विष्णु नागर का व्यंग्य: भक्तों, मोदीजी की आलोचना कर उनके स्वास्थ्यवर्धन में योगदान दो!

भूलो मत कि भविष्य यह याद नहीं रखेगा कि किसने मोदीजी की कितने जी जान से प्रशंसा की, बल्कि यह याद रखेगा कि देश के किस-किस नागरिक ने उनके स्वास्थ्यवर्द्धन में कितना अधिक योगदान दिया!

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

मेरे दिल पर रखे एक बड़े पत्थर का बोझ हाल ही में हट गया, बल्कि कई रामशिलाओं का बोझ था।अच्छा यह हुआ कि यह बोझ किसी और ने नहीं, स्वयं मोदीजी ने कृपापूर्वक हटा दिया, यह कहकर कि उनकी अच्छी सेहत का राज रोज होने वाली बीस-तीस किलो आलोचना को ग्रहण करना है।आप तो जानते ही हो, मोदीजी की आलोचना करने में अपन भी पीछे नहीं हैं।

मेरे कुछ शुभचिंतक तो कहने लगे हैं कि तुम्हारे पास क्या अब यही एक काम बचा है कि उनकी टांग खींचते रहो? इतना भी क्या समझ में नहीं आता कि ऐसा करने से तुम्हारा कुछ बुरा भी हो सकता है? मुझे भी लगने लगा था कि प्रधानमंत्री की आलोचना करना वैसे तो ठीक है, लोकतांत्रिक है, जरूरी है मगर इसका बुरा असर कहीं मोदीजी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा होगा तो उन पर और उनके भक्तों पर क्या गुजरेगी? तुम भी उनका स्वास्थ्य बिगाड़ने वाले हजारों-लाखों दोषियों में एक होगे, जबकि उनकी कुल पूंजी उनका स्वास्थ्य और उनकी जुबान ही तो है! स्वास्थ्य गया तो समझो, जुबान भी गई!

वैसे मुझे यह भी लगता था कि हम कीड़े-मकोड़ों की आलोचना की वह क्या परवाह करते होंगे मगर हमारा भी महत्व है, इसका अहसास मोदीभक्त हमें करवाते रहते हैं, इसलिए हम भी मत चूके चौहान की शैली में हाथ लगा अवसर कभी छोड़ते नहीं कि कहीं तो किसी को दर्द हो रहा है तो अपना निशाना सही है। और अब तो उनकी आलोचना का अवसर  छोड़ सकते होंगे तो भी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि अब तो मोदीजी ने स्वयं अपनी आलोचना करने का अलग से स्वतंत्र लाइसेंस हमें जारी कर दिया है।

प्रधानमंत्री का स्वास्थ्य अच्छा रखने में एक या आधा ग्राम प्रतिदिन का मेरा भी विनम्र योगदान है, यह जानकर मैं फूला नहीं समा रहा बल्कि मैं तो मोदीभक्तों को भी विनम्र सुझाव दूंगा कि भैया छोड़ो मोदीजी का बचाव करना, तुम भी उनकी आलोचना करना शुरू कर दो। इस प्रकार उनके स्वास्थ्यवर्द्धन में सहयोग करो। जब हम  उनके विरोधी होकर भी उनके स्वास्थ्यवर्धन में योगदान दे सकते हैं तो तुम भक्त होकर भी इस शुभकार्य में इतनी मदद भी नहीं कर सकते तो तुम्हारी भक्ति, तुम्हारा जीवन धिक्कार है! अरे, अब तो तुम भी हमारी लाइन में लग जाओ, अब किस ग्रीन सिगनल का इंतजार कर रहे हो! भूलो मत कि भविष्य यह याद नहीं रखेगा कि किसने मोदीजी की कितने जी जान से प्रशंसा की, बल्कि यह याद रखेगा कि देश के किस-किस नागरिक ने उनके स्वास्थ्यवर्द्धन में कितना अधिक योगदान दिया! इतिहास में हम जैसों का नाम तो  फिर भी दर्ज हो सकता है मगर तुम जैसों का नहीं होगा। सोच लो, अभी भी मौका है। पूरा साल पड़ा है।

मुझे यह भी अच्छा लगा कि उन्हें आलोचना को किलोग्राम में तौलना आता है। भई गजब है, हालांकि यह काम वह कैसे किन बटखरों से करते-करवाते हैं, यह नहीं बताया। खैर उनकी मर्जी। मेरे द्वारा की गई उनकी अब तक की आलोचना कुछ ग्राम होगी या एक किलो हो चुकी है, नहीं मालूम क्योंकि मुझे अपनी आलोचना का वजन तौलना नहीं आता। मोदीजी तो कह चुके हैं, व्यापार उनके खून में है लेकिन दुर्भाग्य या सौभाग्य से व्यापार मेरे खून में नहीं है, इसलिए मैं नहीं बता सकता! मुझ अज्ञानी को तो यह भी पहली बार पता चला है कि आलोचना को भी किलोग्राम में तौला जा सकता है।

कितना ज्ञान देते रहते हैं हमारे मोदीजी हमें और एक हम हैं कि हाय, उसे ग्रहण तक नहीं कर पाते! मोदीजी ने आलोचना को लोकतंत्र का आधार बताते हुए यह कहने की हिम्मत भी की है कि वह आलोचना की परवाह नहीं करते। सच है परवाह तो वह किसी की भी नहीं करते। उन्हें अपनी परवाह करने से फुर्सत मिले तब तो दूसरों की परवाह करें? वैसे भी देश, प्रधानमंत्री के लिए होता है, न कि प्रधानमंत्री, देश के लिए, इसलिए वह किसी की आलोचना की परवाह करें भी क्यों! परवाह करते भी होंगे तो प्रशंसा की परवाह करते होंगे! वैसे यह भी सही है कि जिस चीज से स्वस्थ रहने में मदद मिलती हो, उसकी परवाह करने की आवश्यकता क्या है? ग्रहण करो और मौज करो। हेल्थ बनाओ और मजे करो।

वैसे उन्होंने यह नहीं बताकर भक्तों पर अन्याय किया है कि उनकी तारीफ़ का उनके स्वास्थ्य से कोई संबंध है या नहीं है! बता देते तो भक्तों को थोड़ी सुविधा हो जाती भगवन्!

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