खरी-खरी: पूंजीवादी सरकार के बजट में आम आदमी की जगह नहीं, सबकुछ बाजार के हवाले करने की नीति
पिछले छह-सात सालों से सब कुछ बाजार के ही हवाले है। अब आलम यह है कि स्वयं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 4.6 करोड़ लोग और गरीबी रेखा से नीचे चले गए। महामारी के चलते पिछले दो वर्षों में 84 प्रतिशत घरानों कीआमदनी घट गई। इन दो वर्षों में लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
‘मैंने किसी वित्त मंत्री का ऐसा घोर पूंजीवादी भाषण नहीं सुना।’ कांग्रेस नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के इस एक वाक्य ने नरेंद्र मोदी सरकार के 2022-23 बजट का स्वरूप स्पष्ट कर दिया। जी हां, स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में भारत खुलकर संपूर्णतया पूंजीवाद की दिशा में चला गया। मोदी के इस भारत में केवल मुट्ठी भर पूंजीवाद के लिए अवसर है। इसके विपरीत अब इस देश में गरीब का कोई स्थान एवं अवसर नहीं बचा। तब ही तो अभी पिछले सप्ताह आए एक सर्वे के अनुसार, पिछले पांच वर्ष में 20 प्रतिशत सबसे गरीब भारतीयों की आमदनी में 53 प्रतिशत की कमी हो गई जबकि 20 प्रतिशत सबसे अमीर की आमदनी में 39 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इसी को तो कहते हैं पूंजीवाद। यही कारण है कि मोदी शासनकाल में 2014-22 तक अंबानी, अडानी और टाटा जैसे मुख्य पूंजीपति घरानों की संपत्ति लाखों करोड़ हो गई।
जरा गौर कीजिए कि लाखों करोड़ की सरकारी कंपनी ‘इंडियन एयर लाइन्स’ टाटा के हाथों केवल अठारह हजार (18,000) करोड़ रुपये में बेच दी गई जबकि कहते हैं कि एयर इंडिया की केवल मुंबई आफिस बिल्डिंग की कीमत इस समय इससे अधिक है। सरकार देश की तमाम संपत्ति औने-पौने दाम में बेचे जा रही है ताकि देश में घोर पूंजीवाद चलता रहे और इसका खामियाजा आम गरीब आदमी भुगतता रहे। तब ही तो पूंजीवादी मोदी सरकार ने खुलकर पूंजीवादी बजट पेश किया है।
इस बजट में आम आदमी का कोई स्थान ही नहीं है। हद यह है कि पेट्रोल और फर्टिलाइजर जैसी आम आदमी के रोजमर्रा की चीजों पर सब्सिडी घटा दी गई है। स्पष्ट है कि महंगाई और अधिक होगी। परंतु वित्तमंत्री को इस बात की कोई चिंता नहीं है। तब ही तो बजट पेश करने से पहले सीतारमण जी ने अपने आर्थिक सर्वे में महंगाई के बारे में केवल इतना ही कहा कि सन 2022-23 में महंगाई का दबाव बना रहेगा। परंतु सरकार इस महंगाई से निपटने का कोई उपाय करेगी या नहीं, इस बात का बजट में कोई जिक्र नहीं है। बस, सब कुछ खुले बाजार पर छोड़ दिया गया है। सरकार बाजार में पैसा खर्च करेगी और देश की जनता के हाथों में लड्डू आ जाएगा।
पिछले छह-सात सालों से सब कुछ बाजार के ही हवाले है। अब आलम यह है कि स्वयं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 4.6 करोड़ लोग और गरीबी रेखा से नीचे चले गए। महामारी के चलते पिछले दो वर्षों में 84 प्रतिशत घरानों कीआमदनी घट गई। इन दो वर्षों में लाखों लोग बेरोजगार हो गए। लगभग 60 लाख छोटे कारोबार ठप हो गए। यह कमाल है खुले बाजार की अर्थव्यवस्था का जिसमें आम आदमी की कमर टूट गई जबकि इसी अवधि में अंबानी एवं अडानी की कमाई बढ़गई।
