चीन कोरोना के कहर से हलकान, लेकिन भारत में घबराने की जरूरत नहीं, बस सावधानी जरूरी
इस बार भी जनवरी, 2020 जैसी हालत है जब तीन महाद्वीपों और ऑस्ट्रेलिया के कई देशों में वायरस के साथ महामारी के स्पष्ट लक्षण दिख रहे थे लेकिन डब्ल्यूएचओ ने मार्च के दूसरे हफ्ते में जाकर महामारी की घोषणा की। तब भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया भी कमजोर रही थी।
हम 2023 में आ गए हैं लेकिन लगता है कि नए साल में भी महामारी हमारी पीछा नहीं छोड़ने वाली। अगर दुनिया ने यह मान रखा था कि 2019 के बाद 2023 कोविड से मुक्त पहला साल होगा, तो चीन का रुख करना बेहतर होगा। चीन के हालात साफ बता रहे हैं कि फिलहाल तो इसकी संभावना नहीं है।
2019 के अंत में चीन से ही यह सब शुरू हुआ लेकिन महामारी की असली तस्वीर कभी भी दुनिया के साथ पूरी तरह साझा नहीं की गई। बताया गया कि 2019 की अंतिम तिमाही के दौरान इटली में सार्स-सीओवी-2 (तब इसे सिर्फ नोवल कोरोनावायरस कहा जाता था) का संक्रमण शुरू हुआ और जनवरी-फरवरी, 2020 में आरटी-पीसीआर परीक्षण उपलब्ध होने के बाद ही इसका पता चल सका। वायरस की उत्पत्ति और इसके समय-क्रम के बारे में अब भी ठीक-ठीक जानकारी नहीं। भू-राजनीतिक चुनौती यह थी कि चीन में सुराग की तलाश कर रहे जांचकर्ताओं के लिए कई दरवाजे बंद थे।
एक बार फिर, 2022 की इस सर्दी में चीन जानकारी के साथ लुका-छिपी का खेल खेल रहा है। वर्ल्डोमीटर (सरकार द्वारा जारी डेटा के आधार पर) ने नवंबर-दिसंबर के दौरान एक लहर दिखाई जो दिसंबर के दूसरे सप्ताह में चरम पर पहुंच गई और रोजाना केवल 4,000 मामले कम हो रहे थे। क्रिसमस तक रोजाना ठीक होने वाले मामले तेजी से गिरकर 3,000 तक जा पहुंचे और 26 दिसंबर को इसका स्तर 3,000 से कुछ ही ऊपर रहा।
अन्य स्रोतों, खास तौर पर विदेशी समाचार एजेंसियों ने पूरे चीन में महामारी फैलने की सूचना दी है और बीजिंग और ग्वांगडोंग को सबसे बुरी तरह प्रभावित इलाके कहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने क्रिसमस के दिन रिपोर्ट दी: ‘जो तस्वीर सामने आ रही है, उसमें वायरस जंगल की आग की तरह फैल रहा है।’ अभी जो संक्रमण देखने को मिल रहा है, वह ज्यादातर ओमिक्रॉन बीएफ-7 है जो इससे पहले भारत के कुछ इलाकों में पाया गया था।
दुर्भाग्य से, डब्ल्यूएचओ एक बार फिर इस प्रकोप के बारे में दुनिया का नेतृत्व करने में विफल रहा है। इस बार भी जनवरी, 2020 जैसी हालत ही दिख रही है जब तीन महाद्वीपों और ऑस्ट्रेलिया के कई देशों में वायरस के साथ महामारी के स्पष्ट लक्षण दिख रहे थे लेकिन डब्ल्यूएचओ ने मार्च के दूसरे सप्ताह में जाकर महामारी की घोषणा की।
तब भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया भी कमजोर रही। कई मौतों को दर्ज ही नहीं किया गया था। इसलिए इस बार भारत चिंतित है और यह बात प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठकों और चीन से एक और वायरस को घुसने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों से पता भी चलता है।
भारत में कोविड-19 की तीन लहरें आ चुकी हैं- पहली 2020 में दस महीने तक रही, दूसरी लहर 2021 में मार्च-जुलाई से शुरू होकर करीब पांच महीने तक रही जो डेल्टा वेरिएंट के कारण थी और फिर 2022 के जनवरी-फरवरी में तीसरी लहर आई जो ओमिक्रॉन वैरिएंट के कारण थी। ओमिक्रॉन वेरिएंट का प्रसार अनुमानों के विपरीत रहा है। इसके कई सब-वेरिएंट्स आए और इस दौरान लोगों को बार-बार संक्रमित होते भी देखा गया। हम पहले ही बीएफ-7 का सब-वेरिएंट देख चुके हैं। तो, भारत को क्या डरना चाहिए? सच है कि सार्स-सीओवी-2 का प्रसार महामारीविदों के अनुमानों से अलग रहा है। और आज की स्थिति में सावधानी ही एकमात्र उपाय है, घबराने की जरूरत नहीं।
