मृणाल पाण्डे का लेखः बिना ट्रेनिंग अग्निवीरों का गदर सरकार के लिए चेतावनी, प्रशिक्षण बाद रोड पर आए तो भगवान मालिक

बिना आर्मी प्रशिक्षण के भी युवाओं के गुस्साए दस्तों ने जिस तरह तमाम कीमती परिसंपत्तियों को जलाया और लूटा है, वह भगवान न करे, दोबारा देखने को मिले क्योंकि तब प्रशिक्षित अग्निवीरों का गुस्सा और धारदार, और घातक बन कर बाहर निकल सकता है।

फोटोः नवजीवन
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मृणाल पाण्डे

उन्नीसवीं सदी में जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के कथित शासकों के निपट नाकारापन और जनविमुख जीवनशैली के प्रताप से अपने पैर जमा रही थी, तो उसने अपने दमनकारी शासन में मदद के लिए एक नेटिव सेना का गठन किया। ललमुंहे अंग्रेज अफसर गांव-गांव घूमकर खाते-पीते किसान घरों से ऊंची जात के लड़कों को कंपनी की कुमुक में भरती करने निकल पड़े। इस क्रम में सीताराम पाण्डेय का 1812 में एक सिपाही के रूप में बंगाल की नेटिव आर्मी के लिए चयन हुआ। 1860 में वह सूबेदार बन कर रिटायर हुए।

इस बीच वह गुरखों, पिंडारियों, मराठों, अफगानों और सिखों के खिलाफ लड़़े और अपनी स्वामिभक्ति, हौसले तथा वीरता के बल पर लगातार तरक्की करते गए। 1857 की बगावत के समय वह सेना में थे और भारतीय होकर भी सिपाहियों के विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों के पक्ष में लड़़े यद्यपि उनकी आंखों के सामने उनके अपने बेटे अनंती को विद्रोह के जुर्म में गोली मार दी गई। अपने अफसर की प्रेरणा से लिखी उनकी आत्मकथा एक भारतीय सैनिक की दृष्टि से लिखे गए गदरकालीन भारत का एक दुर्लभ ऐतिहासिक और मानवीय दस्तावेज है जो लंदन से अंग्रेजी अनुवाद में भी छपी और सैनिक तबकों में गहरी चर्चा का विषय रही।

दरअसल, एक फौज समाज से इतर नहीं होती। उसकी संरचना, उसका स्वरूप, प्रशिक्षण और अफसर सैनिक कमान की चेन उस समय के राज समाज का आईना होती है। अपनी अवधी में लिखी आत्मकथा में सूबेदार सीताराम पाण्डेय 1857 के आसपास के समय की सोच को ‘पागलपन की बयार’ कहते हैं। आज जब हमको प्रतिरक्षा मंत्रालय की तरफ से इस योजना को अमली जामा पहनाने वाले ले. जनरल पुरी सार्वजनिक मीडिया पर नजर आते हैं, तो उनकी भाषा, उनकी सोच और नजरिये पर हमारे आज के राजकाज की साफ छाप पढ़़ी जा सकती है।

सड़कों पर हिंसक भीड़ के उपद्रवों और विपक्षी दलों के मुखर विरोध के बावजूद उनकी मार्फत सरकार देश से कहती है कि अग्निपथ रिक्रूटमेंट स्कीम कतई रोल बैक नहीं की जाएगी। यही नहीं, अब उसे जल्द से जल्द साकार किया जाएगा। 83 गांवों में चयन रैलियां बुला कर हर रैली में औसतन 7,772 फौजी जवानों का चयन अगस्त से शुरू हो जाएगा और साढ़े सत्रह स़े से 23 बरस तक के अग्निवीरों की पहली खेप दिसंबर और दूसरी आगामी फरवरी में सेना में चार बरस को भर्ती कर ली जाएगी। विमानन सेवाओं ने भी अपनी टुकड़़ियों के युवा अग्निवीरों को ओडिशा में चिलका लेक पर नवंबर से ट्रेनिंग देना शुरू करने का ऐलान कर दिया है।

यह भी बताया गया कि इस महती योजना का मूल लक्ष्य पैसा बचाना या पेंशनरों की तादाद में कटौती करना या तनख्वाह-भत्ते कम करना नहीं। अंतिम लक्ष्य तो सेना में फौजी जवानों की औसत आयु 32 से कम करके उसे 27 पर ले आना है। सड़कों पर उमड़ते विरोध को कम करने के लिए कुछ खास छूटों का तांता लगाया गया है। इसके तहत पांच बरस बाद (बिना पेंशन) रिटायर होने वाले अग्निवीर जो कुल भर्ती किए गयों का 75 फीसदी होंगे, जब बाहर सिविल जीवन में वापिस आएंगे, तो उनके लिए कई सार्वजनिक उपक्रमों और सरकारी सशस्त्र बलों जैसे सीआरपीएफ, सीमा सशस्तत्र बलों, आईटीबीपी तथा कोस्ट गार्ड में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान होगा। भाजपा नेता विजयवर्गीय ने तनिक और व्यवहारिक बन कर रिटायर्ड प्रशिक्षित अग्निवीरों को भाजपा के दफ्तरों में चौकीदारी देने तक का एक चौंकाने वाला प्रस्ताव भी दिया है।


