हरियाणा: खट्टर और विज में ठनी! सीएमओ के दखल से बिगड़ी बात, सरकार में बढ़ी हलचल
स्थितियां यह हैं कि 5 अक्टूबर के बाद से अनिल विज स्वास्थ्य मंत्रालय की फाइलों पर साइन नहीं कर रहे हैं। चर्चा यहां तक है कि अनिल विज स्वास्थ्य मंत्रालय छोड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बीच यह अदावत काफी पुरानी है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज के बीच एक बार फिर ठन गई है। ठनी भी ऐसी है कि अनिल विज ने स्वास्थ्य मंत्रालय का काम ही छोड़ दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी संभाल रहे विज के विभाग में सीएमओ के दखल से वह नाराज हैं। स्थितियां यह हैं कि 5 अक्टूबर के बाद से अनिल विज स्वास्थ्य मंत्रालय की फाइलों पर साइन नहीं कर रहे हैं। चर्चा यहां तक है कि अनिल विज स्वास्थ्य मंत्रालय छोड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बीच यह अदावत काफी पुरानी है। सीएम और गृह मंत्री के बीच टकराव की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। कहा जा रहा है कि किसी न किसी बहाने उनके विभागों में सीएमओ के दखल से तंग आ चुके अनिल विज ने कह दिया है कि अब बहुत हो चुका। इसके बाद सरकार में हलचल है।
2 बार के विधायक मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 6 बार के विधायक अनिल विज से सियासत में काफी जूनियर हैं। काफी हद तक इस अदावत की जड़ भी यही है। इस लिहाज से अनिल विज स्वाभाविक तौर पर खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते थे। 2019 के पिछले विस चुनाव में मुख्यमंत्री और अनिल विज को छोड़कर पूरा मंत्रिमंडल चुनाव हार गया था। सीएम की जीत का अंतर भी पिछले चुनाव में कम हो गया था। लिहाजा, चुनाव के बाद और ताकतवर होकर उभरे अनिल विज को गृह मंत्रालय तो मिल गया, लेकिन सरकार गठन के साथ ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल का दखल अनिल विज के विभागों में किसी न किसी तरीके से शुरू हो गया। हालिया मसला स्वास्थ्य मंत्रालय में दखल का है।
5 अक्टूबर को सीएमओ की ओर से पंचकूला के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में स्वास्थ्य विभाग की रिव्यू मीटिंग रखी गई थी। इस मीटिंग में विभाग की एसीएस सहित सभी विभागाध्यक्ष मौजूद थे, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे अनिल विज को ही नहीं पूछा गया। लिहाजा, विज ने इस रिव्यू मीटिंग को अपने महकमे में हस्तक्षेप होना बताया। सूत्रों के मुताबिक विज का कहना है कि यह कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी केंद्र के नाम पर उनके विभागों में मुख्यमंत्री कार्यालय हस्तक्षेप करता रहा है। सूत्रों का कहना है कि विज ने यह भी संकेत दिए हैं कि अब हद हो चुकी है। यदि सीएमओ नहीं चाहता है कि स्वास्थ्य विभाग उनके पास रहे तो वह इस विभाग को छोड़ देंगे। इस रिव्यू मीटिंग की चर्चा पूरी सरकार में है। यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद ही सीएमओ ने हेल्थ डिपार्टमेंट की समीक्षा शुरू की है।
अनिल विज इससे इतने नाराज हैं कि 5 अक्टूबर के बाद वह स्वास्थ्य मंत्रालय की फाइलों में साइन नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि उनके पास सचिवालय पहुंचे कुछ बीजेपी विधायकों का स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा काम करने से उन्होंने इनकार कर दिया है। हालांकि, औपचारिक तौर पर अनिल विज ने इस विवाद पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन बताया जा रहा है कि उन्होंने लोगों से कहना शुरू कर दिया है कि स्वास्थ्य विभाग उनके पास से चला गया है। स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि अनिल विज के स्वास्थ्य मंत्रालय छोड़ देने की भी अटकलें हैं। इसके अलावा यमुनानगर और कैथल के मेडिकल कालेज के शिलान्यास कार्यक्रमों में भी अनिल विज को नहीं पूछा गया। चर्चा है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल विज का विभाग बदलने को लेकर शीघ्र दिल्ली हाईकमान से मिल सकते हैं।
