बजट 2021: मध्य वर्ग को संताप के अलावा कुछ नहीं मिला, कॉर्पोरेट के लिए काम करने की छवि होगी पुख्ता
शहर-गांव के गरीबों को इस समय सबसे ज्यादा सहायता की जरूरत है, तब उन्हें मोदी सरकार ने असहाय छोड़ दिया। मध्य वर्ग के हिस्से में बजट में संताप के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। कोरोना से उन पर खर्च का बोझ पड़ा, आय कम हुई, नौकरियां गईं, पर आम बजट में कुछ नहीं मिला।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सगर्व घोषणा की थी कि वह 100 साल का बेजोड़ बजट पेश करेंगी और उन्होंने इसे सच कर दिखाया है। उन्होंने देश का पहला कॉरपोरेट बजट पेश किया, जिससे शेयर बाजार झूम रहा है। कॉरपोरेट जगत की तमाम मांगों को पूरा जो कर दिया गया, पर बाकी वर्गों को ठेंगा दिखा दिया गया। नतीजतन, इससे यह छवि पुख्ता होगी कि सरकार अंबानी-अडानी के लिए काम करती है।
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बजट भाषण में जो घोषणाएं की गई हैं, बजट दस्तावेज उनकी पुष्टि नहीं करते। कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा की दुहाई के कसीदे पढे हैं, पर दस्तावेजों में यह नहीं दिखता। कॉरपोरेट जगत की अरसे से मांग थी कि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए एक डेवलपमेंट फाइनेंस संस्था हो। अब 20 हजार करोड़ के फंड से ऐसी संस्था बनाने का विधेयक आएगा। वित्त मंत्री को उम्मीद है कि तीन साल में यह संस्था इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को 5 लाख करोड़ रुपये मुहैया कराएगी। पक्षकारों का कहना है कि इससे इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की केंद्रीय बजट पर निर्भरता घटेगी, परियोजनाओं के लिए आवंटन घटेगा जिससे सरकार अन्य मदों पर खर्च कर सकेगी। जानकारों का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को समय से पैसे नहीं मिलने से इनमें विलंब होता है और लागत बढ़ जाती है। इस संस्था से यह संकट घटेगा।
इसके साथ ही बैंकों के तनावग्रस्त कर्जों (एनपीए) का बोझ घटाने के लिए एसेट रिकन्स्ट्रक्शन कंपनी बनाने का प्रस्ताव है। यह कंपनी बैंकों का तनावग्रस्त कर्ज खरीदेगी जिससे एनपीए कम होंगे और बैंक अधिक कर्ज बांट पाएंगे, खासकर कॉरपोरेट जगत को। रिजर्व बैंक ने आगाह किया है कि कोविड के कारण सितंबर, 21 तक बैंकों का एनपीए 13.5 फीसदी हो जाएगा जो सितंबर 2020 में 7.5 फीसदी था। यह खतरनाक है। इससे कुछ सरकारी बैंक तो आईसीयू की हालत में पहुंच सकते हैं और इन्हें जिंदा रखने के लिए भारी राशि की जरूरत होगी। इस लिहाज से बजट में सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 20 हजार करोड़ का प्रावधान काफी कम है। इसलिए विपक्षी दलों का यह आरोप खारिज नहीं किया जा सकता कि मोदी सरकार बैंकों को कमजोर बनाकर बेच देगी जिससे शीर्ष कॉरपोरेट घरानों का अपना बैंक होने का सपना पूरा हो जाएगा।
सरकारी संपदाओं (एसेट्स) के मुद्रीकरण योजना से कॉरपोरेट सेक्टर गदगद है। आलोचक कहते हैं कि यह सरकारी संपदाओं को बेचने के अलावा कुछ नहीं है। सड़कों, हवाई अड्डों, रेल फ्रेट कॉरिडोर, स्पोर्ट्स स्टेडियम आदि का मुद्रीकरण इनवेस्टमेंट ट्रस्ट के जरिये होगा। यह ट्रस्ट बनाने के लिए नेशनल हाइवेज अथॉरिटी और पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को अधिकृत किया गया है जो अलग-अलग इनवेस्टमेंट ट्रस्ट बनाएंगे और ये ट्रस्ट देसी-विदेशी ग्राहकों-निवेशकों को आमंत्रित करेंगे।
सरकारी जमीन भी बेची जाएगी। वित्त मंत्री का कहना है कि बेकार पड़ी संपत्तियों का आत्मनिर्भर भारत में कोई योगदान नहीं। इनका मुद्रीकरण या तो सीधे उन्हें बेचकर या रियायत देकर या ऐसे ही साधनों से किया जा सकता है। वित्त मंत्री के वक्तव्य से ऐसा भान होता है कि एयर इंडिया, बीएसएनएल, भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉरपोरेशन जैसे अनेक उपक्रम आत्मनिर्भर भारत के रास्ते में बाधा हैं। जीवन बीमा निगम के निजीकरण के लिए उसकी अंशधारिता बेची जाएगी। इसके साथ ही मोदी सरकार ने स्वदेशी अभियान को ठेंगा दिखाते हुए बीमा क्षेत्र में विदेशी भागीदारी को 49 से 74 फीसदी करने का फैसला किया।
जानकारों के अनुसार, मोदी सरकार ने न केवल कॉरपोरेट जगत की तमाम मुरादें पूरी कीं, बल्कि ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे उनकी खुशी में विघ्न पहुंचे। लेकिन कॉरपोरेट सेक्टर नया निवेश करेगा, इसका कोई संकेत वित्त मंत्री ने नहीं दिया। निजी निवेश बढ़ाने के लिए कॉरपोरेट सेक्टर को मरहूम वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2019 में 1.46 लाख करोड़ रुपये की छूट दी थी, जिसे सेक्टर डकार गया और निजी निवेश वैसा ही निढाल है। अब भी यह सवाल बना है कि इस बजट से निजी निवेश में कोई उछाल आएगा?
