आकार पटेल का लेख: संघ से जुड़े संगठन की रिपोर्ट पर बना भीमा कोरेगांव केस, और बिना मुकदमे के हो गई स्टेन स्वामी की मौत

संघ से जुड़े संगठन की रिपोर्ट में कहा गया कि जाति, न्याय और समानता जैसे मुद्दों से संबंधित लोगों को "जन संगठनों" में शामिल होने के लिए लुभाने के लिए यह एक माओवादी रणनीति थी। और ऐसे संगठन सरकार के खिलाफ निर्णायक सशस्त्र संघर्ष को तेज करने वाले थे।

फोटोः सोशल मीडिया
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आकार पटेल

स्टेन स्वामी की कुछ दिन पहले भीमा कोरेगांव मामले में जमानत न मिलने के चलते हिरासत में ही अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी। स्टेन स्वामी एक तमिल पादरी थे, जिन्होंने दशकों तक झारखंड में आदिवासियों के साथ किया। इससे पहले वह बैंगलोर में भारतीय सामाजिक संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के डायरेक्टर थे। सवाल है कि आखिर वह पुणे में हुए एक कार्यक्रम के सिलसिले में जेल में क्यों थे? भीमा कोरेगांव मामला दरअसल पांच अलग-अलग और एक दूसरे भिन्न मुद्दों पर है। पहला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गर (या यलगर, अर्थ बैटल क्राई) परिषद नामक एक कार्यक्रम था। इस में हुई सभा में शामिल वक्ताओं में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पी बी सावंत शामिल थे। गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी और जेएनयू के छात्र और कार्यकर्ता उमर खालिद ने भी इसमें बात की थी। कबीर कला मंच के कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने भी इसमें हिस्सा लिया था।

दूसरा कार्यक्रम 1 जनवरी 2018 को हुआ। यह कार्यक्रम भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं बरसी पर था। भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को पुणे की भीमा नदी के किनारे अंग्रजों से हुई थी जिसमें मराठा शासन को हार मिली थी। अंग्रेजों की तरफ से इस लड़ाई में तमाम दलित माहर सैनिकों ने हिस्सा लिया था और ब्राह्मण मराठा पेशवा की भारीभरकम सेना को पराजित किया था।

1927 में जब बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने इस गांव का दौरा किया था और इस विजय की बात की थी तब से ही हर साल हजारों दलित यहां आकर भीमा कोरेगांव में हुई दलितों की जीत का जश्न मनाते हैं। लेकिन 2018 के कार्यक्रम में नजदीक के वधु बुद्रुक नाम के गांव के कारण तनाव पैदा हो गया। तनाव इस बात पर हुआ कि शिवाजी के पुत्र संभाजी, जिसकी हत्या औरंगजेब ने 1689 में की थी, उसका अंति संस्कार भीमा कोरेगांव के नजदीक किसने किया था। दलित माहरों का दावा है कि उनमें से ही एक गोपाल विनोद नामक व्यक्ति ने औरंगजेब के आदेशों का उल्लंघन करते हुए संभाजी का अंतिम संस्कार किया था। इससे मराठा नाराज हो गए क्योंकि उनका दावा है कि उनके समुदाय के दो लोगों ने संभाजी का अंतिम संस्कार किया था। माहर गोपाल विनोद का मकबरा भी वधु बुद्रुक में उसी चबूतरे पर है जहां संभाजी का स्मारक है। 28 दिसंबर को गोविंद के मकबरे पर एक बोर्ड लगा दिया गया जिसमें संभाजी के अंतिम संस्कार के लिए प्राण देने वाले गोविंद की तारीफ की गई थी। अगले ही दिन गोविंद के मकबरे को तहस-नहस कर दिया गया, बोर्ड उखाड़ दिया गया और मकबरे पर बनी छतरी को तोड़ दिया गया। दलितों ने इसकी शिकायत अनुसूचित-जनजाति एक्ट के तहत दर्ज कराई। इस बीच कोरेगांव भीमा पंचायत ने लोगों सो पहली जनवरी को होने वाले कार्यक्रम का बहिष्कार करने का आह्वान किया और बाजार बंद रखने की अपील की। अगली सुबह हिंसा भड़क उठी। दलितों का दावा है कि उन पर भगवा झंडे उठाए लोगों और स्थानीय मराठों ने हमला किया। हिंसा में एक मराठा की मौत हुई। देखते-देखते पश्चिम महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों में भी हिंसा भड़क उठी। पुलिस ने इस मामले में महिलाओं और बच्चों समते करीब 300 दलितों कोहिरासत में ले लिया।