कहा यह जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय अनिल विज से लेकर परफार्मेंस को लेकर सवालों के घेरे में रहे शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कमल गुप्ता को दिया जा सकता है और स्थानीय निकाय अनिल विज को दिया जा सकता है। दूसरी तरफ अनिल विज भी सीएमओ के दखल को लेकर हाईकमान से शिकायत करने की तैयारी करते बताए जा रहे हैं। विज के रुख के बाद सरकार से लेकर संगठन तक काफी हलचल है। इस हलचल के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हरियाणा के प्रांत प्रचारक विजय कुमार की अनिल विज से अंबाला कैंट के सदर बाजार में हुई मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है। आरएसएस प्रांत प्रमुख और विज के बीच यह मुलाकात तकरीबन आधा घंटा चली है। इसके बाद रविवार को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की धर्मपत्नी मल्लिका नड्डा (चेयरपर्सन स्पेशल ओलिंपिक भारत) हिमाचल से दिल्ली जाते हुए अनिल विज से मुलाकात करने उनके अंबाला कैंट स्थित आवास पर पहुंचीं। उनके साथ पहले जेपी नड्डा के भी आने की खबर थी, लेकिन वह नहीं आए। वैसे तो नड्डा से विज के पुराने संबंधों के चलते इस मुलाकात को पारिवारिक माना जा रहा है, लेकिन राजनीति में अक्सर ऐसा होता नहीं है।
गृह मंत्री अनिल विज और मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बीच टकराव कोई नया नहीं है। सरकार के गठन के बाद से ही यह सिलसिला आरंभ हो गया था। ऐसा माना जाता है कि गृह मंत्रालय भी अनिल विज को मुख्यमंत्री की मेहरबानी से नहीं मिला है। हाईकमान से संबंधों के चलते विज को 2019 में सरकार के गठन के बाद गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी तो मिल गई, लेकिन सीएम के साथ विज के संबंध कभी सामान्य नहीं नजर आए। यह इसी का नतीजा माना गया कि 2019 में सरकार बनते ही सीएमओ के दो अफसरों को विज के विभागों में तैनात कर दिया गया। सीएम के तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी राजेश कुमार खुल्लर को गृह विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव और सीएम के एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी. उमाशंकर को नगर निकाय में प्रधान सचिव का कार्यभार दे दिया गया। उस समय नगर निकाय भी विज के पास ही था। यहीं से विज की नाराजगी की शुरुआत हो गई। इसके बाद सीआईडी को अनिल विज के गृह मंत्रालय से वापस लेकर मुख्यमंत्री के तहत ले आया गया। इसको लेकर भी अनिल विज व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बीच करीब डेढ़ महीने तक विवाद चला। फिर शहरी स्थानीय निकाय विभाग अनिल विज से ले लिया गया।
फिर इसी साल जनवरी में अनिल विज के रुतबे पर मुख्यमंत्री ने एक बार फिर कैंची चला दी। 12 विभागों के मर्जर के बाद कई मंत्रियों के विभागों में हुए फेरबदल में गृह मंत्री अनिल विज से दो विभाग वापस ले लिए गए। साइंस एंड टेक्नोलॉजी और तकनीकी शिक्षा उनसे छीन लिए गए। पूर्व डीजीपी मनोज यादव के एक्सटेंशन को लेकर भी सीएम और अनिल विज के बीच विवाद हुआ था। हाल ही में चंडीगढ़ में बुलाई गई भाजपा विधायक दल की बैठक में भी अनिल विज शामिल नहीं हुए थे। इस बैठक में मुख्यमंत्री ने विधायकों और मंत्रियों को सांसदों की तरह जनता दरबार लगाने की इजाजत दी थी, लेकिन इसमें एक शर्त लगा दी थी कि जनसंवाद करने के लिए उन्हें दूसरे जिले या विस को चुनना होगा। इससे भी अनिल विज असहज हैं व अंबाला कैंट में लगने वाला अपना जनता दरबार भी न लगाने का फैसला किया है।
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