बिहार सरकार नहीं चाहती अंतरजातीय विवाह? झारखंड भी अंतरजातीय जोड़ों को प्रोत्साहित करने में पीछे
बिहार में अंतरजातीय विवाह करने वालों को वहां की सरकारें प्रोत्साहित करने में सबसे पीछे हैं। वैसे देश में कुल 28 राज्यों में से 26 राज्यों की सरकारों का भी अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के मामले में रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है।
बिहार और झारखंड यानी पुराना बिहार में अंतरजातीय विवाह करने वालों को वहां की सरकारें प्रोत्साहित करने में सबसे पीछे हैं। वैसे देश में कुल 28 राज्यों में से 26 राज्यों की सरकारों का भी अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के मामले में रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। लेकिन बिहार और झारखंड के आंकड़े तो यह बताते हैं कि वहां सरकारों ने पिछले पांच वर्षों में अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने का काम ही शुरू नहीं किया है। पुराने (अविभाजित) बिहार को जातिवाद का गढ़ कहा जाता है और सामाजिक न्याय आंदोलन की अगुवाई करने वाले प्रदेशों में भी उसका नाम शुमार किया जाता है। लेकिन यहां सामाजिक न्याय का मतलब सत्ता तक पहुंचने के लिए जातीय तालमेल बैठाना भर लगता है।
राज्यों में दो स्तरों पर अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के विधि सम्मत रास्ते बनाए गए हैं। एक तो केन्द्र के स्तर पर अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए डा.अम्बेडकर सामाजिक एकता योजना है जो कि दिल्ली स्थित डा. अम्बेडकर फाउंडेशन की तरफ से लागू की जाती है। लेकिन फाउंडेशन को इस योजना के तहत प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव राज्य सरकारों को भेजना होता है। लोकसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री ए नारायणस्वामी के एक बयान के अनुसार इच्छुक दंपतियों की जागरूकता के लिए अंतरजातीय विवाह की इस स्कीम के व्यापक कवरेज के लिए राज्य सरकार के जिला अधिकारियों को पत्र भी भेजे जाते हैं। दूसरा राज्य सरकारें सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 और अनु.जाति एवं अनु. जनजाति ( अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के कार्यान्वयन के तहत भी उन दंपतियों को प्रोत्साहित करती है जिनमें शादी करने वालो में लड़का या लड़की अनुसूचित जाति से हो।
लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि 2016 से 2020-21 तक 28 राज्यों में से 26 राज्यों में 99891 ऐसे दंपतियों को प्रोत्साहित किया गया जिनमें कि लड़का या लड़की में कोई एक अनुसूचित जाति का है। राज्यों में जितने अंतरजातीय दंपतियों को प्रति वर्ष प्रोत्साहित किया जाता है वह 130 करोड आबादी वाले देश में औसतन 20 हजार से भी कम है। लेकिन हैरान करने वाला आंकड़ा है कि इन पांच वर्षों के दौरान बिहार और झारखंड में ऐसे एक भी दंपति को प्रोत्साहित नहीं किया गया जिनमें कि अनुसूचित जाति के सदस्य के साथ अंतरजातीय विवाह हुआ हैं।
लोकसभा में डा. अम्बेडकर सामाजिक एकता योजना के तहत अंतरजातीय दंपतियों को प्रोत्साहित करने के बारे में जब एक प्रश्न पूछा गया तो केन्द्र सरकार ने बताया कि 2018 से 2021 यानी तीन वर्षो के दौरान राज्य सरकारों द्वारा प्राप्त और डा. अम्बेडकर फाउंडेशन द्वारा स्वीकृत ऐसे महज 120 जोड़ों को प्रोत्साहित किया गया है। वर्ष 2018-19 में देश में 18 राज्यों में केवल 120 दंपतियों तक इस योजना का लाभ पहुंच सका। जिन दस राज्यों के नाम इस योजना के तहत अंतरजातीय जोड़ों को प्रोत्साहन करने वालों में नहीं है उनमें बिहार का नाम भी शामिल है। झारखंड में इस योजना के तहत एक दंपति को प्रोत्साहित जरूर किया गया लेकिन उसके बाद के वर्षो में झारखंड के आंकड़े शून्य हैं। 2019-20 में बिहार के साथ कर्नाटक में भी एक भी दंपति तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंचा। वैसे भी 2019-20 में देश भर के केवल 248 दंपतियों को इस योजना का लाभ मिला जो कि 19 राज्यों में बंटे थे। 2020-21 में भी बिहार में इस योजना का लाभ किसी को नहीं दिया गया। इस वर्ष इस योजना का लाभ केवल 17 राज्यों के 353 दंपतियों को मिल सका।
भारत सरकार एवं राज्य सरकारें अंतरजातीय विवाह करने वालों को कार्यक्रमों और स्कीमों के जरिये वित्तीय सहायता देती हैं।
