आकार पटेल का लेख: देश के 80 करोड़ लोग अगर मुफ्त राशन पर जिंदा हैं तो हालात का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं
आज न्यू इंडिया की तस्वीर यह है कि 60 फीसदी भारतीय मुफ्त राशन पर जिंदा हैं और लाखों लोग मनरेगा से जीवनयापन चला रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की स्थिति क्या है। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
इन दिनों भारत में अच्छी खबर मिलना बहुत मुश्किल है और काफी लंबे वक्त से अच्छी खबरें दिखाई-सुनाई नहीं दीं।
एक रिपोर्ट बताती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रैल-जून की इस तिमाही में एक बार फिर सिकुड़ेगी यानी गिरेगी और इसमें दो अंकों की गिरावट हो सकती है। एक एजेंसी की इस रिपोर्ट को कई मीडिया संस्थानों ने प्रकाशित किया, लेकिन किसी और एजेंसी और यहां तक की सरकार ने भी इसका खंडन नहीं किया और न ही इससे इनकार किया। तो मान लिया जाए कि यह सच बात है।
जनवरी 2018 में शुरु हुई सुस्ती के 24 महीने बाद और महामारी से पहले तक, और फिर जनवरी 2020 से अगले 18 महीने तक महामारी के दौर में, हम यानी भारत दुनिया की सबसे दुर्दशा वाली अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। भारत की अर्थव्यवस्था वैसे तो अब करीब 42 महीनों से गिरावट देख रही है लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है और क्या कुछ गलत हो गया है, इस पर सरकार ने कोई बात नहीं की और न ही ऐसी कोई योजना सामने रखी जिसे इसमें सुधार की कोशिश मान जाता।
पिछले साल एक इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए 5 सूत्रीय योजना सामने रखी थी, साथ ही कहा था कि सुधार तभी संभव है जब कोई यह मानने को तैयार हो कि समस्या है। लेकिन चूंकि हमने माना ही नहीं कि कुछ गलत हो रहा है, इसलिए हम सुधार के बिना ही काम चलाते रहे।
रोजगार पर आंकड़े देने वाली एकमात्र एजेंसी सीएमआईई का कहना है कि भारत में बेरोजगारी दर 11 फीसदी है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश से कहीं अधिक है। महंगाई बहुत ज्यादा है हालांकि मांग बहुत कम है और थोक महंगाई दर तो 1992 के बाद से सबसे अधिक है। पेट्रोल 100 रुपए लीटर और डीजल भी इसी कीमत पर पहुंचने वाला है। और, कच्चे तेल के दाम इस साल के आखिर तक 20 फीसदी बढ़ने के आसार हैं। एक्सपोर्ट यानी निर्यात उसी स्तर पर है जिस पर 2014 में था। और मोदी शासन के 7 साल में इसमें कोई तरक्की नहीं हुई जबकि इस दौरान बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों का निर्यात बढ़ा और चीन तो इस मामले में आगे है ही।
अभी स्थिति यह है कि 80 करोड़ लोगों को मई से नवंबर तक 7 महीने मुफ्त राशन दिया जाएगा। इसमें प्रति व्यक्ति 5 किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल शामिल है। मई में इस मद में 16 लाख टन गेहूं और 15 लाख टन चावल बांटा गया। यानी 60 फीसदी भारतीय मुफ्त राशन पर जिंदा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में गरीबी की स्थिति क्या है।
नरेंद्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने और सत्ता की बागडोर संभाली तो उन्होंने मनरेगा को मनमोहन सरकार की एक ऐतिहासिक नाकामी करार दिया था। उन्होंने कहा था कि लोगों को मनरेगा के बजाय असली में नौकरियां और रोजगार मिलने चाहिए थे। लेकिन पिछले साल मनरेगा के तहत काम करने वाले लोगों की संख्या वही थी जो यूपीए शासन में थी, और कारण था कि बेशुमार लोगों की नौकरियां और रोजगार छिन गए हैं और वे गरीबी में गिर गए हैं। इसीलिए आज वे मनरेगा और मुफ्त राशन पर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। गुजरात सरकार ने पिछले सप्ताह एक बयान स्पष्ट कहा कि इस दौर में मनरेगा ने ही लोगों की जिंदगियां बचाई हैं।
