सरकारी विमर्श से लापता हैं बंधुआ मजदूर, इस मामले में वास्तविक विश्वगुरु है भारत!
बंधुआ मजदूरी का कारण भले ही वैश्विक अराजकता, युद्ध, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक और आर्थिक असमानता को बताया जा रहा हो, पर इन सभी समस्याओं के मूल में पूंजीवाद ही है।
अगस्त 2024 के शुरू में ही दिल्ली के दो कारखानों से 73 बाल-मजदूरों को मुक्त कराया गया है। इससे पहले जुलाई में भपल के पास स्थित सोम डिस्टिलरी नामक कारखाने से 58 बच्चों को मुक्त कराया गया है। इन बच्चों से 11 घंटे से भी अधिक काम कराया जाता था, और रसायनों से काम करने के कारण इन बच्चों के हाथ जल गए थे। इसी वर्ष मई में दिल्ली के ही एक कारखाने से 41 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया था। कारखानों में, ईंट-भट्ठों में, ढाबों में, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में, बाजारों में – आप कहीं भी देखिए, आपको बाल मजदूर मिल जाएंगे। यही हाल बंधुआ मजदूरों या फिर जबरन मजदूरी का भी है।
संयुक्त राष्ट्र के बहुचर्चित सतत विकास लक्ष्य में कहा गया है कि दुनिया से बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन वर्ष 2030 तक और बाल मजदूरी का उन्मूलन वर्ष 2025 तक ही करना है। पर, हमारी आंकड़ों की बाजीगरी करने वाली सरकार के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। जब देश में कोई समस्या विकराल हो जाती है तब हमारे प्रधानमंत्री के साथ ही पूरी सत्ता उस समस्या पर चुप्पी साधने के साथ ही समस्या उजागर करने वालों को ही कोसना शुरू कर देती है। आधुनिक गुलामी या जबरन मजदूरी भी एक ऐसी ही समस्या है, जिसपर प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं, सत्ता खामोश रहती है, पर इस विषय से संबंधित हरेक देसी-विदेशी रिपोर्ट भारत को इस सन्दर्भ में विश्वगुरु घोषित करती है।
आधुनिक गुलामी, जबरन मजदूरी, मानव तस्करी और बाल मजदूरी को समूल नष्ट करना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) में 8.7 बिंदु पर शामिल है। सतत विकास लक्ष्य से संबंधित देश की प्रगति बताने के लिए हरेक वर्ष नीति आयोग 300 से अधिक पृष्ठों की एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के इस लक्ष्य का जिक्र तो रहता है, पर इससे संबंधित उठाये गए कदमों पर यह रिपोर्ट एक शब्द भी नहीं बताती है। इस बार की रिपोर्ट 356 पृष्ठों की है, फिर भी बंधुआ मजदूरी पर खामोश है। फिलहाल, नीति आयोग की वेबसाइट पर एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-24 उपलब्ध है, जिसमें आधुनिक गुलामी या जबरन मजदूरी के सन्दर्भ में देश की स्थिति के बारे में एक भी शब्द नहीं है। शायद सरकार दुनिया को यह सन्देश देना चाहती है कि हमारा देश बाल मदूरी और बंधुआ मजदूरी से मुक्त है।
ऑस्ट्रेलिया स्थित वाक फ्री फाउंडेशन हरेक वर्ष ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स प्रकाशित करता है। वर्ष 2023 के इंडेक्स में कुल 160 देशों में भारत का स्थान 34वां था। इस इंडेक्स में पहले स्थान पर उस देश का नाम होता है, जहाँ जबरन मजदूरी सबसे अधिक है और अंतिम नाम उस देश का होता है जहां यह सबसे कम है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिक गुलामी के सन्दर्भ में दुनिया के केवल 33 देश हमसे भी अधिक पिछड़े हैं, जबकि 126 देशों में स्थिति हमसे बेहतर है। हमारा देश बंधुआ मजदूरी के सन्दर्भ में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में भी छठे स्थान पर है। वाक फ्री फाउंडेशन के अनुसार भारत में 1.1 करोड़ लोग बंधुआ मजदूर हैं, यानि जबरन मजदूरी में संलग्न हैं, यह संख्या दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। यहाँ प्रति एक हजार आबादी में बंधुआ मजदूरों की औसत संख्या 8 है, जबकि वैश्विक औसत 3.5 प्रति 1000 है।
