बिहारः मॉब लिंचिंग पर नीतीश सरकार के फॉर्मूले की निकली हवा, रोकथाम करने वालों की हरकत से वापस खींचने पड़े हाथ
मॉब लिंचिंग रोकने के लिए बिहार में ‘साइबर सेनानी’ नाम से बनाए गए व्हाट्सएप समूहों से कितनी मदद मिली, ये तो नहीं पता, लेकिन ऐसे ग्रुप अब खत्म किए जा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि ग्रुप में मौजूद लोग, खासकर कई रिटायर्ड अधिकारी, इसमें अश्लील वीडियो अपलोड करने लगे।
बिहार सरकार सूबे में उन्मादी भीड़ की जानलेवा हिंसा (मॉब लिंचिंग) के मूल प्रेरक तत्व के तौर पर, अधिकांश राज्यों की तरह सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहरा चुकी है। लिहाजा, सोशल मीडिया की इस ‘करतूत’ पर नजर रखने के लिए पुलिस विभाग में एक सेल को अधिक सक्रिय बनाया गया और साथ ही ‘साइबर सेनानी ग्रुप’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप का भी गठन किया गया है। इसमें पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ रिटायर्ड पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी, समाज के विभिन्न तबके के अन्य प्रतिष्ठित लोग, पत्रकार, साइबर की बारीकियों के जानकार लोगों को बतौर ‘सेनानी’ शामिल किया गया है।
थाने से लेकर जिला स्तर तक के इन सेनानियों के समूह में दो-ढाई सौ लोगों को रखा गया है। इन ग्रुपों से मॉब लिंचिंग पर नियंत्रण में सरकार को क्या मदद मिली, यह जानकारी आम लोगों को अब तक तो मिली नहीं, पर ऐसे कई ग्रुप समाप्त भी किए जाने लगे हैं। ऐसा इसलिए कि ग्रुप के लोग, खास तौर पर रिटायर्ड अधिकारी, इस पर अश्लील वीडियो अपलोड करने लगे। पटना में तो ऐसा होने पर एक ग्रुप को ही समाप्त कर दिया गया। ऐसा ही वाकया दरभंगा जिले के सिमरी थाना से संबद्ध एक ग्रुप ने भी किया। वहां भी ग्रुप को समाप्त कर दिया गया। कुछ अन्य स्थानों से भी इन्हीं आरोपों में सेनानी ग्रुपों को समाप्त कर दिया गया।
बिहार में बहुत सारी घटनाओं-परिघटनाओं से संबंधित सरकार की ‘संवेदनशील सक्रियता’ के नाम पर ‘जुबानी कारबार’ के आम चलन की लंबी और सर्वदलीय परंपरा रही है। इस संदर्भ में मौजूदा सरकार की पूर्ववर्ती सरकारों से अच्छी प्रतियोगिता दिखती है। सूबे में कोई पांच साल से युवा-युगलों को समाज के ‘सड़क-छाप और उच्छृखंल’ कथित मॉनिटर सरेआम हिंसा का शिकार बनाते रहे, पर कहीं किसी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की खबर नहीं है।
मॉब लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक को जुलाई, 2018 में निर्देश दिया था। बिहार सरकार को भी निर्देश मिला, पर कार्रवाई इस साल मार्च के बाद ही सामने आई। जिलों को एक एडवाइजरी भेज दी गई। हाल के महीनों में बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटना बढ़ने लगीं, तो सरकार ने सक्रियता दिखाई- जिलों, अनुमंडलों, प्रखंडों और थानों को इसी अगस्त में उसी पुरानी एडवाइजरी को नए सिरे से भेजकर।
सरकार के इन दिशानिर्देशो में कई बिंदु हैं। इसके अनुसार पंचायत से लेकर जिला स्तर तक जागरूकता अभियान चलाना है, जिसमें पंचायत के वार्ड सदस्यों और नगर निकायों के वार्ड पार्षदों से लेकर सभी स्तर के जनप्रतिनिधि को शामिल करना है। एडवाइजरी के अनुसार अभियान में अनुमंडल स्तर के सभी पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी शामिल रहेंगे। इसी एडवाइजरी में थानों और अधिकारियों को साइबर सेनानी ग्रुप बनाने का आदेश दिया गया है। इस व्हाट्सएप ग्रुप का गठन थानेदारों के लिए अनिवार्य कर दिया गया।
इस एडवाइजरी का दूसरा ऑपरेटिव निर्देश ग्राम के चौकीदारों से जुड़ा है। इसमें कहा गया है कि जहां मॉब लिंचिंग होगी, उस वाकये की जवाबदेही चौकीदार की होगी। उसकी जिम्मेदारी की गाज चौकीदार पर गिर सकती है। हालांकि मॉब लिंचिंग की घटना कहीं न कहीं रोज हो रही है, पर अब तक किसी की भी चौकीदारी पर गाज गिरने की खबर नहीं है।