वित्त मंत्री ने कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा लेकर स्वास्थ्य बजट रचा और दावा किया कि इसमें 137 फीसदी की वृद्धि की गई। इसमें से यदि अन्य मंत्रालयों के खर्च जैसे पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के 96 हजार करोड़ रुपये और विशेष खर्च टीकाकरण के 35 हजार करोड़ रुपये निकाल दें, तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण का आवंटन 74 हजार करोड़ रुपये बैठता है, जो 2020-2021 के संशोधित खर्च 84 हजार करोड़ रुपये से कम है। लाखों-लाख कोरोना योद्धाओं के जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा के लिए इस ‘बेजोड़’ बजट में कोई जगह नहीं। वित्त मंत्री को बताना चाहिए था कि मिड-डे मील का व्यय संशोधित अनुमान से कम करने की क्या मजबूरी थी?
भाषण में शिक्षा को लेकर भी यशोगान किया गया। भाषण में खासा वक्त दिया। इससे मन नहीं भरा तो एक विशेष परिशिष्ट भाषण में जोड़ा गया जिसे केवल संसद के पटल पर रखा जाता है, पर पढ़ा नहीं जाता। पर जब आवंटन की बारी आई तो 2020-21 के मूल बजट अनुमान से तकरीबन 7 हजार करोड़ रुपये कम कर दिए गए। स्किल इंडिया प्रधानमंत्री मोदी का शगल है। कौशल विकास पर उनके भाषण भरे पड़े हैं। लकिन ‘कार्य और कौशल विकास’ कार्यक्रम का आवंटन 2019-20 के वास्तविक खर्च से 2200 करोड़ और 2020-21 के अनुमानित खर्च से 2000 करोड़ रुपये कम कर दिया गया।
शहर-गांव के गरीबों को इस समय सबसे ज्यादा सहायता की जरूरत है, तब उन्हें मोदी सरकार ने असहाय छोड़ दिया। मध्य वर्ग के हिस्से में बजट में संताप के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। कोरोना से उन पर खर्च का बोझ पड़ा, आय कम हुई, नौकरियां गई हैं। डीजल, पेट्रोल और खाद्यानों के महंगे होने से उनकी आय पर दबाव बढ़ा है। पर वित्त मंत्री ने आयकर में राहत नहीं दी। वित्त मंत्री के पास अब भी वक्त है कि एक साल के लिए मानक कटौती बढ़ाकर 80 हजार कर दें। इससे मध्य वर्ग को काफी राहत मिलगी। कोरोना प्रभावित उद्योग पर्यटन, होटल आदि की सहायता के लिए कुछ नहीं किया गया।
महामारी की आड़ में मोदी सरकार ने बजट घाटा 15 लाख करोड़ रुपये करने में कोई हिचक नहीं दिखाई जो इस साल केंद्र सरकार के कुल प्रस्तावित खर्च का 43 फीसदी है। इसके बाद भी बजट का गणित कमजोर है। यदि मोदी सरकार के पुराने बजटों की तरह यह बजट भी अपने लक्ष्यों से भटक गया, तो महंगाई का सिर उठाना और बढ़ते ही जाना तय है। पिछले साल मोदी सरकार का संशोधित कुल खर्च 34.50 लाख करोड़ रुपये दर्शाया गया है, 2021-22 के लिए यह अनुमानित है 34.83 लाख करोड़ रुपये यानी महज 33 हजार करोड़ रुपये की कुल वृद्धि। फिर वित्त मंत्री ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर 1.15 लाख करोड़ और स्वास्थ्य पर करीब एक लाख करोड़ रुपये कैसे बढ़ाए, इसके बारे में उन्हें बताना चाहिए।
वित्त मंत्री जी, निर्मित आंकड़ों से जनता भुलावे में आ सकती है, अर्थव्यवस्था नहीं। 200 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था में महज 33 हजार करोड़ की व्यय वृद्धि कोई चमत्कार कर पाएगी?
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Published: 05 Feb 2021, 5:01 PM