चारधाम यात्रा: बिना तैयारी और व्यवस्था के लाखों को दे दिया गया न्योता
चार धाम यात्रा मार्ग में जगह-जगह पत्थर कभी भी गिर जा रहे, धामों में ठहरने की सीमित व्यवस्था, स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिए इंतजाम अब भी नहीं हो पाए हैं।
उत्तराखंड के चार धामों- गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा शुरू हो चुकी है। उच्च हिमालयी क्षेत्र के इन चारों पवित्र धामों के कपाट शीतकाल में अत्यधिक बर्फबारी के कारण बंद कर दिए जाते हैं। साल-दर-साल इन धामों में आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन इस बार भी सरकार का ध्यान तीर्थयात्रियों की संख्या का रिकॉर्ड बनाने पर है, न कि जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर।
तीर्थयात्रियों की परेशानी ऋषिकेश पहुंचने के साथ ही शुरू हो जाती है। क्षमता से ज्यादा भीड़ होने के कारण ऋषिकेश पूरे यात्रा सीजन में जाम रहता है। ऋषिकेश शहर कुछ किलोमीटर क्षेत्र में है, पर इसे पार करने में लोगों को कई घंटे लग जाते हैं। यहां ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने के दावे तो यात्रा शुरू होने से पहले से ही किए जा रहे थे लेकिन स्थिति में कहीं कोई सुधार नहीं हुआ है।
ऋषिकेश से आगे बढ़ने पर चारों धामों के लिए बहुप्रचारित ऑल वेदर रोड शुरू हो जाती है। इसे पिछले कई वर्षों से चौड़ा किया जा रहा है। लेकिन इसके लिए पहाड़ों को इस बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से काटा गया है कि अब बिना बारिश के भी पहाड़ों से पत्थर लगातार गिर रहे हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की तरफ जाते हुए सड़क अब पहले से ज्यादा चौड़ी कर दी गई है लेकिन सड़क के आधे हिस्से में अब भी छोटे-बड़े पत्थरों और बोल्डरों के ढेर लगे हुए हैं। हाल यह है कि सड़क की आधी चौड़ाई ही इस्तेमाल हो रही है। जबसे ऑल वेदर रोड बनाने के नाम पर पहाड़ों का कटान शुरू हुआ है, तब से पत्थर और बोल्डर की चपेट में आकर 6 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
देहरादून से जोशीमठ के बीच अपना प्राइवेट टैम्पो चलाने वाले सुधीर कुमार बताते हैं कि पिछले हफ्ते ऋषिकेश की तरफ आते हुए तोता घाटी के कुछ आगे अचानक एक बड़ा पत्थर गाड़ी के ठीक आगे गिरा और कई छोटे-छोटे पत्थर गाड़ी पर गिरे। इससे गाड़ी में सवार लोगों में चीख-पुकार मच गई। गाड़ी सड़क पर पलट सकती थी या दूसरी तरफ गहरी खाई में भी गिर सकती थी।
लोहाजंग से देहरादून तक अपनी सवारी गाड़ी चलाने वाले दिनेश कुनियाल के भी पत्थर गिरने को लेकर दो बुरे अनुभव हैं जब वे बाल-बाल बच गए। वैसे, नेशनल हाईवे ने सुरक्षा के नाम पर पूरे यात्रा मार्ग पर कुछ-कुछ दूरी पर चेतावनी देने वाले बोर्ड लगा दिए हैं जिन पर पत्थर गिरने का खतरा होने के प्रति आगाह किया गया है और संभलकर जाने की सलाह दी गई है। ऐसे बोर्ड की संख्या दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ रही है!
बदरीनाथ यात्रा मार्ग में जोशीमठ का प्रमुख पड़ाव है। इस साल जनवरी में यहां बड़े पैमाने पर जमीन धंसने का मामला सामने आया था। इस मार्ग पर भी कई जगहों पर भूधंसाव हुआ है और दरारें आई हैं। फिलहाल ये दरारें पाट दी गई हैं लेकिन जब इन पर दबाव बढ़ेगा तो फिर से दरारें आने और भूधंसाव होने की आशंका है।
उत्तराखंड फॉरेस्ट्री एंड हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती भूवैज्ञानिकों की उस टीम के सदस्य थे जिसने लोगों के कहने पर पिछले वर्ष दिसंबर में जोशीमठ में होने वाले भूधंसाव का भूवैज्ञानिक परीक्षण किया था। डॉ. सती कहते हैं कि जोशीमठ किसी भी हालत में सुरक्षित नहीं है। यहां कभी भी स्थितियां खराब होने की आशंका है और उन्हें नहीं मालूम कि यदि ऐसा हुआ तो सरकार और प्रशासन किस तरह स्थिति को संभालेगा क्योंकि ऐसी कोई तैयारी भी नजर नहीं आ रही है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा भी जोशीमठ की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। वह कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि जोशीमठ की स्थिति को देखते हुए यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या तय करे लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। कुछ समय पर सभी धामों के लिए प्रतिदिन का कोटा तय कर दिया गया था लेकिन अब वह कोटा खत्म कर दिया गया है, यानी जितने चाहें, तीर्थयात्री चारों धामों में जा सकते हैं। प्रो. चोपड़ा के अनुसार, यह स्थिति गंभीर है।
