अमेरिकी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स ने कोरोना को माना कुदरती, लेकिन जो कहानी सामने आ रही है वो बेहद परेशान करने वाली है!
विश्व भर में कहर मचा रहा कोरोना वायरस आया कहां से, इसकी उत्पत्ति कहां हुई? ये वायरस चीन के वुहान स्थित फूड मार्केड में पहुंचा कैसे और फिर इंसान में कैसे फैला इसको लेकर दुनिया भर के लोग जानने में लगे हैं। इस पर रिसर्च भी चल रहा है।
विश्व भर में कहर मचा रहा कोरोना वायरस आया कहां से, इसकी उत्पत्ति कहां हुई? ये वायरस चीन के वुहान स्थित फूड मार्केड में पहुंचा कैसे और फिर इंसान में कैसे फैला इसको लेकर दुनिया भर के लोग जानने में लगे हैं। इस पर रिसर्च भी चल रहा है। लेकिन अब इन सवालों के जवाब की कड़ियां अब एक दूसरे से जुड़ती जा रही हैं और जो कहानी बनकर सामने आ रही है वह बेहद परेशान करने वाली है।
तो आइए कंडियों को जोड़कर ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि ये आया कहां से। जहां तक 17 मार्च तक की बात है सार्स-CoV-2 ( कोरोना वायरस परिवार का एक सदस्य जो श्वास तंत्र की बीमारियों का कारण बनता है। यही कोविड-19 है। ) वायरस कुदरती विकास की पैदाइश है। कैलीफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ला जोला की छुआ-छूत वाली बीमारियों की विशेषज्ञ क्रिस्टियन जी एंडरसन और उनके सहयोगियों ने इसके जेनेटिक विकास क्रम के एक अध्ययन में इस संभावना को ख़ारिज कर दिया है कि इसे लैब में बनाया जा सकता है या फिर कृत्रिम रूप से तैयार किया जा सकता है। मामला कांसिपिरेसी थियरीज तक जाता है।
अगला कदम कुछ और ज्यादा ही अनिश्चित है। लेकिन ऐसा लगता है कि वायरस के लिए असली जानवर से जुड़ा सामूहिक स्रोत चमगादड़ था। एंडरसन की टीम यह दिखाती है कि- उनसे पहले चीनियों ने जैसा किया- सार्स-CoV-2 का विकास क्रम दूसरे कोरोना वायरस की तरह है जो चमगादड़ों को संक्रमित करता है।
क्योंकि दूसरे कोरोना वायरस इंसानों में एक मध्यस्थ मेजबान जानवर के जरिए संक्रमित हुए हैं इसलिए ऐसा लगता है कि इसने भी ऐसा ही किया होगा। वह जानवर शायद वही हो जिसे कुछ चीनी लोग खाना पसंद करते हैं। इसीलिए उसे वेट मार्केट ( ऐसा बाजार जहां फ्रेश मीट, मछली, सी फूड और ढेर सारे उत्पाद बेचे जाते हैं) में बेचा जाता है। यह वही स्तनधारी परतदार जानवर हो सकता है जिसे पैंगोलिन नाम से जाना जाता है। इसे आखिरी तौर पर साबित नहीं किया जा सकता है। लेकिन ढेर सारे समूहों ने सार्स-CoV-2 और पैंगोलिन को संक्रमित करने वाले दूसरे कोरोना वायरसों के बीच विकास क्रम की उसी तरह की समानताएं पाई हैं।
अगर सही में वायरस ने इंसानों तक पहुंचने में यही रास्ता अपनाया है तो इसमें दो महत्वपूर्ण अंतराल हैं: एक हम और मध्यस्थ मेजबान शायद एक पैंगोलिन और दूसरा वह मध्यस्थ मेजबान और चमगादड़। चीनी वेट मार्केट पर निशाना साधते हुए उस पर आरोप लगाने के जरिये ज़्यादा ध्यान इंसानों और मध्यस्थ मेज़बानों वाले अंतराल और उनके खाने की आदतों पर केंद्रित किया गया। लेकिन वैश्विक महामारी को इतना बड़ा रूप लेने के लिए दोनों अंतरालों की ज़रूरत है। इसलिए कहां और कैसे चमगादड़ से पैंगोलिन या फिर दूसरे जंगली जानवर या अर्ध जंगली मध्यस्थ मेजबान में संक्रमण हुआ। क्या यह हासिल हो गया?