इसके अतिरिक्त. लद्दाख में चीन के साथ झड़प का एक साल होने को आया और चीन ने वहां से अपने सैनिक हटाने का काम रोक दिया। इसका अर्थ है कि भारत को पने हजारों सैनिक वहां स्थाई रूप से तैनात करना पड़ेंगे। चीन ने हमें यह भी बता दिया कि वह बातचीत के स्तर को कम कर रहा है और अब सिर्फ एरिया कमांडर स्तर पर ही सिर्फ विशेष मुद्दों पर ही बातचीत होगी। हमारे सैनिक आज भी दपसांग में पेट्रोलिंग नहीं कर सकते लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है और न ही उसने लद्दाख के मुद्दे पर कभी कोई प्रेस ब्रीफिंग की। चीजों को छिपाना किसी भी तानाशाही की खास पहचान है न कि लोकतंत्र की लेकिन, हमारे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति इस समय यही है।
महामारी के दौर में भारत दुनिया के लिए वैक्सीन गुरु और विश्व फैक्टरी बन सकता था। लेकिन हुआ यह कि भारत ने वैक्सीन की डिलीवरी रोक कर दुनिया के टीकाकरण कार्यक्रम को ही प्रभावित कर दिया। जबकि बहुत से देश भारत में बनी वैक्सीन के लिए पहले ही भुगतान कर चुके थे। हमारी सरकार ने वैक्सीन के उस स्टॉक को कब्जा करना शुरु कर दिया, जबकि दुनिया इंतजार कर रही है। इतना होने पर ही भारत दुनिया के 9 फीसदी के औसत के मुकाबले अपनी आबादी का केवल 3 फीसदी को ही पूरी तरह से टीकाकरण करने में कामयाब रहा है। क्यों? हमें नहीं बताया गया है।
हर दिन राज्यों से अधिक मौतों की रिपोर्ट आती है जो आधिकारिक कोविड मृत्यु के आंकड़ों से चार से 10 गुना के बीच होती है। कोरोना संक्रमितों और मौतों के मामले में भारत दुनिया में इस तरह सबसे आगे रहा, क्योंकि संक्रमितों और मौतों की सही संख्या का पता लगाने के लिए कोई सरकारी पहल नहीं हुई है। मीडिया भी एक तरफ आधिकारिक संख्या को तोते की तरह रटता रहा, लेकिन साथ ही उसने अधिक मौतों पर रिपोर्ट प्रकाशित करना शुरु कर दिया। कुंभ के दौरान कोरोना टेस्ट में भारी घोटाले और गड़बड़ी सामने आई है और यह सब पूरी अव्यवस्था का ही हिस्सा है।
इस महीने यूके में जी-7 की बैठक में प्रधानमंत्री ने ओपन सोसाइटीज स्टेटमेंट नामक एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन्होंने प्रतिज्ञा की कि भारत मानव अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का पालन करेगा और इसे और अधिक बढ़ावा देगा। लेकिन अपने ही देश में इनकी मांग करने वालों को यूएपीए के तहत जेलों में बंद कर दिया गया है। दिल्ली के बाहरी इलाकों में हाईवे पर हजारों की संख्या में किसानों का विरोध महीनों से जारी है। विवादित कृषि कानूनों को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन वापस नहीं लिया गया है। क्यों? हम नहीं जानते क्योंकि मोदी ने कानूनों के बारे में बात नहीं की है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मोदी के समर्थक हैं या विरोधी या तटस्थ। भारत जिस हालात में आज है उसे के देखने वाले को कहीं से किसी भी अच्छी खबर को निकालना मुश्किल होगा और आशावादी होना मुश्किल होगा।
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