आकार पटेल का लेख: क्या कोरोना संक्रमित लोगों की असली संख्या को छिपाया जा रहा है !
पूरे देश में आखिर लॉकडाउन क्यों है? हमारी अर्थव्यवस्था ठप हो गई है और अंदेशा है कि हमारी जीडीपी में इससे कम से कम 5 फीसदी का नुकसान होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन का वाजिब और दमदार कारण है कि हम सब लोग अपने घरों में ही रहें। लेकिन आखिर कारण है क्या?
पूरे देश में आखिर लॉकडाउन क्यों है? हमारी अर्थव्यवस्था ठप हो गई है और अंदेशा है कि हमारी जीडीपी में इससे कम से कम 5 फीसदी का नुकसान होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन का वाजिब और दमदार कारण है कि हम सब लोग अपने घरों में ही रहें। लेकिन आखिर कारण है क्या?
प्रसिद्ध जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स, अर्थशास्त्र और नीति ने भारत में कोरोनावायरस के प्रसार की भविष्यवाणी करते हुए एक अध्ययन जारी किया है। इसने तीन संभावित तस्वीरों को सामने रखा है:
- उच्च – मौजूदा लॉकडाउन के बाद कम से कम सोशल डिस्टेंसिंग या इसका अनुपालन
- मध्यम – यह ज्यादा संभावित तस्वीर है जिसमें ठीकठाक या फिर पूर्ण अनुपालन लेकिन वायरस के फैलाव में कोई कमी नहीं और न ही तापमान या आर्द्र संवेदनशीलता में कोई बदलाव
- कम – यह आशावादी तस्वीर है जिसमें वायरस का फैलाव कम होगा और तापमान और आर्द्र संवेदनशीलता में भी कमी आएगी
जो कम या आशावादी तस्वीर है उसमें कहा गया है कि जून तक कुल 12 करोड़ भारतीय इस बीमारी से संक्रमित होंगे और इनमें से कम से कम 11 लाख अस्पतालों में भर्ती होंगे। चूंकि भारत में केवल 70,000 आईसीयू बेड हैं और केवल 40,000 वेंटिलेटर हैं, इसलिए इन लोगों में से ज्यादातर को इलाज मिल ही नहीं पाएगा।
मध्यम तस्वीर को समझें तो इस सीनेरियो में कम से कम 18 करोड़ लोगों के संक्रमित होने और 18 लाख लोगों के अस्पतालों में भर्ती होने की आशंका जताई गई है। इसके अलावा उच्च यानी हाई संभावना वाले सीनेरियों के मुताबिक कम से कम 25 करोड़ भारतीय इस बीमारी से संक्रमित हो सकते हैं और इनमें से कमसे कम 25 लाख लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ेगा।
ये ऐसी संख्या है जिसे मैनेज करना हमारे बस में नहीं है। भले ही ये सबसे कम संख्या ही क्यों न हो। क्या सरकार इन परिदृश्यों को मानने को तैयार होगी? और अगर नहीं, तो क्या फिर सरकार के पास कोई आंकलन या सीनेरियो है? कम से कम अभी तो हमें इस बारे में नहीं पता है।
तो फिर एक बार सवाल दोहराते हैं कि आखिर भारत लॉकडाउन में क्यों है? इसका उत्तर यह तो नहीं हो सकता कि हम 21 दिनों के अंत में इस बीमारी को हरा देंगे। चीन में भी यह बीमारी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। और इसका जवाब यह भी नहीं हो सकता है कि वायरस का प्रसार को रोकने के लिए ऐसा किया गया है, क्योंकि प्रसार वैसे भी होने जा रहा है।
एकमात्र संभावित कारण यह माना जा सकता है कि लॉकडाउन वायरस के फैलाव को धीमा कर देगा। लेकिन फिर इसके बाद क्या? इसका उत्तर भी नहीं है किसी के पास क्योंकि सरकार ने लॉकडाउन के अलावा देशवासियों के साथ कुछ भी चर्चा नहीं की। भ्रम थोड़ा जटिल है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत इस वायरस के फैलाव को झेलने के लिए ज्यादा सक्षम है उस तरह से फैल रहा है जैसे कि अन्य देशों में हुआ है। जबकि न्यूयॉर्क इससे लगभग तबाह हो रहा है और यहां तक कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री तक संक्रमित हो चुके हैं। तो फिर भारत में आखिर चल क्या रहा है?
