13.389 मौतें दर्ज की गईं। दूसरे स्थान पर अमेरिका है, जहां पिछले दो सप्ताह में 4,79,812 मामले आए और 9,829 व्यक्तियों की मौत हुई। इसके नाद ब्राजील का स्थान है, जहां के आंकड़े क्रमशः 3,94,679 और 9,410 हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है कि मोदी सरकार कोविड-19 से निपटने में लगातार नाकाम रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुखिया और नॉर्वे की पूर्व प्रधानमंत्री ग्रो हार्लेम ब्रंटलैंड की संस्था ग्लोबल प्रीपेयर्डनेस मोनिटरिंग बोर्ड ने पिछले वर्ष ही एक रिपोर्ट प्रकाशित कर चेताया था कि दुनिया किसी भी विश्वव्यापी महामारी के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि अगली महामारी सांस संबंधी पैथोजेन से पनपेगी, पर पूरी दुनिया ने इस चेतावनी को अनदेखा कर दिया। इसी संस्था की पिछले सप्ताह प्रकाशित दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया कोविड-19 से निपटने के नाम पर अब तक लगभग 11 खरब डॉलर खर्च कर चुकी है।
दूसरी तरफ यदि दुनिया केवल महामारी से लोगों को बचाना चाहती तो इसके लिए महज 5 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष खर्च करने की अगले पांच वर्षों तक आवश्यकता होगी, बशर्ते मुद्दा केवल महामारी से ईमानदारी से लड़ना हो। पर, समस्या यह है कि सरकारें अभी तक इस सन्दर्भ में गंभीर रवैया नहीं अपना रही हैं, यही कारण है कि कोविड-19 के जनवरी में आगमन के बाद भी दुनिया में एक दिन में सबसे अधिक मौतें, 307030, पिछले 13 सितंबर को दर्ज की गई। इससे पहले का रिकॉर्ड 6 सितंबर का था जब 306857 लोगों की मृत्यु हुई थी। इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि पूरे 9 महीने के बाद भी दुनिया महामारी के लिए तैयार नहीं है।
अमेरिका कोविड-19 के मामलों में और इससे होने वाली मृत्यु के सन्दर्भ में पहले स्थान पर है और राष्ट्रपति ट्रंप लगातार ऐसे वक्तव्य देते हैं, मानो उन्हें इस वायरस के बारे में और इसकी भयावहता के बारे में कोई जानकारी ही न हो। हाल में ही प्रसिद्ध पत्रकार बॉब वुडवर्ड की ट्रंप से संबंधित एक पुस्तक- ‘रेज’ प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक का आधार ट्रंप से नवंबर 2019 से जुलाई 2020 के बीच लिए गए लगभग 19 इंटरव्यू हैं। इस पुस्तक के अनुसार फरवरी 2020 में दिए गए इंटरव्यू में ही ट्रंप ने बताया था कि कोरोना वायरस बहुत खतरनाक और घातक है और यह हवा से भी फैलता है, इसलिए इसके प्रसार को रोकना लगभग असंभव है।
जाहिर है ट्रंप भले ही इसे सामान्य फ्लू बताते रहे हों, पर इसके बारे में उन्हें अच्छी तरह से पता था, फिर भी इसकी रोकथाम के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया और दूसरी तरफ इसके विज्ञान के अनुसार इसकी रोकथाम के लिए कदम सुझाने वाले हरेक सलाहकार को उन्होंने बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद जब ट्रंप से इस बारे में पूछा गया तब उनका जवाब था, मैं नहीं चाहता था कि देश में कोई डर का माहौल बने और अफरा तफरी मचे।
आश्चर्य यह है कि ट्रंप जब जनता में अफरातफरी नहीं फैलाना चाहते थे और डराना नहीं चाहते थे तब देश में 2 लाख से भी अधिक मौतें कोविड 19 से हो गईं। जो बिडेन अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप को टक्कर दे रहे हैं, उन्होंने कोविड-19 को लेकर ट्रंप प्रशासन द्वारा की गई लापरवाही को आपराधिक भूल बताया है। आश्चर्य है कि इतने तथ्यों के बाद भी ट्रंप की कोविड-19 की रोकथाम में कोई रूचि नहीं है और वे हरेक चुनावी दौरे पर कोविड-19 से संबंधित अपनी ही सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और अपने समर्थकों को भी यही संदेश दे रहे हैं।
ट्रंपम्प जैसा ही व्यवहार ब्राजील और मेक्सिको के राष्ट्रपतियों का भी है। ब्राजील के राष्ट्रपति कोरोना की आड़ में निरंकुश शासन चला रहे हैं, जबकि इससे मरने वालों की संख्या के सन्दर्भ में इसका स्थान अमेरिका के बाद दूसरा है और अब वहां लाशों को दफन करने के लिए नयी जगहें तलाश करनी पड़ रही हैं। मेक्सिको के राष्ट्रपति भी ट्रंप या ब्राजील के राष्ट्रपति की तरह मास्क नहीं लगाते हैं और दैनिक प्रेस ब्रीफिंग, जो कोविड-19 के नाम पर आयोजित की जाती है, में इसके बारे में बोलने के बदले विपक्षियों पर बरसते हैं।
जाहिर है, कुछ यूरोपीय देशों और न्यूजीलैंड को छोड़कर अधिकतर देशों में कोविड-19 की महामारी में सरकारों ने जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया है और इस आपदा में भी निरंकुश शासक अपनी ताकत बढ़ाने और जनता के दमन में मशगूल हैं।
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