विष्णु नागर का व्यंग्यः प्रतिमाओं का कद जितना उठेगा, आदमी का कद गिराने में उतनी ही आसानी होगी

वह प्रतिमा भले ही अपने समय के बड़े से बड़े फन्ने खां की हो, चुप रहने में खैर समझती है। चाहे उसका कद बड़ा कर दो या छोटा, उसे गिरा दो या उसके मुंह पर कालिख पोत दो, चुप्पी नहीं तोड़ती। दूसरी तरफ आदमी हैं, उनमें ये सब खूबियां नहीं पाई जातींं।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

एक काम तो मोदी जी भला ही कर रहे हैं, आदमी का कद छोटा और छोटा और छोटा तथा प्रतिमाओं का कद बड़ा और बड़ा और बड़ा करते जा रहे हैं। प्रतिमाएं बोलती नहीं, डोलती नहीं, खाती नहीं, पीती नहीं, लिखती नहीं, खुश अगर नहीं होतींं तो नाराज भी नहीं होतीं! वह प्रतिमा भले ही अपने समय के बड़े से बड़े फन्ने खां की हो, चुप रहने मेें खैर समझती है। चाहे उसका कद बड़ा कर दो या छोटा, उसे गिरा दो या उसके मुंह पर कालिख पोत दो, चुुप्पी नहीं तोड़ती। दूसरी तरफ आदमी है, उसमें ये सब खूबियां पाई नहीं जातींं। जो कल खुश था, आज नाराज हो सकता है। जो कल मोदी-मोदी कर रहा था, आज काले झंडे दिखाने के फेर में लगा रहता है। पुरुषों पर तो भरोसा किया ही नहीं जा सकता था, औरतें भी अब भरोसे लायक नहीं रहीं। मंत्री तक की इज्जत उघाड़ रही हैं! क्या पता कल अंडरगारमेंट को काला झंडा बनाकर मोदी-शाह को दिखाने लगें! लोकतंत्र में इस सबकी इजाजत नहीं  है, हां तानाशाही होती तो बात अलग होती!

अभी मंगलवार को मोदी जी ने रोहतक के पास सर छोटूराम की ‘छोटी सी’, महज 64 फीट लंबी प्रतिमा का अनावरण किया। 'सर' समेत तमाम उपाधियों से वह लैस थे मगर थे तो छोटूराम ही, तो उनकी प्रतिमा भी छोटी है! आप कहेंगे ताऊ तैन्नै कैसे कहा कि छोटी सी है! 64 फीट कम होते हैं के? सर छोटूराम का कद यही कोई पांच फीट कुछ इंच रहा होगा और प्रतिमा का कद 64 फीट है।देखते-देखते भी गरदन अकड़ जाए इतना है और तू कहता है कि छोटी सी है! तो ठहर भाई,अभी एक्सप्लेन करता हूं।

तेरे को मालूम है न और मोदी जी बता भी गए हैं कि वह इसी 31 अक्टूबर को गुजरात में सरदार पटेल की 597 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे! तो 64 फीट ज्यादा हुए या 597 फीट? यहां 64 फीट की प्रतिमा का उद्घाटन करके उन्हें 'बहुत खुशी' हुई, इतनी अधिक खुशी हुई  कि गुजराती बंदा हरियाणवी में शुरू हो गया कि “मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि मैं सर छोटूराम की प्रतिमा का अनावरण कर रहा हूं।” जब फर्जी डिग्री असली 'सर' की प्रतिमा का अनावरण करे तो उसे खुशी होगी ही!

तो मोदी जी को हरियाणा में सर छोटूराम की प्रतिमा का अनावरण करके बहुत खुशी हुई, 31 अक्टूबर को गुजरात में सरदार पटेल की 597 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे तो इतनी ज्यादा खुशी होगी कि उछलने लगेंगे, क्योंकि फिलहाल दावा यह है कि यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इसे ठीक से देखने के लिए मोदी जी ने अभी से गरदन की एक्सरसाइज करनी शुरू कर दी होगी क्योंंकि यह 'महान परिकल्पना' भी मोदी जी की है, तो एक्सरसाइज भी उन्हें ही करनी पड़ेगी!