दरअसल हमें पता ही नहीं है कि वास्तव में भारत में कितने लोग संक्रमित हैं। शनिवार तक अमेरिका में कोरोना वायरस के कुल 5.5 लाख टेस्ट हुए हैं, वहीं जर्मनी में 4.5 लाख, कोरिया और इटली 3.5 लाख टेस्ट हुए हैं। इस दौरान भारत ने कुल 27000 टेस्ट ही किए हैं। यह संख्या उतनी ही है जितनी कि नीदरलैंड में हुए टेस्ट की, जबकि नीदरलैंड की कुल आबादी दिल्ली से भी कम है। नीदरलैंड में अभी तक करीब 8000 टेस्ट पॉजिटिव आए हैं।
हमारे यहां आंध्र प्रदेश में शनिवार तक केवल 384 लोगों का परीक्षण किया गया है, जबकि आंध्र से कम आबादी वाले स्पेन ने अब तक 3.5 लाख लोगों का परीक्षण किया है। ऐसा लगता है और शायद तथ्य भी यह है कि हमारे यहां पॉजिटिव केसों की संख्या को छिपाया जा रहा है। सवला सिर्फ इतना सा रह गया है कि आखिर कितनी संख्या को छिपाया जा रहा है?
समूचे दक्षिए एशिया में कोरोना पाज़िटिव केसों की संख्या बहुत कम है। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा 1200, भारत में करीब 900 और बांग्लादेश में सिर्फ 44 है। वहीं श्रीलंका में 104 और नेपाल 3 और मालदीव में 13 है यह संख्या।
भारत में इतने कम टेस्ट होने के बीच कुछ राज्य दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा टेस्ट कर रहे हैं। भारत में सर्वाधिक पॉजिटिलव केस केरल में सामने आए हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि केरल दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा लोगों के टेस्ट कर रहा है। 24 मार्च तक, केरल में 4500 लोगों का परीक्षण किया गया था, लेकिन महाराष्ट्र में हालांकि उस समय पॉजिटिव केसों की संख्या उस समय केरल से 24 अधिक थी , फिर भी वहां सिर्फ 1000 लोगों का ही टेस्ट किया गया था। इसका मतलब यह नहीं है कि केरल में अधिक संक्रमित लोग हैं; केवल यह कि इसने अन्य राज्यों की तुलना में अधिक टेस्ट किए हैं।
तो सवाल यह है कि आखिर हम टेस्ट कर क्यों नहीं रहे हैं? स्क्रॉल ने कुछ राज्य सरकारों से बात कर निष्कर्ष निकाला है कि इसका कारण टेस्टिंह किट्स की कमी नहीं है बल्कि टेस्ट करने वाली लैब की कमी है। कई राज्यों में इस टेस्ट को करने के लिए एक भी प्रयोगशाला नहीं है। मसलन नागालैंड को असम में नमूने भेजने पड़ते हैं। दूसरा कारण यह है कि लोग निजी प्रयोगशालाओं से परीक्षण कराने में यूं झिझक रहे थे कि उन्हें लगता था कि सैंपल लेने के लिए नर्सें पूरी सैनिटाइज पोशाक में उनके घर पहुंच जाएंगी, ऐसे में पड़ोसी उनका बहिष्कार कर देंगे, इसलिए लोगों ने प्राइवेट लैब्स स परीक्षण कराने का इरादा ही छोड़ दिया।
प्राइवेटलैब में टेस्ट कराने में 4500 रुपये लगते हैं, और जब लोगों को पता लगा कि इसके पैसे देने हैं यह मुफ्त नहीं है, तो बहुत से लोग टेस्ट कराने से बचने लगे। दूसरी तरफ कई लैब्स का मानना है कि इतने जटिल टेस्ट के लिए 4500 रुपए बहुत कम रकम है और बिना जरूरी सैनिटाइज़ पोशाकों के वे अपने स्टाफ को खतरे में नहीं डालना चाहते। इस सबके चलते हमारे यहां कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या बहुत कम नजर आ रही है।
इस सबके बाद आखिर क्या होगा? इसका उत्तर केवल तभी मिल सकता है जब हमें पता लगे कि लॉकडाउन के पीछे आखिर असली मकसद और इसका अर्थ क्या है? जैसा कि शुरुआती दिनों में ही सामने आ गया कि हमारी तैयारी कैसी है क्योंकि लाखों लोग देश भर में एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, इनके पास न खाने को कुछ है और न ही पैसा।
ऐसे में सवाल उठा है कि अगर लाखों या करोड़ों लोग संक्रमित हो गए तो सरकार उस स्थिति से निपटेगी कैसे? दुर्भाग्य से यह काल्पनिक प्रश्न नहीं है।
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