इस तरह हवा बांधी जा रही है कि पांच साल तक सरकारी वेतन और प्रशिक्षण पाने तथा अशांत इलाकों में तैनाती के बाद यह वीर सड़क पर उतरे नहीं कि सुरक्षाकर्मी, गार्ड और चौकीदारी तक की नौकरियां उनका इंतजार करती होंगी। यह बात भी बार-बार दोहराई गई है कि उनको एकमुश्त 12 लाख रुपये भी सेवानिवत्तृ होने पर दिए जाएंगे जिनसे वे भाई-बहन की पढ़़ाई या शादी या खेती के लिए ट्रैक्टर खरीद कर या उनका निवेश किसी भले से स्टार्ट अप में करके मालामाल हो सकते हैं। जो बात कही नहीं जा रही, पर हर अनुभवी अभिभावक के मन में है, कि जब बिन कॉलेज डिग्री लिए स्कूल के तुरत बाद ही फौज में अग्निवीर भर्ती हो गया उनका छोरा बाहर निकलेगा, तो उसकी उम्र 22 से 28 के लगभग होगी। उसके संगी तब तक आगे पढ़़ाई करते होंगे या कुछ और काम पकड़ कर गिरस्ती बसा चुके होंगे जो घरवालों की दूसरी सबसे बड़ी साध होती है।

तब उनके कम उम्र के रिटायर्ड बिना भत्ते पेंशन के घर आए इन बालकों का के होवेगा? सरकार का कहना है जब होगा, तब देखिएगा। पर अब तक के अनुभव तथा विजयवर्गीय जी के ताजा शब्दों के उजास में उनका कॅरियर एक ठो अनाम सिक्योरिटी कर्मी की बटनदार वर्दी और कैप पहन कर किसी एटीएम के बाहर स्टूल पर निगहबानी करने, या मालों पर एक्सरे से आते-जातों का सामान चेक करने या अशांत अथवा सरकार के लिए सरदर्द बने किसी शिक्षा परिसर में डंडा भांजते हुए घुसकर छात्र नेताओं की धुनाई, पकड़-धकड़ से बहुत आगे जाता नहीं दिखता।

गौरतलब है कि सरकारी संस्था सीएमआई द्वारा अप्रैल, 2022 में देश में बेरोजगारी के आंकड़ों में ताजा बढ़त 7.83 फीसदी की दर्ज हुई है। उसके मद्देनजर एक दो लाख अग्निवीर देश की कुल बेरोजगार आबादी (लगभग 7.83 मिलियन) के विशाल सागर की एक बूंद भर हैं। पर इस नई नौकरियों की इस छोटी सी लेकिन विवादास्पद खुलवाई से ही जैसा महाभारत मच गया है, वह अग्निवीरता के मामले का जैसे-तैसे निबटान होने के बाद भी बार-बार खुलने की आशंका है। नियमित नौकरी और उचित वेतनमान, भत्ते तथा पेंशन के मसलों पर युवाओं की जो अपेक्षाएं, चिंताएं और जायज डर सामने आए हैं, वे सेना ही नहीं, किसी भी क्षेत्र पर लागू होंगे।

गौरतलब यह भी है कि यह सब अग्निवीर सेना के प्रशिक्षण के दौरान सशस्त्र मुठभेड़ों के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं। इसके तहत किसी मुठभेड़ की दशा में दूसरे पक्ष को दुश्मन मान कर टूट पड़ना सिखाया जाता है। बाहर आने पर सिविलियन जीवन के दौरान उनकी वह मनोवृत्ति खुद ही काफूर हो जाएगी, कहना कठिन है। इधर, बिना आर्मी प्रशिक्षण के भी उनके गुस्ससाए दस्तों ने जिस तरह तमाम कीमती परिसंपत्तियों को जलाया और लूटा है, वह भगवान न करे, दोबारा देखने को मिले क्योंकि तब प्रशिक्षित अग्निवीरों का गुस्सा और धारदार, और घातक बन कर बाहर निकल सकता है।


हमेशा की तरह शीर्ष पर अब तक खामोशी है और अग्निपथ योजना का बचाव सेना बलों के प्रमुख या धीर गंभीर प्रतिरक्षा मंत्री जी को सौंप कर सरकार के कर्तव्य की इतिश्री मान ली गई है। पर जिन फौजी अफसरान ने खुद अपने लिए प्रस्तावित अल्पकालीन पोस्टिंग को पुरजोर विरोध और ठोस तर्क देकर निरस्त कराया था, क्या फौजी जवानों के लिए भी वे वही मानक लागू नहीं करेंगे? क्या शहरी सुशिक्षित अफसरों के बच्चे अफसर और खेतिहरों के बच्चे हमेशा अग्निवीर ही बनते रहेंगे?

हमारी राय में घोषणा करने वालों के लिए दीर्घ अनुभव के मालिक सीताराम पाण्डेय की आत्मकथा के अंतिम अध्याय की कुछ बातें आज भी गौरतलब बनती हैं। उनके अनुसार, एक मामूली सिपाही मूलत: ठीकठाक तनख्वाह और पेंशन चाहता है और उसका भरोसा मिल जाए, तो खुश हो जाता है। पर सरकार को एक बात समझनी होगी। अगर उसे अच्छे लोग चाहिए, तो उसे तनख्वाह ठीक देनी होगी और 25 साल बाद ठीकठाक पेंशन भी। अगर लड़ाई होगी, तो सिपाही उन अफसरों के लिए कभी नहीं लड़ेंगे जिनको वे नापसंद करते हैं। वे उस सरकार के लिए भी नहीं लड़ेंगे जो उनकी राय में उनकी परवाह न करती हो।

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