सूबे में हाल के दशकों में मॉब लिंचिंग की सबसे चर्चित और लोमहर्षक घटना गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या की रही। उस प्रकरण में पूर्व सांसद आनंद मोहन जेल की सजा भुगत रहे हैं। हालांकि, बिहार (अविभाजित) में मॉब लिंचिंग की घटना नई नहीं है। मॉब लिंचिंग के दो तरह के मामले आते थे। पहले- डायन बिसाही के नाम पर महिला की मॉब लिंचिंग और दूसरा बच्चा चोरी के नाम पर किसी अधेड़ की हत्या। बिहार में डायन-बिसाही के नाम पर हत्या की घटना अब कम हो गई है। कुछ समय पहले तक बच्चा चोर के नाम पर भी मॉब लिंचिंग की घटना यदा-कदा ही होती थी, आम तो कतई नहीं थी। पर हाल के तीन-चार महीनों में बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग की वारदात आम होती जा रही है।
बिहार पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार बीते दो-ढाई महीनों में बच्चा चोरी की अफवाह के कारण चालीस से अधिक लोग मॉब लिंचिंग में मारे गए हैं। इनमें अधिकांश विक्षिप्त-अर्द्धविक्षिप्त, बेसहारा और परिवार से निराश बुजुर्ग, भिखारी आदि हैं। पर, कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो समाज की संवेदना पर सवाल खड़े करती हैं। वैशाली जिले में बच्चा चोर की अफवाह ने एक ऐसी महिला की जान ले ली जो अपने लापता पुत्र की तलाश में कई दिनों से बेसुध भटक रही थी। खुद को भीड़ से बचाने के लिए वह विनती करती रही, पर सारी विनती बेअसर रही और लापता पुत्र की आस में उसकी जान चली गई।
इसी तरह बच्चा चोरी के नाम पर कैमूर जिले में राज्य सरकार के कर्मियों और वैशाली जिले में रेलकर्मियों को भीड़ ने बंधक बना लिया था। ये किसी तरह बचा लिए गए। मुजफ्फरपुर जिले में अपनी रोती संतान को चुप कराने में परेशान एक राहगीर महिला को भीड़ की हिंसा का शिकार होना पड़ा। बड़ी मुश्किल से उस महिला का बड़ा पुत्र- जो तेरह-चौदह साल का था- भीड़ को यह समझा सका कि वह बच्चा चोर नहीं, उसकी मां है।
पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी के अनुसार सूबे में बच्चा चोर के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं मुख्यतः वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, सीवान, बेगूसराय, समस्तीपुर, आदि जिलों से आ रही हैं। रोचक तथ्य यह है कि इन जिलों में बच्चा चोरी की घटनाओं की रिपोर्ट पुलिस में न के बराबर प्रतिवेदित हैं। इन जिलों के उन थानों से बच्चा चोर के नाम पर मॉब लिंचिंग की खबर आमतौर पर आ रही हैं, जहां पिछले कई महीनो में बच्चा चोरी या उनके गुम होने की कोई खबर ही नहीं है। फिर ऐसा क्या है कि यहां बच्चा चोर की अफवाह पर निरपराध मारे जा रहे हैं? यह सवाल भी किया जाता है कि बच्चा चोर के नाम पर मॉब लिंचिंग के आरोपों में लोगों पर मुकदमे तो होते हैं, पर वे गिरफ्तार क्यों नहीं होते? फिर, पुलिस-प्रशासन के घोषित व्यापक जागरूकता अभियान और साइबर सेनानी ग्रुप की कोई भूमिका अब तक कहीं दिखती भी है या नहीं?
इन सारे सवालात का जवाब बिहार के समाज को पुलिस महानिदेशक गुप्तेशवर पांडेय के वादों में मिलता है- “कोई बचेगा नहीं, सभी को भीतर जाना होगा”। पुलिस जबर्दस्त हमले की तैयारी में है। पर, एक जिले में तैनात पुलिस विभाग के एक मध्यम स्तर के अधिकारी ने कुछ राज खोलने की कोशिश की। उनकी बातों का लब्बोलुआब यह है कि जिन जिलों में बच्चा चोर की अफवाह पर मॉब लिंचिंग हो रही हैं, वे सभी अपराधग्रस्त जिले हैं। संभव है, मध्यम दर्जे के अपराधी और निचले स्तर के पुलिस अफसरों की सांठगांठ मॉब लिंचिंग के इस उफान के पीछे हो?
यह अनायास नहीं है कि इन जिलों से रोज लूट-पाट, शराब तस्करी, बालू माफिया की करतूत, सामान्य लूटपाट की खबरें कम आ रही हैं और इनकी जगह मॉब लिंचिंग की घटनाएं ले रही हैं, बिहारी समाज इन्हीं मॉब लिंचिंग की खबरों पर अधिक चर्चा करने लगा है! जो भी हो, बिहार सरकार इस सवाल पर फिलहाल शांत है, उसने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है। प्रखंड-थाने से लेकर जिला स्तर तक जागरूकता अभियान की पुख्ता व्यवस्था कर दी गई है।
सोशल मीडिया की करतूत पर नजर रखने के लिए थाना से लेकर अनुमंडल स्तर तक जंबो साइबर सेनानी व्हाट्सएप ग्रुप का गठन कर दिया गया है। अर्थात् प्रशासन और पुलिस हर स्तर पर सक्रिय है ही, पुलिस मुख्यालय में सेल काम कर ही रहा है। फिर करने को क्या बचा है! कवि दुष्यंत कुमार से क्षमा याचना के साथ- हो गई है पूरी व्यवस्था लिंच की/जिन्हें लिंच होना हो, शौक से आएं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia