आकार पटेल का लेख: सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर अपनी रक्षा के उद्देश्य से राजनीति में आया था संघ
बी एस मुंजे ने लिखा था कि हालांकि नागपुर में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 20,000 है, ‘हम (हिंदू) असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि शहर के मुस्लिम हिंदुओं की 1.3 लाख की आबादी से बिल्कुल भी नहीं डरते हैं।’
दुनिया का सबसे बड़े एनजीओ यानी गैर सरकारी संगठन अपना शताब्दी वर्ष मनाएगा। आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में एक शाखा के साथ हुई थी, और आज (आरएसएस की वेबसाइट के अनुसार) उसकी देशभर में 57,000 दैनिक शाखाएं लगती है। संघ कहता है कि वह अपने सदस्यों का हिसाब-किताब नहीं रखता, इसलिए उसे नहीं पता कि उसके सदस्यों की संख्या क्या है।
आखिर संघ की स्थापना हुई क्यों थी? इसके बारे में 6 खंडों में लिखित बीजेपी के इतिहास में बताया गया है, जो 2006 में पार्टी ने प्रकाशित किया था। पार्टी ने हिंदू महासभा के नेता बी एस मुंजे का एक वाक्य उद्धत किया है जिसमें कहा गया है कि नागपुर में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बार-बार हो रही है, क्योंकि हालांकि नागपुर में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 20,000 है, ‘हम (हिंदू) असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि शहर के मुस्लिम हिंदुओं की 1.3 लाख की आबादी से बिल्कुल भी नहीं डरते हैं।’
मुंजे को ऐसा इसलिए लगा क्योंकि हिंदू अलग-अलग हिस्सों में बंटे हुए थे, 'प्रत्येक का अपना एक विशेष और सांस्कृतिक जीवन था, इसलिए उनके बीच शायद ही कोई जुड़ाव था।' यह उन मुसलमानों एकदम अलग था जो 'धार्मिक रूप से सुसंगठित और अनुशासित तौर पर एक समुदाय थे'। इसके चलते 'समुदाय के किसी भी हिस्से पर कहीं भी लगी कोई भी चोट, हर जगह उतनी ही तीव्रता से महसूस की जाती है।'
किताब कहती है कि आरएसएस का गठन मुस्लिमों से मोर्चा लेने के लिए हिंदुओं में विभाजन की इसी समस्या को खत्म करने के लिए किया गया था। कहा गया कि संगठन हिंदु एकता, एकजुटता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत करेगा। इसके संस्थापक के बी हेडगेवार ने भी हिंदू समाज की दो प्रमुख समस्याओं, उनके परस्पर विभाजन और जाति की समस्या को खत्म करने का आह्वान किया। इसके लिए उन्होंने शाखा पद्धति को अपनाया जहां हिंदुओं की सभी जातियों के लोग रोज एक घंटे के लिए इकट्ठा होते थे। वे खेल खेलते, व्यायाम करते, मार्च करना सीखते और कुछ अभ्यास आदि करते। वे एक साथ मिलकर भारत माता की स्तुति में कुछ गीत भी गाते।
इस तरह जाति की समस्या एक साथ खेलने और भोजन करने से दूर हो जाती। संघ के तीसरे प्रमुख एम डी देवरस ने इसे इस तरह वर्णित किया है, ‘मैं संघ के पहले शिविर में मौजूद था। वहां काफी संख्या में महार भाई थे। भोजन के समय कुछ लोग उनके साथ बैठने में हिचकिचा रहे थे। इससे पहले उन्होंने जीवन में कभी भी महारों के साथ बैठकर भोजन नहीं किया था। उन्होंने अपनी यह दुविधा डॉक्टरजी (हेडगेवार) के सामने रखी। लेकिन उन्होंने शिविर का अनुशासन लागू नहीं किया और उनसे बाहर जाने को कह दिया। डॉक्टरजी से सीधे कहा, “हमी परंपरा सभी के एक साथ बैठकर भोजन करने की है। इसलिए सभी लोग तदानुसार ही बैठें।” हम सभी एक साथ भोजन के लिए बैठे। ऐसे कुछ लोग जो संकोच में थे, वे एक अलग पंक्ति में बैठे। लेकिन अगले भोजन के समय वे डॉक्टरजी के पास आए और उनसे क्षमा मांगी और नियमानुसार एक साथ बैठ गए।’
