कोरोना से कहीं ज्य़ादा मौतें खाने और इलाज के अभाव में हो सकती हैं, कठोर कदम से अधिक कार्रवाई में संतुलन जरूरी

कोरोना के खिलाफ हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे कमजोर और गरीब वर्ग की परेशानी न बढ़ें जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। साथ ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए शीघ्र से शीघ्र कदम उठाने की भी जरूरत है। विभिन्न समाधानों के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए अनेक देशों में लाॅकडाउन चल रहा है और इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि इस गंभीर विश्वव्यापी समस्या से निबटने के लिए सामाजिक दूरी, स्क्रीनिंग, परीक्षण और उपचार की आवश्यकता है। पर इसके साथ समाधान के विभिन्न उपायों में वैश्विक संतुलन की भी आवश्यकता है। अन्यथा एक सिरा पकड़ने के चक्कर में दूसरा सिरा छूट जाने से नुकसान उतना ही होगा जितना पहले सिरे को पकड़ने से पहले होने वाला था। यह दूसरा सिरा आजीविका, खाद्य सुरक्षा की समसया और कोरोना के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से त्रस्त रोगियों का संकट है।

पूरे विश्व में विभिन्न कारणों से होने वाली मौतों के आंकड़ों को देखें तो चार महीनों की औसत मृत्यु 1 करोड़ 90 लाख व्यक्ति है। वहीं चार माह से उत्पन्न कोविड 19 के संक्रमण से लगभग 50 हजार लोगों की मौत हुई है, जो कि विश्व की कुल मृत्यु का 0.2 प्रतिशत है। हालांकि यह भी सही है कि यदि कोरोना संक्रमण को उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ सकता है।

जहां कुछ देशों में यह तेज गति से बढ़ रहा है तो कुछ देशों में इसे काबू भी किया जा रहा है। यदि यह मान लिया जाए कि अगले आठ महीनों में इस संक्रमण से होने वाली मौतें पहले के चार महीनों की तुलना में दो गुना रफ्तार से बढ़ती हैं तो पूरे वर्ष या 12 महीनों में पूरे विश्व में यह मौतें 42,000+ 1,68,000 = 2,10,000 होंगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में विश्व में सभी तरह की मृत्यु की संख्या 5 करोड़ 70 लाख है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि एक वर्ष में कोविड 19 संक्रमण से 2,10,000 मौतें होती हैं तो भी यह कुल मौतों का महज 0.4 प्रतिशत होगी।

यदि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए बचाव के जो कदम उठाए गए हैं, उस कारण अन्य समस्याओं जैसे आजीविका के उजड़ने, खाद्य सुरक्षा की क्षति, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे रोगियों की उपेक्षा जैसे कारणों से विश्व मृत्यु संख्या में लगभग 10 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है जो कि 57 लाख अतिरिक्त मौतों के रूप में सामने आ सकता है। स्पष्ट है कि यह कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों से कई गुना अधिक हो सकता है।


कोरोना संक्रमण से बचाव के कदम बेहद जरूरी हैं, लेकिन हाल के अनुभव से हमें यह सीखना है कि कहीं यह कदम जरूरत से ज्यादा कठोर न हो जाएं। यदि ये कठोर कदम लंबे समय तक जारी रहे तो इस स्थिति में लाखों लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता, गंभीर रोगों के लिए उपलब्ध आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लंबे समय तक लोगों के पास आजीविका नहीं होगी, खाद्य सुरक्षा योजना बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाएगी और लोगों को पोषण के अभाव में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा मानसिक समस्याओं का बहुत अधिक सामना करना पड़ेगा जिसके कारण मृत्यु दर में वृद्धि होने की पूरी संभावना है।

लंबे समय तक उठाए गए कठोर कदमों के कारण, आजीविका और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में, मानसिक समस्याओं के बढ़ने से कुछ गंभीर बीमारियों और आत्महत्याओं के कारण विश्व में मृत्यु की संख्या में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है। ऐसी समस्याएं लंबे समय तक रहें तो यह वृद्धि 10 प्रतिशत से भी अधिक हो सकती है।

विश्व स्तर पर मौसमी फ्लू के कारण 5 लाख मौतें हर वर्ष होती हैं। साल 2017 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि मौसमी फ्लू के कारण विश्व में 2.5 लाख से लेकर 5 लाख मौतें होती हैं। पर बाद में एक अध्ययन के आधार पर अनुमान लगाया गया कि प्रतिवर्ष 2 लाख 90 हजार से लेकर 6 लाख 50 हजार तक मौतें होती हैं।

इन सभी से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि हमें बहुत अधिक घबरा कर संतुलन नहीं खोना चाहिए। हमें इस संक्रमण से बचाव की नीतियां बनाते समय व्यापक स्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा। अनेक देशों में बेरोजगारी बहुत है। गांवों में आजीविका की कमी के कारण प्रवासी मजदूर के रूप में शहरों में रहने वाले लोगों की औप दिहाड़ी मजदूरों की संख्या अधिक है। इस स्थिति में संक्रमण से बचाव के लिए बहुत कठोर कदम उठाने से पूर्व सरकारों को गरीब तबके पर होने वाले असर का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी स्वास्थ्य मानदंडों के अनुसार सामाजिक दूरी, स्क्रीनिंग, टेस्ट और इलाज आवश्यक हैं। इसके लिए जरूरी साजोसामान और दवाओं की उपलब्धि भी आवश्यक है। इनमें कोई कमी नहीं होनी चाहिए। पर हमें ऐसी स्थितियों से जिनसे आजीविका और खाद्य सुरक्षा का संकट बढ़ता हो और कोरोना के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से त्रस्त रोगियों के उपचार में बहुत कठिनाई आती हो, तो उनसे बचना भी जरूरी है। हमें पहले की तरह चल रही जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं करनी चाहिए।

हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे कमजोर और निर्धन वर्ग की कठिनाईयां न बढ़ें जो कि सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। साथ ही अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए शीघ्र से शीघ्र कदम उठाने की भी जरूरत है। विभिन्न समाधानों के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है।

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