दिल्ली की हवा में घुले जहर को कम करने के लिए आपको भी उठाने होंगे ये कदम, ऐसे नहीं मिलेगी 'गैस चेंबर' से मुक्ति!
हर साल नवंबर में जब दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण चरम पर होता है तो सरकारें ऐसे दिखावा करती हैं, जैसे वह साल भर रोक थाम में जुटी हुई थीं, और आखिरी समय में उनके हाथ से वह रामबाण फिसल गया, जिससे इस दानव रूपी प्रदूषण का इलाज होना था।
देश की राजधानी दिल्ली गैस चेंबर बन चुकी है। सांसों पर प्रदूषण का पहरा है। आलम यह है कि लोग घुट-घुटकर सांस लेने को मजबूर हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया का 5वां सबसे प्रदूषित देश है। इस रिपोर्ट से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी सरकारों की करनी और कथनी में कितना अंतर है। प्रदूषण के मामले में करीब-करीब एक दशक से राजधानी दिल्ली का यही हाल है। दिवाली के आस-पास राजधानी की फिजाओं में जहर घुल जाता है। चौक-चौराहों और सरकारी दफ्तरों में प्रदूषण की चर्चा आम हो जाती है।
हर साल नवंबर में जब दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण चरम पर होता है तो सरकारें ऐसे दिखावा करती हैं, जैसे वह साल भर इसकी रोक थाम में जुटी हुई थीं, और आखिरी समय में उनके हाथ से वह रामबाण फिसल गया, जिससे इस दानव रूपी प्रदूषण का इलाज होना था। करीब जनवरी तक दिल्ली की जनता यूं हीं प्रदूषण से तिल-तिल मरती है। इसके बाद हवा साफ होते ही सबकुछ सरकारें भी भूल जाती हैं और जनता भी।
ऐसे में सवाल यह है कि इस प्रदूषण से दिल्ली की जनता को कब मुक्ति मिलेगी? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। सरकारें एक दूसरे पर दोष मढ़कर खुद को पाक साफ दिखाने में जुटी हुई हैं। ऐसे में सवाल यह है कि हम और आप क्या कर सकते हैं। इतिहास गवाह है सरकारें जब-जब अपनी राह से भटकी हैं, जनता ने उन्हें अपने तरीके से रास्ता दिखाया है। ऐसे में इस माहौल में भी हम और आप प्रदूषण पर काबू पाने कि लिए ढेर सारे कदम उठा सकते हैं। बस जरूरत है तो दृढ़निश्चय की। आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि प्रदूषण को काबू करने के लिए हम और आप क्या कर सकते हैं?
प्रदूषण को कम करने के लिए आप ये कदम उठा सकते हैं:
निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें, सड़क पर जितने कम वाहन रहेंगे उतना कम प्रदूषण भी होगा।
जिनता हो सके खुद दफ्तर जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें, साइकिल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
कार पूलिंग करें। कार पूलिंग में आप एक ही कार में अन्य लोगों को भी बैठाकर दफ्तर समेत अन्य जगहों पर ले जा सकते हैं ताकि सबको अपने निजी वाहनों का इस्तेमाल न करना पड़े।
सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करें, दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली उत्पन्न करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। इससे निकलने वाले धुएं से प्रदूषण बढ़ता है।
घरों में सोलर पैनल लगवाने के साथ सौर ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों का भी इस्तेमाल करें, ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों से दूषित गैस उत्सर्जन की भी समस्या नहीं होती।
अपने बगीचे की सूखी पत्तियों को जलाने की जगह उनका खाद बनाकर बगीचे में ही इस्तेमाल करें, ऐसे में पत्तियां जलाने से धुआं भी नहीं होगा।
आइए अब यह जानने की कोशिश करते हैं कि वायु प्रदूषण किस वजह से फैलता है।
प्रदूषण के क्या कारण हैं?
भारत में बहुत सारे उद्योग और पावर प्लांट हैं, जहां से दूषित धुआं निकलता है, धुआं हवा में मिलकर हवा को प्रदूषित करता है।
आबादी के साथ निजी वाहन भी बढ़ रहे हैं, सार्वजनिक वाहनों की जगह निजी वाहनों का इस्तेमाल करने से गाड़ियों से निकलने वाला दूषित धुंआ हवा में प्रदूषण फैलाता है।
कारखानों और फैक्टरियों की चिमनियों से लगातार भारी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्सइड और रासायनिक धुंआ निकलने से वायु प्रदूषण बढ़ाता है।
घरों और दफ्तरों में लगे एयर कंडीशनर से क्लोरोफ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वातावरण को गंभीर रूप से दूषित करते हैं और साथ ही ओजोन परत को भी नुक्सान पहुंचाते हैं।
हर साल फसल कटने के बाद किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है, जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में धुएं का उत्सर्जन होता है। यह धुंआ गंभीर रूप से प्रदूषित फैलाता है।
आपने देखा किन वजहों से वायु प्रदूषण फैलता है। अब आपको ग्राफिक्स के जरिए बताते हैं कि राजधानी दिल्ली में कौन सा सेक्टर कितना प्रदूषण फैलाता है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार, राजधानी में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण निर्माण स्थलों से धूल के कारण होता है।
पीएम 2.5 और पीएम 10 क्या है?
आपने ग्राफिक्स में देखा कौन सा सेक्टर दिल्ली को कितना प्रदूषित कर रहा है। ग्राफिक्स में पीएम का जिक्र किया गया है। अब यह जानते हैं कि आखिर पीएम 2.5 और पीएम 10 क्या है? पीएम 2.5 और पीएम 10 वायु गुणवत्ता को मापने का पैमाना है। पीएम का मतलब होता है पार्टिकुलेट मैटर जो कि हवा के अंदर सूक्ष्म कणों को मापते हैं। पीएम 2.5 और 10 हवा में मौजूद कणों के आकार को मापते हैं। पीएम का आंकड़ा जितना कम होगा हवा में मौजूद कण उतने ही अधिक छोटे होंगे।
हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 और पीएम10 की मात्रा 100 होने पर ही हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है। गैसोलीन, तेल, डीजल ईंधन या लकड़ी के दहन से पीएम 2.5 का अधिक उत्पादन होता है। अपने छोटे आकार के कारण, पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में गहराई से खींचा जा सकता है और पीएम 10 की तुलना में अधिक हानिकारक हो सकता है।
राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के और भी कई कारण हैं। जिनके ऊपर सरकारों को गंभीरता से काम करने की जरूरत है। एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली की आबादी प्रति वर्ष चार लाख के हिसाब से बढ़ जाती है, जिसमें से करीब तीन लाख लोग तो प्रतिवर्ष शिक्षा और रोजगार की प्राप्ति के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आते हैं। इस बढ़ती आबादी के उत्सर्जित अपशिष्ट से दिल्ली के चारों ओर कूड़े के पहाड़ बनते जा रहे हैं। इसके निस्तारण के लिए वैसे तो अब तक कई प्रकार के उपाय खोजे गए हैं, लेकिन उनमें से कोई भी उपाय व्यावहारिक रूप से क्रियान्वित नहीं हो सका है। सरकारों को इस बारे में नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। उसके निस्तारण के लिए जलाने की प्रक्रिया का वायु प्रदूषण में विशेष योगदान है।
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