पूरे तथ्य के सामने आने में अभी समय लगेगा। लेकिन हम जानते हैं कि 2000 की शुरुआत में वुहान में कठोर लॉकडाउन लगाया गया था। जाहिर है, वे एक ऐसी विनाशकारी लहर का सामना कर रहे थे जो तेजी से फैल रही थी। लॉकडाउन की तैयारी करते हुए उन्होंने विदेशियों को वहां से निकलने दिया और ऐसे ही इस वायरस का भारत में प्रकोप हुआ था। तब जनवरी, 2020 में केरल लौटने वाले मेडिकल छात्रों के साथ वायरस के यहां आने का अनुमान जताया जाता है।मार्च में जैसे ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित की, भारत ने कठोर लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
चीन ने एक ओर तो अपने यहां वायरस की रोकथाम के बड़े कड़े इंतजाम किए लेकिन वह दुनिया को यही संदेश देता रहा कि वहां सब ठीक है। चीन में 2021 का शीतकालीन ओलंपिक भी हुआ और तब वहां जीरो कोविड पॉलिसी लागू थी। कुल मिलाकर, 2020 से लेकर 2022 की अंतिम तिमाही तक चीन की बड़ी आबादी एक तरह से संक्रमण और बीमारी से बची हुई थी।लेकिन चीन ने अपने अनुभवों से यही सीखा है कि बीएफ-7 के संक्रमण को कोई नहीं रोक सकता। उनके स्वदेशी टीके भी कम प्रभावकारी निकले। उन्होंने जो मृत-वायरस टीका विकसित किया, उससे अच्छा भारत का टीका रहा जो रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। अगर दोबारा संक्रमण हो जाए तो इस तरह का टीका संक्रमण के गंभीर नुकसान से बचाने में सहायक होता है।
जीरो-कोविड नीति के तहत पहले किए गए संक्रमण-रोकथाम हस्तक्षेपों के कारण चीन की एक बड़ी आबादी प्रतिरक्षा के मामले में अछूता रह गई। अब जो चीन के लाखों लोग बीएफ-7 से संक्रमित हो रहे हैं, इसके पीछे यही सबसे बड़ा कारण है। जिन लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई हो, वैसी आबादी के लिए ओमिक्रॉन जानलेवा नहीं लेकिन बुजुर्गों और गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए जरूर यह घातक है।
फिलहाल तो भारत के लिए यही कहा जा सकता है कि यहां लोग चीनियों की तरह असुरक्षित नहीं। हमें जितना झेलना था, 2020-2021 के दौरान झेल लिया और तब बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। कितनों की जान गई, इस पर जरूर बहस हो सकती है। हमने कोई जीरो-कोविड पॉलिसी लागू नहीं कर रखी है और ऐसे में वायरस को अपनी गति से फैलने दें, लोगों को पुन: संक्रमित भी होने दें। हमारे पास कहीं ज्यादा असरकारक टीके हैं इसलिए 2023 में ओमिक्रॉन भारत में ज्यादा नुकसान नहीं कर सकता।
विशेषज्ञों की यही सलाह है: होशियार रहें, घबराएं नहीं। बस, नजर बनाए रखें कि रोजाना संक्रमण का रुख क्या है। 2023 के लिए यह राहत की बात है। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में मास्क लगाना बेहतर होगा। मास्क लगाने की आदत से दूसरे संक्रमणों से भी बचाव हो सकेगा। इस छोटे से बचाव को अनिवार्य किया जा सकता है।
(डॉ टी जैकब जॉन सीएमसी वेल्लोर में क्लिनिकल वायरोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और जगदीश रतनानी पत्रकार और एसपीजेआईएमआर में फैकल्टी सदस्य हैं)
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