कांग्रेस महाधिवेशन: बीजेपी के विभाजनकारी एजेंडे का कांग्रेस कैसे करे मुकाबला? जानिए क्या कहते हैं तुषार गांधी!
‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने लोगों के घावों पर मरहम लगाने की प्रक्रिया शुरू की है, ऐसी ही प्रक्रिया बिहार के दंगा प्रभावित जिलों और बंगाल के नोआखली में गांधी की यात्रा की याद दिलाती है। नफरत के खिलाफ बोलने और प्यार तथा एकता का संदेश फैलाना जारी रहना चाहिए।
देश की माटी के स्वभाव और इसकी संस्कृति के उलट बीजेपी और आपएसएस ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत देश पर इकरंगी संस्कृति थोप दी है। इसकी झलक समाज से लेकर सत्ता, हर जगह दिख रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस इस आंधी का रुख मोड़ सकती है? छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित कांग्रेस के 85वें पूर्ण अधिवेशन से पहले हमने चंद बुद्धिजीवियों-विचारकों से पूछा कि उन्हें आने वाला समय कैसा दिखता है और मौजूदा चुनौतियों के मद्देनजर कांग्रेस को क्या करना चाहिए। हमने कुछ चुनिंदा सवाल उनके सामने रखे। सबसे पहले जानिए जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी का इन सवालों पर क्या कहना है:
‘डरो मत’ हो अब कांग्रेस का नारा
सवाल - ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से कांग्रेस को कुछ मजबूती जरूर मिली है। अब सवाल यह उठता है कि इस सकारात्मक घटनाक्रम की बुनियाद पर वह एक बुलंद इमारत कैसे बना सकती है?
तुषार गांधी : भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस और बीजेपी के अंतर को बड़ी स्पष्टता के साथ लोगों के सामने रख दिया। जब प्रधानमंत्री मोदी देश में शहरों का दौरा करते हैं या फिर विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की अगवानी करते हैं, तो रास्ते में पड़ने वाली झुग्गियों की गंदगी पर्दे और ऊंची दीवारों के पीछे छिपा दी जाती है। लगता है कि गरीबी उन्हें शर्मिंदा कर देती है। इसके उलट राहुल गांधी ने गरीबों को गले लगाया, उनके पास गए, धैर्यपूर्वक उनकी बात सुनी और उनके दुख को समझा। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने लोगों के घावों पर मरहम लगाने की प्रक्रिया शुरू की है, एक ऐसी प्रक्रिया जो बिहार के दंगा प्रभावित जिलों और बंगाल के नोआखली में महात्मा गांधी की यात्रा की याद दिलाती है। नफरत के खिलाफ बोलने और प्यार तथा एकता का संदेश फैलाना जारी रहना चाहिए।
यात्रा ने यह भी साफ कर दिया है कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई सड़कों पर लड़नी होगी। संघर्ष के लिए तैयार होना होगा। कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं को डंडे खाने और खून बहाने के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा।
पहली पंक्ति में हो कांग्रेस के संगठन
सवाल - पार्टी का भला चाहने वाले तमाम आलोचक कहते हैं कि पार्टी में संगठन के स्तर पर नई जान फूंकने की जरूरत है। यह कैसे हो?
तुषार गांधी - मैंने हमेशा महसूस किया है कि कलफदार, बेदाग खादी पहने कांग्रेस के नेता उन्हीं आम लोगों की तकलीफदेह हकीकत से कटे हुए दिखते हैं जिनकी वे नुमाइंदगी करते हैं। उनका पहनावा जैसे लोगों से उनकी दूरी को साबित करता है। ये नेता जिस तरह बाहर निकलते हैं, उस तरह उन्हें नहीं निकलना चाहिए। कलफदार कुर्ते से बेहतर है मुड़े-चुड़े कपड़े। इससे कम-से-कम यह संदेश तो जाता है कि वे भी आम कार्यकर्ता की तरह हैं और उन्हें अपने हाथ गंदे करने में कोई गुरेज नहीं। प्रतीकवाद? शायद…, लेकिन यह जरूरी है। महिला कांग्रेस, एनएसयूआई, युवा कांग्रेस और सेवा दल को कांग्रेस की सबसे आगे की पंक्ति में रहकर लोगों की लड़ाई लड़ने वाले संगठन बनना चाहिए। इसमें फोकस और जवाबदेही एकदम साफ-साफ तय होनी चाहिए। उन्हें लोगों के साथ संपर्क का पहला बिंदु बनना चाहिए, लोगों के मुद्दों को उठाना चाहिए और उनके लिए संघर्ष करना चाहिए। पहले हर गांव में सेवादल की मौजूदगी थी। इन्हीं संगठनों को चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहिए।
बाकी विपक्षी दलों को जगह दे कांग्रेस
सवाल - क्या आपको लगता है कि 2024 के आम चुनावों के लिए विपक्ष एकजुट हो रहा है? क्या कांग्रेस ऐसी विपक्षी एकजुटता के केद्र में हो सकती है?
वैचारिक और ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाली राष्ट्रीय पार्टी रही है। यह क्षेत्रीय हितों को राष्ट्रीय हित से ऊपर नहीं रखती और उसे अपने इस रुख से कभी समझौता भी नहीं करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को विपक्ष के बड़े नेताओं के लिए अपने यहां जगह बनानी चाहिए, उनके अहं एवं महत्वाकांक्षाओं का ध्यान रखना चाहिए।
जोर-शोर से उठे राहुल गांधी का 'डरो मत' नारा
सवाल - बीजेपी के विभाजनकारी एजेंडे का कांग्रेस कैसे मुकाबले करे?
तुषार गांधी - ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में जिस तरह का प्रेम, सदभाव और समावेशी भाव दिखा, उसका मुकाबला करने के लिए संघ और नफरत फैलाने वाले उसके नेताओं के पास कुछ भी नहीं। लेकिन कांग्रेस इस यात्रा से सृजित सदभावना का फायदा नहीं उठा सकती अगर वह नफरत, पूर्वाग्रह और लोगों को बांटने वाले बयानों की लगातार निंदा करने में विफल रहती है, चाहे ऐसे बयान दोस्तों के हों या फिर दुश्मनों के। राहुल गांधी का ‘डरो मत!’ और ‘इंकलाब जिंदाबाद!’ पार्टी का नारा बनना चाहिए।
सवाल - क्या कल्याणवादी होने के साथ-साथ महत्वाकांक्षी होना संभव है? देश के लिए कांग्रेस का वैकल्पिक एजेंडा क्या होना चाहिए?
तुषार गांधी - असमानता की गहरी खाई को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि भारत कभी भी कल्याणकारी राज्य के मॉडल को पूरी तरह से खारिज नहीं कर सकता। ज्यादातर लोगों के पास अब भी गुणवत्तापूर्ण, सस्ती स्वास्थ्य सेवा की कमी है। भारत का भविष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर निर्भर करता है और इसका गिरता स्तर गंभीर चिंता का विषय है। निजी क्षेत्र का विकास हुआ है लेकिन उसने बढ़ते बोझ को उठाने और स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करने में कम ही रुचि दिखाई है। न ही यह स्थिर रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती पर खरा उतरा है। जबकि कांग्रेस भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण और वैकल्पिक कार्ययोजना तैयार करने के लिए तैयार है (जैसा कि उसके 2019 के चुनावी घोषणापत्र और राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने दिखाया है), पार्टी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पार्टी के प्रति वफादारी नेताओं के प्रति वफादारी से ऊपर हो।
(तुषार गांधी लेट्स किल गांधी के लेखक हैं। वे महात्मा गांधी के प्रपौत्र हैं।)
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