‘इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस’ के लिए न कैंपस चाहिए, न शिक्षक-छात्र, बस प्लान दो, बाकी काम मोदी सरकार कर देगी

अगर आप शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाना चाहते हैं और चाहते हैं आपके संस्थान में सरकारी दखल न हो, तो न संस्थान खोलना है, न कैंपस चाहिए, न शिक्षक। बस एक प्लान देना होगा बढ़िया सा बनाकर, मोदी सरकार ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस’ का दर्जा दे देगी। सवाल उठे तो सफाई भी सरकार ही देगी आपको चिंता नहीं करनी है।

फोटो सौजन्य : ट्विटर
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नवजीवन डेस्क

अगर आप एक इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस यानी उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान स्थापित करना चाहते हैं, तो न तो किसी इंस्टीट्यूट की जरूरत है, न किसी शिक्षक की, न कैंपस की, न पैसे की और न ही छात्रों की। बस जरूरत है तो सिर्फ एक शानदार प्रस्ताव की, जिसमें आपको बस वादा करना है कि आप यह करेंगे, आप वह करेंगे, सरकार आपके इंस्टीट्यूट को इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस का दर्जा दे देगी। आपको अपने इस इंस्टीट्यूट के लिए न तो वेबसाइट बनाने की जरूरत है, जहां आपकी योजना और प्रस्ताव के बारे में जानकारी देना पड़े, न कोई ट्विटर आदि सोशल मीडिया अकाउंट बनाने की जरूरत है, जहां आपको इंस्टीट्यूट के बारे में अपडेट देना पड़ें।

इस कैटेगरी में आते ही आपको सरकार की तरफ करीब एक हजार करोड़ रुपए मिलना सुनिश्चित हो जाएगा। हां, एक शर्त है कि आपका नाम मुकेश अंबानी और नीता अंबानी हो और देश में नरेंद्र मोदी की सरकार हो। और हां, घबराइए नहीं, आपको यह कैटेगरी मिलते ही लोग सवाल उठाएंगे, तो आपको कोई सफाई नहीं देनी है, आपकी तरफ से सफाई भी सरकार ही देगी कि आपने क्या शानदार योजना बनाई है और आने वाले समय आपका इंस्टीट्यूट देश के शिक्षा जगत में क्रांति ला देंगे।

यह सब हम यूं हीं नहीं कह रहे। दरअसल सोमवार को मोदी सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के 6 शिक्षण संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थानों यानी इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस का दर्जा दिया है। इन संस्थानों में 3 सरकारी और 3 निजी संस्थान शामिल हैं। इन निजी संस्थानों में एक ऐसा नाम भी सामने आया है, जिसे पहले शायद ही किसी ने सुना हो। इस संस्थान का नाम है जियो इंस्टीट्यूट। जी हां, आपने सही अंदाज़ा लगाया जियो फोन या जियो मोबाइल वाला जियो।

सरकार ने इस बिना अस्तित्व वाले संस्थान जियो इंस्टीट्यूट के नाम का ऐलान तो कर दिया। लेकिन, इस कॉलेज या यूनिवर्सिटी या यह जो कुछ भी होगा, को उत्कृष्ट संस्थान में शामिल करने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि जियो इंस्टीट्यूट, रिलायंस समूह का एक संस्थान है, लेकिन अभी तक इस संस्थान ने काम करना शुरू नहीं किया है। इस संस्थान के बारे में जानकारी के लिए जब हमने खोजबीन शुरु की तो इसका ट्विटर हैंडिल तक नहीं मिला। शायद यही वजह थी कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को भी इन संस्थानों का नाम घोषित करते हुए जियो इंस्टीट्यूट का कोई ट्विटर हैंडल नहीं मिला और उन्हें भी ऐसे ही इसका नाम लिखना पड़ा।

बताया सिर्फ इतना जा रहा है कि आने वाले कुछ साल में यह संस्थान अस्तित्व में आ सकता है। और जब यह अस्तित्व में आएगा तो इसके पास अधिक स्वायत्तता होगी, यानी इसके कामकाज और संचालन में सरकार का दखल न के बराबर होगा। इतना ही नहीं इसे ग्रीन फील्ड कैटेगरी के अधीन चुना गया है।

इस इंस्टीट्यूट को चुने जाने पर जब चारों तरफ से सवालों की बौछार शुरु हुई तो सरकार को ध्यान आया कि मामला कुछ गड़बड़ है। देर रात मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से इस पर सफाई पेश की गई। दो पन्नों की एफ ए क्यू (फ्रीक्वेंटली आस्क्ड क्वेस्चंस यानी अकसर पूछे जाने वाले सवाल) स्टाइल में स्पष्टीकरण जारी किया गया। इसमें बताया गया है कि आखिर जियो इंस्टीट्यूट को ही क्यों चुना गया।

इस स्पष्टीकरण में बताया गयाक जियो इंस्टीट्यूट को ग्रीन फील्ड कैटेगरी में चुना गया है जो कि नए संस्थानों के लिए होती है और उनका कोई इतिहास नहीं होता है। कमेटी ने इस इंस्टीट्यूट का प्रस्ताव देखा और सभी मानक पूरे करने की योजना के आधार पर इसे चुना। बताया गया कि इस इंस्टीट्यूटके पास जगह है, योजना है, पैसे लगाने का भरोसा है आदि आदि।

दरअसल किसी संस्थान को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा मिलने के बाद ऐसे संस्थानों के स्तर और गुणवत्ता को तेजी से बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और नए पाठ्यक्रमों को भी जोड़ा जा सकेगा। इन संस्थानों को विश्व स्तरीय संस्थान बनाने के लिए जो कुछ भी जरूरी होगा, उसे पूरा किया जा सकेगा। असल में इन संस्थानों को आमतौर पर परिभाषित स्वायत्तता से कहीं अधिक आजादी मिलेगी। ये संस्थान अपना निर्णय खुद ले सकेंगे।

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