तीसरी घटना एक पुलिस शिकायत पर हुई जो कि कुछ दिन बाद एक व्यक्ति ने दर्ज कराई। इसमें दावा किया गया कि एल्गर परिषद का कार्यक्रम दलित समुदाय को भ्रमित करने और उन्हें माओवादी विचारों में परिवर्तन करने के लिए आयोजित किया गया था। दावा किया गया कि इसके लिए ऐसी किताबें बांटी गईं और भाषण दिए गए जिससे कि समुदायों के बीच शत्रुता पैदा हो। तुषार दामगुडे नाम के जिस व्यक्ति ने यह शिकायत दर्ज कराई उसका कहना था कि वह हिंदुत्व के एक सीधे से नियम को मानता है कि, “जिन बातों और चीजों से हिंदुओं की मदद हो उसे चलन में रखा जाए बाकी सबकुछ छोड़ दिया जाए।”

इसी शिकायत के आधार पर पुलिस ने उन सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करना शुरु कर दिया जिनका इस सबसे न कुछ लेना देना था और न वे भीमा कोरेगांव में मौजूद थे।

चौथी घटना आरएसएस से जुड़े एक संगठन की एक रिपोर्ट से जुड़ी है। संगठन का नाम फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्यूरिटी है और इसके महासचिल शेषाद्री चारी बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जाति, न्याय और समानता जैसे मुद्दों से संबंधित लोगों को "जन संगठनों" में शामिल होने के लिए लुभाने के लिए यह एक माओवादी रणनीति थी। 9 मार्च 2018 को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे संगठन सरकार के खिलाफ निर्णायक सशस्त्र संघर्ष के लिए माओवादियों की भर्ती में मदद करेंगे।

इसी लेखक की एक अन्य रिपोर्ट अप्रैल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सौंपी गई थी। मई में भीमा कोरेगांव मामले में यूएपीए कानून जोड़ा गया था। 6 जून को, महाराष्ट्र पुलिस ने रिपब्लिकन पैंथर्स के धवले, वकील और दलित कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग, आदिवासी अधिकारों पर काम करने वाले विद्वान महेश राउत, नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर शोमा सेन और जेएनयू के रोना विल्सन सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया। रोना विल्सन राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के मामलों में जुटी समिति के साथ थे। उन्हें पुलिस ने अर्बन माओवादियों का शीर्ष नेता करार दिया।

पुलिस का कहना है कि उन्हें जुलाई 2017 में विल्सन के घर से एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था: "कॉमरेड किसान और कुछ अन्य वरिष्ठ साथियों ने मोदी-राज को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने का प्रस्ताव दिया है। हम राजीव गांधी जैसी एक और घटना के बारे में सोच रहे हैं।"


इस सामग्री के आधार पर पुलिस ने आईआईटी कानपुर से मैथमैटिक्स की पढ़ाई करने और 18 साल की उम्र में अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ देने वाली सुधा भारद्वाज, लेखक और इकोनॉमिक्सम एंड पॉलिटिक्स वीकली में लिखने वाले गौतम नवलखा, इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट गोवा के सहायक प्रोफेसर और बाबा साहब आंबेडकर की पोती से शादी करने वाले आनंद तेलतुम्बडे, वकील अरुण फरेरा, रूपरारेल कॉलेज और एच आर कॉलेज में बिजनेस मैनेजमेंट और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर वर्नन गोंसाल्वेस, लेखक और कवि वरवरा राव, दिल्ली विश्वविद्यालयके भाषा विज्ञान के प्रोफेस हैनी बाबू, कबीर कला मंच के तीन सदस्य, सागर गोरखे, ज्योति जगताप और रमेश गायचोर और 83 वर्षीय तमिल पादरी जेसुइट स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया।

इनमें से किसी का भी भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था, और वे वहां मौजूद भी नहीं थे। हत्या की साजिश के आरोप के चलते मामला संवेदनशील बताया जा रहा है, लेकिन मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। पिछले साल, बीबीसी ने स्टेन स्वामी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था'भारत में आतंकवाद का आरोप झेलने वाला सबसे बुजुर्ग व्यक्ति'।

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