ये किस दौर में आ गए हम!
तो अब कुंडली को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है- इस बात को भूल जाएं कि इसके पीछे का विज्ञान संदिग्ध है: अब आपके जन्म के वक्त सितारों की स्थिति से यह तय होगा कि कोई आपके साथ या आप किसी के साथ यौन संबंध बना सकते हैं या नहीं…
जिन लोगों को मुझसे मिलने का सौभाग्य मिला है और वे इस मुलाकात के बावजूद बच गए हैं, वे आपको बताएंगे कि मैं ज्यादातर विषयों पर खुले दिमाग का हूं, कुछ हद तक आरएसएस की तरह, जब वहां धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर चर्चा होती है। उदाहरण के लिए, मैं पाठ्यपुस्तकों से डार्विन के सिद्धांत को हटाने में अन्य/भक्त दृष्टिकोण देखने को तैयार रहता हूं। जो पाठक अपनी जीवविज्ञान की कक्षाओं में सोए नहीं थे, उन्हें याद होगा कि डार्विनवाद योग्यतम के जीवित रहने की बात कहता है जबकि आज का युगसत्य मूर्खतम के जीवित रहने को बढ़ावा देता है। दार्शनिक विरोधाभास स्पष्ट है और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। मैं, पूरी निष्पक्षता से, देख सकता हूं कि एनसीईआरटी और उसके कठपुतली कलाकार कहां से आ रहे हैं: एक ऐसी अंधेरी गुफा जहां वक्त ठहर सा गया है और जिसमें रहने वाले अब भी जानवरों की खाल में घूमते हैं, क्लब चलाते हैं, “गोली मारो सालों को” और इसी तरह के उत्तेजक गीत गाते हैं।
लेकिन मेरी व्यापक सोच का दायरा इन दिनों विभिन्न हलकों, विशेष रूप से ज्ञान के स्रोतों, हमारे न्यायालयों से निकलने वाली प्रासंगिक उक्तियों/आदेशों में उलझा हुआ है।
अस्वीकरण- संभव है कि मैंने ही उन्हें गलत समझा हो, जैसे कि पंजाब के उस युवा नौकरी आवेदक (अन्यत्र भी संभव है) जिन्हें किसी साक्षात्कार में अपने प्रशंसापत्र (टेस्टीमोनियल्स) दिखाने को कहा गया और उन्होंने तत्काल अपने ‘पारंपरिक रत्न’ दिखाने के लिए पतलून उतार दी जिन्हें अंग्रेज ले जाना भूल गए और कोहिनूर लेकर चले गए थे। बाद में उन्होंने कबूल किया कि उन्होंने टेस्टीमोनियल को टेस्टिकल्स (अंडकोष) समझ लिया था और चूंकि उनके बाद वाले कैंडिडेट किसी भी मामले में उनसे बेहतर थे, इसलिए उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तत्काल दिखाने का फैसला किया। लेकिन मुझे लगता है कि इन दिनों हम जो कुछ भी पढ़ते हैं, उसकी इतनी उदार या सरलीकृत व्याख्या नहीं की जा सकती। ऐसा करने के लिए सप्ताहांत की आधी रात वाले उस सस्ते बार से भी ज्यादा खुले, या दिल्ली की यमुना से भी ज्यादा विशाल दिमाग की जरूरत होगी, अलग बात है कि यह लेख मैं लिख रहा हूं। मित्रों, फैसला आप करें!
कर्नाटक की एक अदालत ने हाल ही में माना कि किसी व्यक्ति के अंडकोष को दबाना हत्या का प्रयास नहीं है और आरोपी को बरी कर दिया। मेरी इस मामले में सम्मान के साथ असहमति है। अगर पीड़ित के मस्तिष्क को उसी तरह के आघात का सामना करना पड़ता जैसा कि उसके अकथनीय आघातों से हुआ था, तब तो हत्या के प्रयास का आरोप चिपक ही गया होता, है ना?