एंडरसन ने बताया कि “हमारा अध्ययन सीधे तौर पर भौगोलिक उत्पत्ति पर प्रकाश नहीं डालता है।” “हालांकि, अभी तक मौजूद सभी सबूत दिखाते हैं कि यह चीन के भीतर था।”
इसका मतलब है कि मामला समाप्त हो गया। और राष्ट्रपति ट्रंप जो सार्स-CoV-2 को चीनी वायरस बता रहे हैं वह ठीक है। बिल्कुल नहीं। क्योंकि अगर आप यह जानना चाहते हैं कि यह वैश्विक बीमारी आज क्यों पैदा हुई 20 साल पहले नहीं- क्योंकि चीनी लोगों का जो स्वाद है जिसके लिए पश्चिम उसे ज़िम्मेदार मान रहा है वह कोई नया नहीं है- तो आपको ढेर सारे दूसरे कारणों को भी इसमें शामिल करना होगा। सेंट पॉल में ऐग्रोकोलाजी एंड रुरल इकोनामिक्स रिसर्च कॉरपोरेशन में विकासमान जीव विज्ञानी मिन्नेसोटा ने बताया कि “हम स्रोत- वायरस, सांस्कृतिक अभ्यास- को दोषी ठहरा सकते हैं, लेकिन नुकसान लोगों और इकोलाजी के बीच रिश्तों तक पहुंचता है।”
1990 में शुरू होकर अपने आर्थिक परिवर्तन के हिस्से के तौर पर चीन ने अपने खाद्य उत्पादन की व्यवस्था को औद्योगिक स्तर तक ले गया। एक तरफ इसका प्रभाव जैसा कि मानव विज्ञानी लाइन फियर्नली और क्रिस्टोस लिंटरिस ने दस्तावेजीकृत किया है, यह हुआ कि छोटी जोत के किसान बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए और पशुधन उद्योग से बिल्कुल बाहर फेंक दिए गए। इस प्रक्रिया में जीने के लिए नये रास्ते की तलाश में उनमें से कुछ ने जंगली जीव-जंतुओं की खेती शुरू कर दी जिन्हें पहले केवल मजबूरी में जीने के एक साधन के तौर पर देखा जाता था।
इसके साथ ही जंगली खाद्य औपचारिक रूप से एक सेक्टर के तौर पर चिन्हित किया जाने लगा। और फिर आगे बढ़ने के साथ ही एक लक्ज़री प्रोडक्ट के तौर पर उसकी ब्रांडिंग शुरू हो गयी। लेकिन छोटी जोत वालों को न केवल आर्थिक रूप से बाहर कर दिया गया जैसा कि औद्योगिक खेती के लिए ज़्यादा से ज़्यादा खेतों की ज़रूरत होती है, इन छोटे किसानों को भौगोलिक तौर पर भी बाहर कर दिया गया- और खेती न करने योग्य ज़मीन के बिल्कुल करीब धकेल दिया गया। जंगलों के बिल्कुल नज़दीक वह स्थान जहां चमगादड़ और वायरस उन्हें संक्रमित करने के लिए घात लगाकर बैठे रहते हैं। इस पहले अंतराल के दौरान घनत्व और संपर्कों की आवृत्ति दोनों बढ़ जाती है। इस तरह से उसके फैलाव का ख़तरा भी बढ़ जाता है।
इससे चीन का अपराध कम नहीं हो जाता है। एवियन फ़्लू के दो बड़े रोगाणु रूप- H5N1 और H7N9 हाल के दशकों में उसी देश में पैदा हुए थे। दोनों इंसानों को संक्रमित करते हैं। हालांकि ऐसा आसानी से नहीं होता है। H7N9 का पहला इंसानी केस 2013 में सामने आया था और उसके बाद तकरीबन उसका हर साल फैलाव होता है। लेकिन गिल्बर्ट कहते हैं कि “इस पर तब तक कुछ नहीं किया गया जब तक कि इस रोगाणु ने चिकेन को संक्रमित नहीं किया था। उसके बाद यह महत्वपूर्ण आर्थिक मसला बन गया। और चीन ने H7N9 के खिलाफ व्यापक पैमाने पर पोल्ट्री वैसिनेशन का कार्यक्रम संचालित कर दिया। और फिर इसके साथ ही इंसानों में इसके संक्रमण का अंत हो गया।”