और अभी तो एक और बहुत बड़ी खुशी उन्हें मिलनी है। मुंबई में शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण करने की। इसे भी विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बताया जा रहा है- करीब 690 फीट की। विश्व एक है, उसमें भारत भी एक है मगर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमाएं हमारे यहां दो-दो होंगी। है न हाथ की सफाई!

बड़ी -बड़ी प्रतिमाएँं बनवाना मोदी जी की खुशी भी है, मजबूरी भी। आदमी का कद छोटा करने के लिए प्रतिमाओं का कद ऊंचा उठाना जरूरी है! गुजरात से बिहार-यूपीवालों को भगाना है तो गांधीजी की नहीं, सरदार पटेल की प्रतिमा का कद ऊंचा करना जरूरी है! किसानों को जानवरों की तरह मार-पीटकर दिल्ली में नहीं आने देना  है या उनकी आत्महत्या का रास्ता स्वच्छ करना है तो सर छोटूराम की प्रतिमा का कद ऊंचा करना पड़ेगा। प्रतिमाओं का कद जितना उठेगा, आदमी का कद गिराने में उतनी ही आसानी होगी।

हमारी प्रतिमाएं अमेरिकी प्रतिमाओं को कद में पीछे छोड़ रही हैं, लेकिन अमेरिकियों को प्रतिमा की चिंता नहीं है, डॉलर से रुपये का कद छोटा और छोटा और छोटा होते जाने की खुशी है! हमें प्रतिमा का कद ऊंचा चाहिए, उन्हें डॉलर का कद ऊंचा चाहिए। हम प्रतिमा की ऊंचाई पर गौरवान्वित हैं, वे रुपये की निचाई पर मुग्ध हैं। मोदी-जेटली बंधु, विश्व में तेजी से बढ़ती भारत की अर्थव्यवस्था का गाना गाकर अपनी प्रतिमाओं को शिवाजी और सरदार पटेल की प्रतिमा से ऊंचा बनाने के फेर में हैं और वे खुश हैं कि भारत में असमानता बढ़ने से 73 फीसदी पूंजी एक फीसदी पूंजीपतियों की जेब की शोभा बढ़ा रही है।

प्रतिमाएं कद में ऊंची हो रही हैं, आदमी की ऊंचाई घट रही है। वह भातीय कम, हिंदू-मुसलमान, ईसाई-सिख अधिक बनाया जा रहा है। आदमी, आदमी कम हो रहा है, गुजराती, बंगाली, मलयाली, यूपीवाला ज्यादा हो रहा है और सबसे ज्यादा अपनी जातवाला हो रहा है। बेचारे प्रेमचंद को भी प्रेमचंद कम रहने दिया जा रहा है, उन्हें कायस्थ कुल शिरोमणि अधिक बनाया जा रहा है। मंदिर ज्यादा बन रहे हैं, उनमें एक से एक शानदार और ऊंची मूर्तियां लग रही हैं और आदमी, आदमी नहीं, मोदी जी का भक्त बन रहा है  या उनका शत्रु बनाया जा रहा है। आदमी देशभक्त और देशद्रोही मेें तब्दील किया जा रहा है। कुछ को देशभक्त होने की ही सुविधा प्राप्त है, कुछ को देशद्रोही होने का ही 'अधिकार' हासिल है। नेहरू मुसलमान सिद्ध किए जा रहे हैं और सरदार पटेल सच्चे हिंदू से ज्यादा सच्चे संघी बनाये जा रहे हैं। अब तो लगने लगा है  कि पटेल, 'मुस्लिम' नेहरू के मंत्रिमंडल के नहीं, 'हिंंदू' मोदी के  मंत्रिमंडल के सदस्य थे। प्रतिमाएं ऊंची हो रही हैं और आदमी, नागरिक से अधिक वोटर और वोटर से अधिक लोकतंत्र का मूक दर्शक बनाया जा रहा है। भारत का कद  बच्चियों और लड़कियों को पिटवाकर, उनके बलात्कारियों को बचाकर ऊंचा उठाया जा रहा है और किसानों का कद उनके सामने आत्महत्या के हालात पैदा करके! सबका साथ है तो सबका विकास भी हो रहा है। प्रतिमाएं सत्ता का साथ देने में ज्यादा सक्षम हैं, इसलिए उनका 'विकास' एक तरह से और आदमी का 'विकास' दूसरी तरह से किया जा रहा है।

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