तो अदालत क्यों चाहती है कि हम यह विश्वास करें कि किसी व्यक्ति के लिए अंडकोष की तुलना में दिमाग अधिक महत्वपूर्ण/जरूरी है? यहीं पर न्यायिक त्रुटि निहित है। होमो सेपियन्स एक प्रजाति के रूप में इन लाखों वर्षों तक जीवित रहे हैं तो अपने अंडकोषों के कारण, न कि मस्तिष्क के कारण। पहला जीवन बनाता है, दूसरा उसे नष्ट करता है, जैसा कि श्रीमान बिडेन, पुतिन, शी और किम जोंग उन हर दिन साबित करने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं।
किसी भी स्थिति में, किसी भी प्रकार (किसी भी प्रजाति) की महिला से पूछें और वह आपको बताएगी कि एक आदमी का दिमाग उसके पैरों के बीच होता है, न कि उसके कानों के बीच। क्या यह रिचर्ड निक्सन नहीं थे, जिनका वह चर्चित कथन है: “एक बार जब आप उन्हें गेंदों से पकड़ लेंगी, तो उनके दिल और दिमाग खुद ब खुद चले आएंगे”? कुछ ऐसा जिसके बारे में हमारे आकाओं को निस्संदेह पता चल गया होता, अगर उन्होंने अपना समय क्रिकेट देखने में बिताया होता और हेबियस और कॉर्पस के बीच, या कॉर्पस डेलिक्टी और कॉर्पस डिलीशियस के बीच का अंतर जानने की कोशिश नहीं की होती। अब क्रिकेट ने तो हेलमेट से सौ साल पहले ही ‘बॉल गार्ड’ का आविष्कार कर लिया था जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि मानव शरीर रचना का सबसे अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा कौन सा है। यह वास्तव में काफी आसान है: किसी व्यक्ति के दिमाग को नष्ट करने से प्रजातियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है- एआई और चैटजीपीटी इसे संभाल लेंगे और बेहतर काम करेंगे। लेकिन एक आदमी के अंडकोष को निचोड़कर आप प्रजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल देंगे: वह अब विस्तार (गुणा) नहीं कर सकता (भक्त वैसे भी ऐसा नहीं कर सकते, वे केवल विभाजित कर सकते हैं)। इसीलिए, मेरी विनम्र राय में, न्यायाधीश महोदय गलत थे: उस व्यक्ति को हत्या नहीं तो कम-से-कम शुक्राणुनाश करने का दोषी तो ठहराया ही जाना चाहिए था।
टेस्टीमोनियल्स (हम पंजाब वाली किस्म को छोड़ देंगे) पर लौटते हैं: कुछ ज्यादा ही तेजी से अंधकार युग की ओर लौट रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले महीने एक ऐसे ही मामले में कुंडली को एक जरूरी कानूनी दस्तावेज के तौर पर जोड़ा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। दरअसल, एक महिला ने अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराया था जिसने उससे शादी करने का वादा किया था लेकिन बाद में मुकर गया। अपने बचाव में उसने हिन्दू रूढ़ियों की सर्वोत्तम परंपराओं के हवाले से दावा किया कि महिला मांगलिक थी और इसीलिए वह उससे शादी नहीं कर सकता था। तब अदालत ने आदेश दिया- अगर आप योग में रुचि रखते हैं तो सांस यहीं रोक लें, या योग में रुचि नहीं हैं तो सिगरेट सुलगा लें- कि विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग को इस दावे की सत्यता के लिए उसकी कुंडली की जांच करनी चाहिए और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए! संभवतः, अगर वह मांगलिक निकली, तो वह किसी भी शिकारी पुरुष के लिए बिना किसी शर्त और शक-शुबहा के एक खेल ही होगी।
इस आदेश (जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है) के अन्य निहितार्थ हतप्रभ करने वाले हैं।
एक, कुंडली को अब कानूनी दर्जा प्राप्त है और इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है- इस बात पर ध्यान देने की जरूरत नहीं कि इसके पीछे का विज्ञान संदिग्ध है और आपके जन्म के समय सितारों की स्थिति या चाल से यह निर्धारित होगा कि कोई व्यक्ति फर्जी बहानों से आपके साथ यौन संबंध बना सकता है (या आप उसके साथ)।
दो: आप किसी अपराध के शिकार हैं या नहीं, यह अब कानून से नहीं, आपकी कुंडली से तय होगा।