चीन दुनिया के मुख्य पोल्ट्री निर्यातक देशों में एक है। लेकिन इसका पोल्ट्री उद्योग पूरी तरह से चीनी मालिकाने वाला नहीं है। उदाहरण के लिए 2008 की मंदी के बाद न्यूयार्क स्थित निवेशक बैंक गोल्डमैन सच ने अपनी मालिकाना पूंजी को वितरित कर उसके एक हिस्से को चीन के पोल्ट्री फार्म में डाल दिया था। इसलिए इन घटनाओं को फैलाने में चीन की अपनी ज़िम्मेदारी है तो वह इस मामले में अकेला नहीं है। इसीलिए जब बीमारी के कारणों की पहचान की बात आती है तो वालेस केवल भौगोलिकता के बजाय संबंधात्मक भूगोल के आधार पर बात करने पर ज़ोर देते हैं। या फिर जैसा कि वह कहते हैं: ‘पैसे के पीछे जाओ।’
सोशल मीडिया पर इस बात का दावा है कि अगर हम कम मीट खाते हैं तो कोई कोविद 19 नहीं होगा। दिलचस्प बात यह है कि अंशत: झूठा करार देकर इनमें से कुछ को मुख्यधारा के मीडिया आर्गेनाइजेशन ने ब्लॉक कर दिया। लेकिन दावा भी आंशिक रूप से ही सही है। हालांकि इस मामले में वे जिस लिंक का हवाला दिया गया है वह बेहद सरलीकृत है। अब इस बात के बहुत मज़बूत प्रमाण हैं कि मीट के उत्पादन के तरीक़े ने- न केवल चीन में- कोविद 19 में योगदान दिया है।
यह बात बिल्कुल साफ़ है कि रोकने या फिर कम से कम नये जूनोज के पैदा होने की गति को धीमा करने के लिए चीन की वेट मार्केट के अच्छे तरीक़े से रेगुलेशन की ज़रूरत है। लेकिन हमें उन बाज़ारों के पीछे भी देखने की ज़रूरत है कि कैसे वैश्विक तौर पर हमारे भोजन का उत्पादन किया जाता है।
वालेस कहते हैं कि हालांकि इस समय यह उस तरह से महसूस नहीं किया जा सकता है लेकिन सार्स-CoV-2 के मामले में हम लोग भाग्यशाली हैं। यह H7N9- जो संक्रमित लोगों के एक तिहाई को मार देता है- से कम खतरनाक है या फिर H5N1- जो उससे भी ज्यादा मारता है। वह कहते हैं कि यह हमें अपने जीवन जीने के तरीक़ों पर सवाल करने का एक अवसर देता है। क्योंकि चिकेन अगर लाखों लोगों को मारता है तो वह सस्ता नहीं है। और इस प्रक्रिया में उन राजनेताओं को वोट करिए जो ऐसे खेती के व्यवसाय को अपनाने की बात करते हैं जो पारिस्थितिकी, सामाजिक और विषाणुगत स्थायित्व के उच्च मापदंडों के लिए खड़े होते हैं। वह कहते हैं आशा है कि यह कृषि उत्पादन, ज़मीन के इस्तेमाल और संरक्षण के बारे में हमारी राय को बदल देगा।
लौरा स्पिनी द्वारा गार्जियन में लिखे गए अंग्रेज़ी की यह रिपोर्ट सबसे पहले जनचौक में प्रकाशित हुई थी
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