मोदी सरकार के ‘लेबर कोड’ के विरोध में निर्माण मजदूर, लंबी लड़ाई के बाद हासिल अधिकारों को कुचले जाने की आशंका
निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति ने सरकार से मांग की है कि प्रस्तावित लेबर कोड रद्द किया जाए, वर्तमान कानूनों को सुदृढ़ किया जाए और निर्माण मजदूरों के कानूनों को सुप्रीम कोर्ट के साल 2018 के फैसले के अनुसार चलने दिया जाएगा।
देश के करोड़ों निर्माण मजदूरों में बहुत कठिन और लंबे संघर्ष से प्राप्त अधिकार छिनने को लेकर गहरी चिंता और परेशानी का आलम है। ये अधिकार उन्हें साल 1996 में बनाए गए दो कानूनों के रूप में प्राप्त हुए थे। साल 1996 में संसद ने निर्माण मजदूरों की बहुपक्षीय भलाई के लिए दो महत्वपूर्ण कानून पास किए- ‘भवन व निर्माण मजदूर (रोजगार व सेवा स्थितियों का नियमन) अधिनियम-1996’ और ‘भवन तथा अन्य निर्माण मजदूर कल्याण उपकर अधिनियम- 1996’।
विभिन्न केन्द्रीय श्रमिक संगठनों की भागेदारी से निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति ने 12 साल तक सतत् प्रयास किया था और तब जाकर यह अधिनियम बने थे। अन्य प्रावधानों के अतिरिक्त इन कानूनों में यह व्यवस्था है कि जो भी नया निर्माण कार्य हो, उसकी कुल लागत के एक प्रतिशत का उपकर लगाया जाए। इस तरह जो धनराशि उपलब्ध हो, उसे निर्माण मजदूरों के कल्याण बोर्ड में जमा किया जाए और इस धन राशि से निर्माण मजदूरों की भलाई के बहुपक्षीय कार्य किए जाएं, जैसे- पेंशन, दुर्घटना के वक्त सहायता, आवास कर्ज, बीमा, मात्तृत्व सहायता, बच्चों की शिक्षा आदि।
यह तय हुआ था कि इन दो कानूनों के अन्तर्गत विभिन्न निर्माण मजदूरों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा और उन्हें उपकर से प्राप्त धन राशि से सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न लाभ उपलब्ध करवाए जाएंगे। यह कानून इस तरह का है कि जैसे-जैसे निर्माण कार्य बढ़ेंगे या महंगाई बढ़ेगी, मजदूरों की भलाई के लिए उपकर के माध्यम से जमा पैसा भी अपने आप बढ़ता रहेगा। इन कानूनों के लागू होने के बाद भारत के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 36 भवन व निर्माण मजदूर बोर्डों की स्थापना की गई। इनके माध्यम से मजदूरों का पंजीकरण कर अनेक मजदूरों को पेंशन और स्वास्थ्य सेवा सहायता के साथ उनके बच्चों को छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई जाने लगी।
हालांकि इसकी प्रगति कुछ धीमी थी, इसलिए श्रमिक संगठनों ने अदालती कार्यवाही कर इन कानूनों को अधिक मुस्तैदी से आगे ले जाने के लिए न्यायालय से आदेश प्राप्त किए। इस संदर्भ में राष्ट्रीय अभियान समिति- निर्माण मजदूर की याचिका पर सर्वोच्च न्यायलय का साल 2018 का फैसला विशेष रूप से उम्मीद बंधाने वाला था।
लेकिन हाल में वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा चार लेबर कोड में 44 श्रमिक कानून समाहित करने के फैसले के कारण निर्माण मजदूरों की हकदारी के यह दोनों अहम कानून संकटग्रस्त हो गए हैं। इसको लेकर एक बार फिर मजदूर संगठन एकजुट हो रहे हैं। राष्ट्रीय अभियान समिति ने अपने 2 दिसंबर 2019 के ज्ञापन में निर्माण मजदूरों को कहा है, “हम, देश के दस करोड़ निर्माण मजदूर चार लेबर कोड का विरोध करते हैं, जिससे निर्माण मजदूरों के 1996 के दोनों कानूनों का अन्त हो जाएगा। ये कानून न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर की अध्यक्षता में निर्माण मजदूरों के तीस साल लंबे अभियान का नतीजा हैं।”
अभियान ने कहा, “निर्माण मजदूरों के हक से जुड़े 1996 के कानूनों के खत्म होने से देश में कार्यरत 36 निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड भी बंद हो जाएंगे। अब तक पंजीकृत लगभग चार करोड़ निर्माण मजदूरों के पंजीकरण भी रद्द हो जाएंगे और लाखों निर्माण मजदूरों को मिल रही पेंशन भी बंद हो जाएगी। साथ ही इन कानूनों के तहत मजदूरों को मिलने वाले अन्य सभी हित-लाभ भी बंद हो जाएंगे। हम निर्माण मजदूर मांग करते हैं कि प्रस्तावित लेबर कोड रद्द किए जाएं, वर्तमान कानूनों को सुदृढ़ किया जाए और निर्माण मजदूरों के कानूनों को राष्ट्रीय अभियान समिति (निर्माण मजदूर) की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के फैसले के अनुसार चलने दिया जाएगा।”
इस ज्ञापन में विस्तार से बताया गया है कि जो बदलाव मोदी सरकार करने जा रही है उसमें क्या समस्या है। ज्ञापन के अनुसार- “निर्माण मजदूरों के लिए संहिताओं (कोड) में प्रस्तावित मजदूरों के योगदान पर आधारित सामाजिक सुरक्षा समुचित व्यवस्था नहीं है। हमें सामाजिक सुरक्षा अपने कल्याण बोर्डों से पहले ही मिली हुई है और बोर्ड के पास निर्माण उद्योग पर सेस लगाकर और हमारे योगदान/पंजीकरण फीस के रूप में कोष एकत्र करने की समुचित व्यवस्था है। हममें से अधिकांश निर्माण मजदूरों को मुश्किल से महीने में पंद्रह दिन का काम मिलता है और हम मासिक न्यूनतम मजदूरी की चौथाई मजदूरी ही कमा पाते हैं। हमें यह बिल्कुल ठीक नहीं लगता कि हमें अपनी मासिक मजदूरी का 12.5 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक सामाजिक सुरक्षा फंड के लिए योगदान देना पड़ेगा।”
ज्ञापन में आगे कहा गया है कि “निर्माण मजदूरों के अधिकार के लिए आए 1996 के कानूनों द्वारा सामाजिक सुरक्षा के लिए कुल निर्माण की लागत पर एक से दो प्रतिशत सेस एकत्र करना ही सामाजिक सुरक्षा के कोष के लिए धन इकट्ठा करने का सबसे अच्छा रास्ता है। तीस हजार करोड़ रुपए के सेस फंड और उस पर कमाए गए उससे कहीं ज्यादा ब्याज का कहीं और इस्तेमाल करने का प्रस्ताव बिल्कुल गैरकानूनी है।”
निर्माण मजदूरों की इन चिन्ताओं को देखते हुए उनकी न्यायसंगत मांगों को व्यापक समर्थन मिलना चाहिए।
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