कोरोना वायरस से कहीं ज्यादा खतरनाक है वायु प्रदूषण, लाखों मौतों के बाद भी सरकार में कोई सुगबुगाहट नहीं
वैसे तो जीवन से जुड़े हरेक मसले पर पूंजीवाद हावी है, पर प्रदूषण के मुद्दे पर तो पूंजीवादी सोच पूरी तरह से हावी है, जिसमें गरीबों का और ग्रामीण क्षेत्रों का कहीं नामो-निशान भी नहीं हैI शहरों की गरीब आबादी भी हमेशा प्रदूषण दूर करने के उपायों से छुट जाती हैI
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 (कोरोना वायरस) से देश में अब तक 1.46 लाख लोगों की मौत हो चुकी हैI मौत के ये आंकड़े डराते हैंI कोरोना के विस्तार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया, लोग अपने स्तर पर सावधानी बरत रहे हैं, पूरे समाज का व्यवहार बदल गया और अब लोग बेसब्री से इसके टीके का इंतज़ार कर रहे हैंI दूसरी तरफ पिछले वर्ष भारत में 16.7 लाख मौतें अकेले वायु प्रदूषण के कारण हो गईं, जो देश में कुल मौतों का 18 प्रतिशत है, पर न ही सरकार सचेत हुई और न ही जनता में इसके लिए कोई सुगबुगाहट हैI इन आंकड़ों को हाल में ही प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित किया गया हैI
‘लांसेट’ में प्रकाशित लेख के अनुसार, 2019 में अकेले वायु प्रदूषण के कारण देश की अर्थव्यवस्था को लगभग 2716 अरब रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। यह राशि देश के सकल घरेलू उत्पाद का 1.36 प्रतिशत हैI सरकारें जितना वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का दिखावा करती हैं, उतनी ही यह समस्या विकराल होती जाती हैI लेकिन साल 2017 से लगातार पर्यावरण मंत्री, प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय वायु प्रदूषण पर वक्तव्य दे रहे हैं, तरह-तरह का दिखावा कर जनता को बता रहे हैं कि वायु प्रदूषण से जल्दी ही मुक्ति मिल जाएगी, पर हालत लगातार खराब होते जा रहे हैंI
साल 2017 में वायु प्रदूषण के कारण देश में कुल 12.4 लाख मौतें दर्ज की गईं थीं। यह संख्या वर्ष 2019 तक बढ़ कर 16.7 लाख मौतों तक पहुंच गईI वायु प्रदूषण के कारण फेफड़े के कैंसर, ह्रदय रोग, स्ट्रोक, डायबिटीज, गर्भावस्था की परेशानी और सांस संबंधी रोग बढ़ रहे हैंI हाल में प्रकाशित वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से 6 भारत में हैंI
वायु प्रदूषण से मौत के भयावह आंकड़े समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से उजागर होते हैं, पर पिछले वर्ष लैंसेट में ही प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण ने अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को और गहरा कर दिया हैI अमीर अपने वाहनों और उद्योगों से लगातार हवा में जहर घोलते हैं, जिसका खामियाजा गरीब भुगत रहे हैंI देश में भले ही वायु प्रदूषण मापने का एक सशक्त तंत्र विकसित किया गया हो पर यह पूरा जाल शहरों तक ही सीमित हैI वायु प्रदूषण के मापने का एक भी उपकरण ग्रामीण क्षेत्र में नहीं हैI
एक उदाहरण के तौर पर इसे समझने के लिए पंजाब में खेतों में तथाकथित कृषि अपशिष्ट के जलने से दिल्ली के प्रदूषण को याद कीजिएI पंजाब और हरयाणा में ग्रामीण इलाका बहुत बड़ा है, पर किसी भी ग्रामीण इलाके में कितना वायु प्रदूषण है, किसी भी सरकारी संस्था को नहीं पता हैI दूसरी तरफ, अंबाला, पटियाला, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पानीपत और सोनीपत जैसे शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर के आंकड़े रोज प्रकाशित किये जाते हैंI जाहिर है, जब ग्रामीण क्षेत्रों के वायु प्रदूषण से सम्बंधित कोई आंकड़े ही नहीं होंगें, तब इन क्षेत्रों के लिए कोई योजना भी नहीं होगीI
तमाम शहरों में अब बाजारों पर और व्यस्त चौराहों के पास बड़े-बड़े एयर प्युरिफयर स्थापित किये जा रहे हैं, पेड़ों पर पानी का छिड़काव किया जा रहा है और तोप के आकार वाली वाटर स्प्रे गन का उपयोग किया जा रहा है। फिर भी यह नहीं पता कि इन सब तरीकों के बाद वायु प्रदूषण में कितनी कमी आ रही हैI पहले भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में रहता था और इतने तामझाम के बाद भी वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक हैI इनमें से किसी भी प्रदूषण को रोकने के उपाय का उपयोग देश के किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में नहीं किया गया है और न ही वहां पहुंचने की कोई योजना हैI
गांव के स्वास्थ्य से संबंधित भी पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे वहां के प्रदूषण के स्तर का स्वास्थ्य से संबंधित आकलन किया जा सकेI बड़े शहरों में तो फेफड़े के मरीजों की संख्या बढ़ते ही एक समाचार बन जाता है, पर गांव के बारे में तो पता ही नहीं होताI वैसे तो जीवन से जुड़े हरेक मसले पर पूंजीवाद हावी है, पर प्रदूषण के मुद्दे पर तो पूंजीवादी सोच पूरी तरह से हावी है, जिसमें गरीबों का और ग्रामीण क्षेत्रों का कहीं नामो-निशान भी नहीं हीI शहरों की गरीब आबादी भी हमेशा प्रदूषण दूर करने के उपायों से छुट जाती हैI दिल्ली में पिछले 5 वर्षों के दौरान घरों में लगाए जाने वाले एयर फिल्टर का कारोबार कई गुना बढ़ गया है, पर झुग्गी-झोपडी बस्तियों में आबादी को उसी प्रदूषित हवा में सांस लेना है, जो जानलेवा भी हैI
श्रमिकों और गरीबों के लिए भी प्रदूषण उतना ही घातक है, जितना अमीरों के लिएI अमीर इसके असर से बच सकते हैं, पर गरीब को तो इसे झेलना ही हैI अमीर तो वातानुकूलित कमरे में बैठकर प्रदूषण को अपने से दूर कर सकता है, पर गरीबों के लिए तो रोजगार के अवसर ही ऐसी जगहों पर हैं जहां प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक रहता है, जैसे निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं और सड़क के किनारे की दूकानेंI पिछले चार वर्षों से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण बढ़ते ही निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं रोक दी जाती हैं, जिससे श्रमिकों को ही नुकसान उठाना पड़ता हैI
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Published: 27 Dec 2020, 6:59 AM