संसदीय इतिहास का पहला बजट जिसमें सरकार ने पढ़ दिया अपनी पार्टी का घोषणा पत्र
प्रधानमंत्री जोर-जोर से डेस्क पीटते दिखे, मजबूरन उनकी पार्टी के सांसदों को भी ऐसा करना पड़ा। रोचक तो यह भी देखना था कि जब पीयूष गोयल ने उनकी तारीफ की तो भी वे उल्लास में डेस्क पीटते नजर आए।
भारत के संसदीय इतिहास में शायद यह पहला मौका था जब वित्त मंत्री ने बजट भाषण में अपनी पार्टी का घोषणापत्र पढ़ डाला।
पीयूष गोयल ने जब मध्य वर्ग के टैक्सपेयर्स के लिए छूट और सौगातों का ऐलान किया तो चुपके से यह भी कह गए कि यह सबकुछ इस साल नहीं, बल्कि अगले साल मिलेगा। (आखिर यह तो वोट ऑन अकाउंट था) जो भी कुछ भी उन्होंने घोषणाएं कीं, वे सब तो अगली सरकार को पूरी करनी हैं।
अंतरिम वित्त मंत्री के रूप में पीयूष गोयल ने इनकम टैक्स के मोर्चे पर लंबे चौड़े वादे कर डाले, जो इस साल से लागू नहीं होंगे, छोटे और गरीब किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बनाकर 500 रुपए महीने का तोहफा दे दिया। इतना ही नहीं, वित्त मंत्री ने संभवत: पहली बार कोई तोहफा ऐसा दिया जो गुजरते साल से लागू होगा।
इसके बावजूद सत्ता पक्ष में बैठे नेताओं का मुख मुद्राएं जोश में नहीं दिखीं। बजट भाषण के दौरान एनडीए के बहुत से सहयोगी सदन से गायब रहे। प्रधानमंत्री जोर-जोर से डेस्क पीटते दिखे, मजबूरन उनकी पार्टी के सांसदों को भी ऐसा करना पड़ा। रोचक तो यह भी देखना था कि जब पीयूष गोयल ने उनकी तारीफ की तो भी वे उल्लास में डेस्क पीटते नजर आए।
विपक्षी नेताओं ने सही ही कहा कि सारी सौगातें एक शर्त के साथ आई हैं, ‘अगर हम सत्ता में आए तो....।’ खासतौर से बजट घोषणाएं अगली सरकार के लिए गले की फांस बन सकती हैं। इनका पालन नहीं हुआ तो लोगों का गुस्सा संभालने नहीं संभलेगा।
अपने कार्यकाल से बाहर जाकर मोदी सरकार ने घोषणाएं करते हुए सारी आलोचनाओं को नजरंदाज़ ही नहीं किया, बल्कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए संशोधित अनुमान तक सामने रख दिए।
पीयूष गोयल के एक घंटा 40 मिनट लंबे भाषण में सबसे दिलचस्प हिस्सा रहा एक उर्दू शे’र जिसे लिखने वाले शायर का नाम तक उन्हें याद नहीं था। उन्होंने कहा, “एक पांव रखता हूं, हज़ार रास्ते खुल जाते हैं।”
बेरोजगारी और नौकरियों की कमी को खारिज करते हुए पीयूष गोयल ने जब कहा कि भारत नौकरी के इच्छुक लोगों वाले देश से अब नौकरी देने वाले लोगों का देश बन गया है तो पीएम मोदी समेत समूचा सत्ता पक्ष अपने उल्लास को रोक नहीं पाया।
अपनी सरकार के पांच साल की उपलब्धियां गिनाते हुए वित्त मंत्री ने सारी हदें पार कर दीं। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर डींग हांकी, लेकिन भूल गए कि यह तो सिर्फ पिछली सरकारों की इंदिरा आवास योजना का नया नामकरण भर था, जिसे राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में शुरु किया था।
ध्यान होगा कि लगातार खबरें आ रही हैं कि इस सरकार ने यूपीए के दौर में शुरु की गई रोजगार गारंटी की योजना मनरेगा के पैसे पैसे के लिए मोहताज कर दिया है, फिर भी वित्त मंत्री ने इस मद में संशोधित आंकलन करते हुए 60,000 करोड़ का वादा किया, जो कि पिछले साल से अब भी कम है।
एक ऐसी सरकार, जिसके मुखिया ने पांच साल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की हो, उस सरकार के वित्त मंत्री ने संसद में कह दिया कि हम तो पारदर्शिता के नए दौर में पहुंच चुके हैं। यहां वह इस बात को भूल गए कि राफेल सौदे को लेकर पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाई जा चुकी हैं।
राफेल सौदे के बाद पैदा देश के सामने खड़ी हुईं रक्षा चुनौतियों को दरकिनार करते हुए पीयूष गोयल ने हिंदी फिल्म उरी का जिक्र किया और अपील की कि सभी लोग इस फिल्म को देखें। साथ ही सिनेमाघरों को सौगातों का ऐलान भी कर दिया।
देश की आर्थिक हालत की चौतरफा आलोचना की अनदेखी करते हुए वित्त मंत्री कहने से नहीं चूके कि उन्होंने महंगाई की कमर तोड़ दी है। यहां भूल गए कि अब तो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी भारत की अर्थव्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
और सबसे बड़ी बात, वित्तीय अनुशासन का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार के अंतरिम वित्त मंत्री यह कहने में भी नहीं चूके कि सरकार ने वित्तीय घाटे को कम करके 3.4 फीसदी पर पहुंचा दिया है। कौन यकीन करेगा इस सब पर? हां, मानना पड़ेगा कि तथ्य और तत्वों से दूर इस बजट भाषण को पीयूष गोयल ने पेश बखूबी किया।
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