हेडगेवार का 1940 में निधन हो गया, तब तक आरएसएस नागपुर से बाहर निकलकर करीब एक लाख सदस्यों वाला हो चुका था। उनके उत्तराधिकार बने एम एस गोलवलकर, जिनके नेतृत्व में संघ फलता-फूलता रहा। गोलवलकर व्यावहारिक थे और उनका मानना था कि संघ को कानून के दायरे में रहकर काम करना चाहिए। जब 1943 में अंग्रेजों ने भारतीयों के फौजी पोशाक पहनने और सैन्य अभ्यास करने पर रोक लगाई तो संघ ने इसे फौरन ही त्याग दिया।
बीजेपी कहती है कि दिसंबर 1947 में दिल्ली में हुई संघ की एक रैली में विशाल जनसमूह आया था, जिसमें हिंदू राजा, व्यापारी और अन्य हिंदू संगठनों के नेताओं ने हिस्सा लिया था। संघ की इस लोकप्रियता ने कांग्रेस, खासतौर से नेहरू को चौंका दिया था। इसके बाद 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की दिल्ली में ही हत्या कर दी गई।
गोलवलकर को आभास था कि गांधी जी की हत्या की जांच जब सामने आएगी तो आरएसएस मुश्किल में पड़ जाएगा। उन्होंने फौरन तरकीब सोची। हत्या वाले दिन यानी 30 जनवरी 1948 को उन्होंने आरएसएस शाखाओं को टेलीग्राम भेजा कि सारे कार्य्रम और अभियान 13 दिन के लिए बंद कर दिए जाएं। उसी दिन उन्होंने नेहरू, पटेल और देवदास गांधी को भी टेलीग्राम भेजकर गांधी की हत्या पर शोक जताया। इसमें उन्होंने लिखा, ‘मैं इस क्रूर और घातक हमले और एक महान व्यक्तित्व के जाने से स्तब्ध हूं।’
अगले दिन उन्होंने फिर से नेहरू को लिखा और हत्या पर शोक जताते हुए कहा कि गोडसे जैसी एक 'विचारहीन विकृत आत्मा' ने 'गोली द्वारा पूज्य महात्माजी के जीवन का अचानक और भयानक अंत करने का जघन्य कृत्य किया है।' उन्होंने हत्या को अक्षम्य और देशद्रोह का कृत्य बताया। उसी दिन उन्होंने पटेल को भी लिखा: 'मेरा हृदय अत्यंत पीड़ा से व्यथित है। जिस व्यक्ति ने यह अपराध किया है उसकी निंदा करने के लिए शब्द ढूंढना मुश्किल है...'
लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। पटेल ने 2 फरवरी को आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। इस बाबत जारी अधिसूचना में कहा गया, ‘आरएसएस का घोषित उद्देश्य तो हिंदुओं के भौतिक, बौद्धिक और नैतिक उत्थान और कल्याण के साथ परस्पर भाईचारा, प्रेम और सेवा है, लेकिन सरकार ने पाया है कि ’ संघ के सदस्य अपने घोषित उद्देश्यों और आदर्शों का पालन नहीं कर रहे हैं। संघ के सदस्यों द्वारा अवांछित और खतरनाक गतिविधियां की जा रही हैं और वे लूटमार, डकैती, और हत्या जैसे कृत्यों में शामिल होने के साथ ही अवैध रूप से हथियार और अस्त्र जमा कर रहे हैं। संघ के सदस्य पर्चे बांटकर लोगों को हथियार जमा करने के लिए आतंकी तरीके अपनाने के लिए उकसा रहे हैं, ऐसे में सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इनसे निपटने का काम करेगी।‘ इसके बाद 3 फरवरी को गोलवलकर को 20,000 संघ कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।
आरएसएस कहता है कि उसे इस बात से आश्चर्य हुआ कि किसी अन्य राजनीतिक दल या नेता ने इस बारे में कुछ नहीं बोला। संघ पर 17 महीने तक पाबंदी लगी रही। और यह पाबंदी तभी हटी जब संघ ने अपना संविधान पेश किया। इसे लिखकर सरकार के पास जमा कराया गया। इस तरह 11 जुलाई 1949 को संघ से प्रतिबंध खत्म कर दिया गया।
इसके फौरन बाद, संघ ने अपने मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के जरिए राजनीति में आने का विमर्श शुरु किया। ऑर्गेनाइजर में आरएसएस कार्यकर्ताओं के लेख प्रकाशित होते थे जिनमें के आर मलकानी भी थे। उन्होंने लिखा, ‘आरएसएस को अपनी रक्षा के लिए राजनीति में आना चाहिए’ लेकिन ‘अभारतीय और भारत विरोधी राजनीति को भी रोकना चाहिए’ और ‘सरकारी मशनीरी के जरिए भारतीयता को स्थापित करने के लिए काम करना चाहिए।’
इसके बाद जनसंघ/बीजेपी का जन्म हुआ, जो दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, और एक सबसे बड़े एनजीओ से निकली है।
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