तीन: अब आपको पैन, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस, सीजीएचएस कार्ड, वोटर आईडी इत्यादि के अलावा एक और आईडी दस्तावेज साथ ले जाना होगा। आपके निकटतम रिश्तेदार के लिए अब मृत्यु के बाद आपके दाह संस्कार के लिए आधार प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं होगा। उन्हें अब आपकी कुंडली भी प्रस्तुत करनी होगी, ताकि उस दस्तावेज में उस समय की एक बार फिर पुष्टि की जा सके जिस समय आपकी मृत्यु हुई थी; किसी भी तरह का बेमेल मिलने की स्थिति में मामला दर्ज किया जा सकता है।
चार: ज्यादा समय नहीं लगेगा जब सरकार आपसे अपनी कुंडली को शेष सभी अन्य आईडी के साथ जोड़ने को कहेगी क्योंकि कुंडली ही आपके बारे में जानकारी की खान है: कुंडली ही कर अधिकारियों को बताएगी कि क्या आप उस तरह के इंसान हैं जो अपने करों में धोखाधड़ी कर सकता है; बैंकर को बताएगी कि आप अपना ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त समय तक जीवित रहेंगे या नहीं; और भावी ससुर को बताएगी कि आपकी किस्मत में कितनी पत्नियां हैं और पत्नी कितने बच्चों की उम्मीद कर सकती है, इत्यादि।
पांच: चूंकि अब हर किसी के पास कुंडली होना आवश्यक होगा तो चयनित कॉलेजों में नए शुरू किए गए ज्योतिष पाठ्यक्रम, इसे करने वाले उन सभी बेकार लोगों के लिए अंततः कुछ नौकरियां होंगी। अब दोष हमारे सितारों में हो या न हो (जैसा कि सीजर ने कभी नहीं कहा) लेकिन भारतीय न्यायशास्त्र का भविष्य तो निश्चित रूप से है।
और अंत में, यहां कुछ और उपदेश दिए गए हैं: गुजरात उच्च न्यायालय ने हमारे अपने प्रिगोझिन (यूक्रेन में वैगनर नाम से चर्चित) की पहचान की है। वह एक मध्यम आयु वर्ग की महिला हैं जो पिछले 20 वर्षों से पीड़ित लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें न्याय दिलाने के लिए काम कर रही हैं। लेकिन अदालत ने माना कि मनोरंजन, यानी टाइम पास करने के लिए चुनी हुई सरकारों को गिराना और अस्थिर करना उनका शौक है, उनको जमानत देने से इनकार कर दिया और तत्काल पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने को कहा (इस आदेश पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है)। उनका नाम तीस्ता सीतलवाड़ है और उन्हें यह काम करने के लिए कथित तौर पर 30 लाख रुपये मिले थे।
अब, यह सब वास्तव में मेरी समझने की शक्ति की परीक्षा ले रहा है। क्या एक ताकतवर नेता के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए बस इतना ही चाहिए- एक महिला जिसके हैंडबैग में (कथित तौर पर) 30 लाख रुपये हैं? प्रिगोझिन 50,000 सैनिकों, टैंकों और लाखों डॉलर के साथ ऐसा नहीं कर सका; शायद उन्हें भारत आना चाहिए और हमसे यह सीखना चाहिए कि बहुत सस्ते दाम पर यह सब कैसे किया जाए। इसके अलावा, लोग समझते थे कि सरकारों को उखाड़ फेंकना आईपीएल के ठीक बाद, हमारा सामूहिक राष्ट्रीय शौक है- बीजेपी हमेशा ऐसा करती है लेकिन उसका कोई नेता कभी हवालात भी नहीं भेजा जाता; बल्कि वे कारों के बेड़े में राजभवन, मंत्रालय और साउथ ब्लॉक की ओर जाते हैं। तो इस महिला ने ऐसा क्या कर दिया जो इतना अलग है? (यदि, यानी, उसने उस महिला के लिए न्याय की लड़ाई के अलावा कुछ भी किया है जिसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था और जिसने अपनी आंखों के सामने अपने पूरे परिवार का कत्लेआम होते देखा था?) मुझे ‘टु किल अ मॉकिंगबर्ड’ के ये शब्द याद आ रहे हैं: “उसने कोई अपराध नहीं किया है, उसने सिर्फ हमारे समाज की एक सख्त और समय-सम्मानित संहिता को तोड़ा है, एक संहिता जो इतनी गंभीर है कि जो कोई भी इसे तोड़ता है, उसे हमारे बीच से यह कहकर निकाल दिया जाता है कि वह हमारे साथ रहने लायक नहीं है।”
वास्तव में, यह पड़ताल का समय है कि आपके पास अंडकोष (टेस्टिकल्स) या प्रशंसापत्र (टेस्टीमोनियल्स) हैं अथवा नहीं। लेकिन मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है: यह दबाव वास्तव में किस पर लागू किया जा रहा है- बैलों पर या हमारे सामूहिक विवेक और बुद्धि पर?
(अवय शुक्ला रिटायर आईएएस अधिकारी हैं। यह avayshukla.blogspot.com के एक लेख का संपादित रूप है।)
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