श्री ए नारायणस्वामी सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री ने लोकसभा में चार सांसदों के एक सवाल के जवाब में अंतरजातीय विवाहों के मामले में प्रोत्साहित करने की स्वीकृति मिलने में देर होने की जो वजहें बताई है , वह भी कम दिलचस्प नहीं है। चार सांसद एस सी उदासी, सुधाकर तुकाराम श्रंगरे, प्रदीप कुमार सिंह और रंजीत सिन्हा हिन्दू राव नाईक निम्बालकर के प्रश्न के जबाव में केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि कई मामलों में दंपति का विवाह हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत पंजीकृत न होकर राज्य विवाह पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत पाया जाता है। ऐसे मामलों में संबंधित जिला अधिकारी से दंपति के धर्म की स्थिति के बारे में प्रमाण पत्र भेजने का अनुरोध किया जाता है। सभी राज्यों के मामले में टुकड़ों में प्राप्त होने वाले दस्तावेजों पर कार्ररवाई करने में विलंब होता है।
देश में जातिवाद को खत्म करने के लिए अंतरजातीय शादियों को बड़ा क्रांतिकारी कदम माना जाता है। डा. भीम राव अम्बेडकर और डा. राम मनोहर लोहिया ने एक जाति से दूसरी जाति के भीतर शादी के चलन को बढ़ाने पर जोर देते थे। लेकिन यह जानकर हैरानी हो सकती है कि जातिवाद के सबसे बड़े अखाड़ें उतर प्रदेश में भी 2017-18 में किसी जोड़े को प्रोत्साहित नहीं किया गया। 2018-19 में 24 जोड़ों को प्रोत्साहित किया गया लेकिन उसके बाद 2020-21 तक किसी भी जोड़ों को प्रोत्साहित नहीं किया गया।
मुख्यमंत्री को एक पत्र
बिहार में अंतरजातीय विवाहों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने के आंकड़ों में शून्य हैं लेकिन बिहार में अंतरजातीय विवाहों का पंजीकरण करने वाली संस्थाएं सहानुभूति और संवेदना के स्तर पर भी शून्य है। इस संबंध में अक्टूबर 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री को इस लेखक ने एक लंबा पत्र लिखा था। इसमें ये भी कहा गया था कि बिहार में तो खासतौर से देखा है कि जो लड़के लड़कियां तमाम कुरीतियों से दूर अपनी शादियां करने का फैसला करते हैं तो उन्हें रोकने की हर संभव कोशिश होती है। सामाजिक माहौल उनके पक्ष में नहीं होता है। लेकिन सरकार और उसके ढांचे का रवैया भी कम निर्दयी नहीं है। पुलिस तो इस मामले में कुख्यात मानी जाती है।
पत्र में इस लेखक के साथ मुख्य मंत्री के भी तीसके वर्ष पहले पटना में एक दोस्त की एक ऐसी शादी के कार्यक्रम में शामिल होने की चर्चा भी की गई है। उसमें कर्पूरी जी, डा. जगन्नाथ मिश्र और दूसरे कई विधायक और नेता शामिल हुए थे। यह दोनों के शादी के फैसले को सत्ता के संरक्षण होने का एक संदेश देने के लिए यत्न था ताकि सरकारी दमन से बचा जा सकें। इस पत्र में तीसेक वर्ष के बाद पटना के पास दानापुर में लड़के लड़की का एक अंतरजातीय शादी को पंजीकृत कराने के अनुभव की चर्चा की गई है। उस पत्र के अनुसार “नव दंपति के विवाह पंजीकरण के लिए उसी दफ्तर में जाना था जहां संपति खासतौर से जमीन और मकान की खरीद बिक्री का पंजीकरण होता है। दो मनुष्य एक जीवन के रास्ते की तरफ बढ़ने का फैसला कर रहे हैं और इससे ज्यादा खुशी के भाव के लिए और कौन से क्षण हो सकते हैं? मैंने ये देखा कि उस दफ्तर में कई लड़के लड़कियां शादी के अपने फैसले के साथ आए थे लेकिन उन्हें उनके फैसले को हतोत्साहित करने का ही पुरा माहौल उस दफ्तर में पसरा हुआ था। जरा सोचिये कि जिस रजिस्ट्रार के सामने शादी की शपथ लेनी है और वह इस तरह की शादियों के विपरीत ख्याल का हो तो उन लड़के लड़कियों को किस तरह के भावों और क्षणों का सामना करना पड़ता होगा।“
पत्र में अनुरोध किया गया कि शादी करने का फैसला लेने वाले लड़के लड़कियों के लिए सरकारी मशीनरी में व्यापक स्तर पर सुधार करने की जरूरत है। नौकरशाहों को प्रशिक्षित करने का इंतजाम किया जाना चाहिए। शादी ब्याह के लिए पंजीयन की एक अलग से व्यवस्था करें जहां का माहौल खुशनुमा हो। लड़के लड़कियों को इस तरह के फैसले लेने के बाद किस तरह अपने जीवन को व्यवस्थित करना चाहिए, इसका वहां उन्हें अनुभव प्राप्त हो सकें। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सदियों पुरानी रुढियों को तोड़ने वाली नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करने का कार्यक्रम नहीं हो तो दहेज मुक्त और बाल विवाह मुक्त क्षेत्र बनाने की कल्पना कोरी बकवास होगी। बिहार में दहेज मुक्त और बाल विवाह के अभियान की भाषा केवल परिवार के मुखियाओं को संबोधित करने वाली है। आखिर हम किसे कह रहे हैं कि दहेज मुक्त और बाल मुक्त विवाह हो?
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