आखिर देश यह पूंजीवादी व्यवस्था चल कैसे रही है। इस देश में जहां जवाहरलाल नेहरू के समय से मिली-जुली अर्थव्यवस्था चल रही थी जिसमें सरकार पूंजीवाद के साथ आम आदमी के लिए ‘वेलफेयर स्टेट’ चलाती थी, वहां मोदी के सत्ता में आने के बाद यह खुला पूंजीवाद कैसे चल पड़ा। बहुत पुरानी बात तो जाने दीजिए, पिछली यूपीए सरकार में सोनिया गांधी की मनरेगा योजना ने गरीबों का ऐसा उद्धार किया कि देश की ग्यारह प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या गरीबी रेखा से ऊपर आ गई और यह डाटा यूएनओ ने स्वीकार किया। उसी भारत में केवल छह वर्षों में अब करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे जा रहे हैं। आखिर क्यों! यह कमाल है मोदी मॉडल एवं हिन्दुत्व राजनीति का।
दरअसल, हर सरकार की आर्थिक नीति उस सरकार की राजनीतिक नीति पर निर्भर होती है। मोदी सरकार की राजनीति का आधार हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व विचारधारा केवल मुट्ठी भर उच्च जातीय समूह के हितों की राजनीति में विश्वास रखती है। इस विचारधारा में पिछड़ों एवं दलित जैसी गरीब जनसंख्या का कोई स्थान नहीं है। तब ही तो पिछले छह वर्षों में भारत का गरीब जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक पिछड़े एवं दलित शामिल हैं, वे गरीब से और गरीब हो गए। परंतु हिन्दुत्व का मोदी मॉडल कहने को उच्च जातीय हितों की राजनीति करता है पर वास्तविकता यह है कि अब तो स्वयं उच्च जातीय वर्ग भी इसके निशाने पर है।
मोदी मॉडल अर्थव्यवस्था केवल मुट्ठी भर पूंजीपतियों के हित में कामकर रही है। भारतीय उच्च जातीय समूह इस देश का सबसे बड़ा मध्यवर्गीय समूह है। सन 2022-23 के बजट में सरकार ने मिडिल क्लास को भी ठेंगा दिखा दिया। इस वर्ष इस समूह को बड़ी आशा थी कि सरकार इनकम टैक्स की सीमा बढ़ाकर इस वर्ग को थोड़ी राहत देगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। इसके विपरीत कॉरपोरेट टैक्स घटाकर पूंजीपतियों को बड़ी छूट दे दी गई। केवल इतना ही नहीं, महंगाई मिडिल क्लास की सबसे बड़ी समस्या होती है। इस ओर भी बजट में कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह मार भी उच्च जातीय वर्ग की चिंताएं और बढ़ाएगा। फिर, देश में जो बेरोजगारों का सैलाब है, उससे भी सबसे अधिक उच्च जातीय युवा ही परेशान है। उस पर से स्वयं सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद है। इसकी भी सबसे अधिक मार उच्च जातीय वर्ग पर है। लब्बोलुबाब यह कि हिन्दुत्व विचारधारा के मोदी मॉडल में केवल उच्च जातीय हितों के संरक्षण की बात भी केवल ढकोसला ही है। यह तो केवल अंबानी-अडानी-टाटा मॉडल है जिनके हितों का 2022-23 बजट एक आईना है।
परंतु सवाल यह है कि जब सारे देश की पूंजी एवं संपत्ति केवल मुट्ठी भर जनसंख्या के मद में जा रही है, तो फिर नरेन्द्र मोदी चुनाव कैसे जीतते हैं। यही तो हिन्दुत्व का कमाल है। हिन्दुत्व खाने को भले ही दो रोटी न दे परंतु जनता को अपनी परेशानी भुलाने के लिए एक शत्रु जरूर देता है। और इस बात का हर उपाय करती है कि भूखी-नंगी जनता यह समझती रहे कि उसकी चिंता का कारण सरकार नहीं अपितु उसका वह ‘काल्पनिक शत्रु’ है जो सरकार ने खड़ा किया हुआ है।
इसके लिए ही तो लाखों लोगों के वाट्सएप, लव जिहाद, मॉब लिंचिंग, धर्म संसद जैसी संस्थाओं की एक फौज है जो देश के हिन्दुओं को यह समझाने में व्यस्त है कि उसकी हर चिंता का कारण मुसलमान है। जब तक इस देश में मुसलमान है, तब तक हिन्दू की समस्या बनी रहेगी। और हिन्दू इस अफीम का सेवन कर ‘मोदी-मोदी’ का नारा लगाता रहता है। और सरकार पूंजीवादी हित का बजट पेश कर आम आदमी को भाड़ में झोंकती रहती है। उधर, आम हिन्दू काल्पनिक शत्रु मुसलमान को मारने के लिए हिन्दू हृदय सम्राट नरेन्द्र मोदी को वोट देता रहता है।
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