हमारे देश में वर्ष 1978 से 31 जनवरी 2023 के बीच 315302 बंधुआ मजदूरों को आजाद कराया गया और इनमें से 296305 को सरकारी मदद देकर पुनर्स्थापित किया गया। इसमें से 31 मार्च 2016 तक कुल 282429 बंधुआ मजदूरों को मुक्ति मिल चुकी थी। पर, इस कार्य में वर्ष 2016 से प्रगति नगण्य हो गयी है। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने बड़े तामझाम से बताया था कि देश में 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूर हैं, जिन्हें वर्ष 2030 तक आजाद कराकर समाज में पुनर्स्थापित कर दिया जाएगा। पर, इस ऐलान के बाद कुछ भी नहीं किया गया। वर्ष 2022-2023 के लिए लोकसभा की श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित 41वीं स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 से 2023 के बीच महज 32873 बंधुआ मजदूर ही आजाद कराये गए हैं और सभी पुनर्स्थापित नहीं किए गए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 के बाद से हरेक वर्ष औसतन 4109 बंधुआ मजदूर ही आजाद कराये गए हैं, इस दर से वर्ष 2030 तक 1.84 करोड़ में से महज 57528 बंधुआ मजदूर मुक्त हो पाएंगे। बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने में सरकार की सुस्ती का आलम यह है कि स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020-21 में महज 320 मजदूर मुक्त कराये गए, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़ कर 1676 तक पहुंचा, पर अगले वर्ष 2022-23 में महज 334 मजदूरों को ही मुक्ति मिल सकी। जाहिर है, बंधुआ मजदूरों की समस्या और संख्या जानने के बाद भी मुक्ति दिलाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है।
वाक फ्री फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.1 करोड़ बंधुआ मजदूर हैं, पाकिस्तान में 23 लाख, चीन में 58 लाख और उत्तर कोरिया में 26 लाख बंधुआ मजदूर हैं। जी20 समूह के देश, जो दुनिया में सबसे अमीर हैं और जिसकी वर्ष 2023 में अध्यक्षता का डंका आज भी मोदी सरकार बजाती है, दुनिया में बंधुआ मजदूरी को बढ़ा रहा है और दुनिया के कुल बंधुआ मजदूरों में से 50 प्रतिशत से अधिक इन्हीं देशों में कार्यरत हैं। चीन में 58 लाख, रूस में 19 लाख, इंडोनेशिया में 18 लाख, तुर्की में 13 लाख और अमेरिका में 11 लाख बंधुआ मजदूर हैं। यही नहीं, जी20 के भारत समेत दूसरे देश भी दूसरे देशों से ऐसे उत्पादों या प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर आयात करते हैं, जिनमें बंधुआ मजदूरों से जबरन काम करवाया जाता है। अनुमान है कि ऐसे उत्पादों और संसाधनों का जी20 देशों में कारोबार लगभग 50 करोड़ डॉलर प्रति वर्ष का है।
दुनिया में लगातार प्रजातंत्र का हनन किया जा रहा है और निरंकुश शासन का जोर बढ़ता जा रहा है। निरंकुश सत्ता हमेशा पूंजीपतियों के इशारे पर काम करती है। बंधुआ मजदूरी का कारण भले ही वैश्विक अराजकता, युद्ध, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक और आर्थिक असमानता को बताया जा रहा हो, पर इन सभी समस्याओं के मूल में पूंजीवाद ही है। आधुनिक गुलामी, पूंजीवाद का एक प्रमुख स्तंभ है और पूंजीवाद के साथ ही इसका भी प्रसार होता जा रहा है। राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर भले ही पूरे विश्व में, विशेष तौर पर यूरोप में, गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की बात की जा रही हो पर तथ्य यह है कि आधुनिक गुलामी से सबसे अधिक मुनाफ़ा यूरोप और मध्य एशियाई देशों को हो रहा है। हमारे देश में 81 करोड़ से भी अधिक लोगों को सरकार बेहद गरीब बता कर मुफ्त अनाज दे रही है, जाहिर है इस संख्या में देश के 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूर शामिल नहीं हैं। यानि बेहद गरीब से भी अधिक गरीब देश की लगभग 2 करोड़ आबादी है। यह उस देश का हाल है जो दिनरात तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का राग अलापता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि स्वघोषित विश्वगुरु भारत, बंधुआ मजदूरी के सन्दर्भ में वास्तविक विश्वगुरु हैं।
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Published: 10 Aug 2024, 11:26 PM