यात्रियों की संख्या सीमित करने के खयाल से इस साल राज्य सरकार ने चारों धामों में प्रतिदिन तीर्थयात्रियों का कोटा तय किया था। बदरीनाथ के लिए हर दिन 18 हजार और केदारनाथ के लिए 15 हजार तीर्थयात्रियों को अनुमति देने की बात कही गई थी। इसके अलावा गंगोत्री के लिए प्रतिदिन 5,500 और यमुनोत्री के लिए 5,000 तीर्थयात्रियों को अनुमति देने की बात कही गई थी। लेकिन तीर्थ पुरोहितों ने इसका जोरदार विरोध कर दिया। उनका तर्क था कि तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित किए जाने से उनका और चारों धामों में छोटे-बड़े व्यवसाय करने वालों के रोजगार पर इसका असर पड़ेगा।
इसके बाद सरकार ने यह व्यवस्था वापस ले ली, यानी अब कितने भी तीर्थयात्री चारों धामों की यात्रा कर सकते हैं। वैसे, लगता यही है कि सरकार भी यही चाह रही थी क्योंकि सरकार के प्रतिनिधि कई मंचों से इस वर्ष तीर्थयात्रा में यात्रियों की संख्या का रिकॉर्ड बनने की बात कह रहे थे। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 46 लाख से ज्यादा लोगों ने उत्तराखंड के चारों धामों और हेमकुंड साहिब की यात्रा की थी। राज्य सरकार इस बार नया रिकॉर्ड बनने के दावे कर रही है।
उत्तराखंड के विभिन्न मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल के अनुसार, आम तौर पर चारधामों की केयरिंग कैपसिटी का आकलन धामों में उपलब्ध होटलों और धर्मशालाओं के कमरे गिनकर किया जाता है। लेकिन अब तो हर रोज अधिक-से-अधिक भीड़ जुटाने की बात हो रही है। नौटियाल अफसोस जताते हैं कि सरकार सुविधायुक्त कम संख्या वाली तीर्थयात्रा के बजाय भीड़ वाली अव्यवस्थित यात्रा को प्रमोट कर रही है।
25 अप्रैल को कपाट खुलने के दिन ही केदारनाथ में जो हुआ, उससे ही आने वाले दिनों का अंदाजा मिल गया। कपाट खुलने के दिन 18,500 से ज्यादा तीर्थयात्री केदारनाथ पहुंचे। मौसम खराब था, सो अलग। ऐसे में, तीर्थयात्रियों को केदारनाथ में रहने की जगह नहीं मिल पाई। प्रशासन ने यह कहकर अपनी झेंप उतारी कि केदारनाथ में 5,000 लोगों के रहने की व्यवस्था है लेकिन ज्यादा लोग पहुंच गए इसलिए यह समस्या पैदा हुई। सवाल यह है कि आखिर, 18 हजार लोगों को वहां जाने ही क्यों दिया गया। असीमित संख्या में तीर्थयात्रियों को चारों धामों में जाने की छूट देने के कारण अब तो पूरे यात्रा सीजन में यही अव्यवस्था रहने की आशंका है।
उधर, बदरीनाथ में पिछले साल कपाट बंद होने से कुछ दिनों पहले ही मास्टर प्लान के तहत बड़ी संख्या में पुराने निर्माणों को तोड़ने का काम शुरू हो गया था। कपाट बंद रहने के दौरान भी बदरीनाथ में तोड़फोड़ का काम लगातार जारी रहा। इस वक्त वहां रहने के लिए पिछले साल के मुकाबले आधी से कम व्यवस्था रह गई है। इतना ही नहीं, बदरीनाथ बस अड्डे से मंदिर तक जाने वाले मार्ग जिसे आस्था पथ नाम दिया गया है, का भी निर्माण अब तक नहीं हो पाया है।
स्वास्थ्य व्यवस्था अलग चिंता
पिछले वर्ष चारों धामों में 350 तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। इनमें 315 की मौत हार्ट अटैक के कारण हुई थी। इस साल 22 अप्रैल को यमुनोत्री के कपाट खुलने के दिन ही एक तीर्थयात्री की हार्ट अटैक से मौत हुई। 25 अप्रैल को केदारनाथ के कपाट खुले, तो वहां भी पहले ही दिन एक तीर्थयात्री की मौत हो गई। हालांकि राज्य सरकार ने चारों धामों और चारधाम मार्ग के सरकारी अस्पतालों में हार्ट स्पेशलिस्ट तैनात करने का दावा किया है लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन आयोग के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. पीयूष रौतेला कहते हैं कि मैदानों की प्रचंड गर्मी से चलकर तीर्थयात्री जब कुछ ही घंटों में माइनस तापमान में पहुंचते हैं, तो इससे इस तरह की परेशानी की आशंका रहती ही है। उनकी सलाह है कि यात्रियों को धामों तक पहुंचने से पहले निचले क्षेत्र के किसी पड़ाव पर कम-से-कम एक दिन ठहरकर शरीर को मौसम के अनुरूप तैयार कर आगे की यात्रा करनी चाहिए।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia