योगी सरकार की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के दावों का निकला दम! हर साल अरबों खर्च, फिर भी 'यमराज' बनी सड़कें
योगी सरकार में बनने के एक सप्ताह बाद ही सड़कें टूट रहीं, मतलब निर्माण ही घटिया है। फिर, इनकी नियमित मरम्मत नहीं होती। ऐसे में, 15 नवंबर तक यूपी की सड़कों को गड्ढामुक्त करने के निर्देश का मतलब ही क्या है?
पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अप्रैल, 2017 में योगी आदित्यनाथ ने दूसरी ही कैबिनेट बैठक में सड़कों को 45 दिनों में गड्ढामुक्त करने का निर्देश दिया था। अभियान कथित तौर पर पूरा होने के बाद तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने बताया था कि कुल 1,21,034 किलोमीटर सड़कों को गड्ढायुक्त की श्रेणी में रखा गया था जिसमें से 76,356 किलोमीटर सड़कों के गड्ढे भर दिए गए, यानी करीब 63 प्रतिशत सड़कें गड्ढा मुक्त कर दी गईंं। इसके बाद भी हर सड़क के गड्ढों में अरबों रुपये भरे गए। लेकिन हालात नहीं बदले। अब दूसरे कार्यकाल में फिर सीएम योगी ने 15 नवंबर तक गड्ढों को भरने का निर्देश दिया है। सर्वे में विभाग ने 40 फीसदी सड़कें गड्ढे वाली पाई हैं। प्रमुख सचिव को भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक, अब भी एक लाख किलोमीटर से अधिक लंबाई की सड़कों में गड्ढे हैं। लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव नरेंद्र भूषण के मुताबिक, 'सड़कों की मरम्मत के मद में विभाग द्वारा करीब 4,500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें पैच वर्क, सड़कों के पीरियाडिक रिन्यूअल और स्पेशल रिन्यूअल का भी काम होगा।' वैसे, सरकारी आंकड़े भले ही 40 फीसदी सड़कों को खराब बता रहे हों लेकिन सूबे में नई नवेली पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से लेकर सभी टोल रोड की स्थिति खराब है।
सड़कों को बेहतर रखने की प्रमुख जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी और एनएचएआई की है। प्रमुख सचिव को इन दोनों से मिली रिपोर्ट के अनुसार, पीडब्ल्यूडी की कुल 2.76 लाख किलोमीटर लंबी सड़क में से 65 हजार किलोमीटर सड़क में गड्ढे हैं। वहीं 22 हजार किलोमीटर सड़क बिना नवीनीकरण के चलने लायक नहीं है। इसी तरह 4,355 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय मार्ग में 890 किलोमीटर से अधिक सड़क में गड्ढे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल में टोल के नाम पर करोड़ों वसूलने वाले एनएचएआई की सड़कों में भी खूब गड्ढे हैं। एनएचएआई की 6,200 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़क में से 360 किलोमीटर सड़क में गड्ढे हैं। इतना ही नहीं, 160 किलोमीटर लंबी सड़क नवीनीकरण के मानक पर पहुंच गई है। सड़क निर्माण से जुड़े रहे अधिकारी कहते हैं कि इसकी वजह दो हैंः एक, निर्माण के दौरान और इसके पूरा होने पर इनकी जांच के मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं और दो, इनकी नियमित मरम्मत की कोई व्यवस्था नहीं है।
पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर में योगी सरकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 340 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का लोकार्पण कराया था। इसे 22 हजार करोड़ से तैयार किया गया है। मजबूती और अच्छे निर्माण को दिखाने के खयाल से तब इस पर फाइटर प्लेन उतारा गया था। लेकिन एक साल भी नहीं बीता कि इस एक्सप्रेसवे पर माइल स्टोन 83 के पास बीते 6 अक्तूबर को बारिश के बाद सड़क पर करीब 15 फीट लंबा गड्ढा हो गया था। आनन-फानन सड़क को दुरुस्त कराकर ट्रैफिक को चालू तो करा दिया गया लेकिन इसी जगह एक सप्ताह बाद कंटेनर से हुई टक्कर में बीएमडब्ल्यू कार में सवार उत्तराखंड के 4 युवकों की मौत हो गई। कहा गया कि ऐसा चेतावनी बोर्ड न लगे होने और सड़क की जर्जर स्थिति के कारण हुआ।
यह सब तब है जबकि मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय मंत्री तक जिलों के अधिकारियों के साथ लगातार सर्वे कर रहे हैं। लेकिन अधिकारी कैसे गुमराह कर रहे, इसकी मिसाल हाल ही में मिली। अभी 19 अक्तूबर को पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद लखनऊ के नेशनल कॉलेज के सामने बनी राणा प्रताप मार्ग की सड़क को देखने पहुंचे। इसे एक सप्ताह पहले ही बनाया गया था और सिर्फ फिनिशिंग टच देना बाकी था। यहां इंजीनियरों ने जो जगह दिखाई, मंत्री ने उसकी जगह दूसरे स्थान पर सड़क की खुदाई करा दी। मंत्री की जांच में दो करोड़ रुपये से तैयार सड़क की गुणवत्ता काफी खराब मिली।
गोरखपुर से वाराणसी तक बन रहे फोरलेन की निगरानी खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। इसका लोकार्पण जनवरी में प्रस्तावित है। बीते दिनों कौड़ीराम के पास करीब 100 मीटर लंबाई में फोरलेन धंस गई। एक वीडियो हाल में ही वायरल हुआ जिसमें पीलीभीत जिले की नवनिर्मित सड़क की गिट्टियों को स्कूली छात्र हाथों से उखाड़ते हुए दिख रहे हैं। दरअसल, पीलीभीत जिले में 12 लाख की लागत से सिरसा, सरदाह और महुआ के बीच सड़क बनाई जा रही है। करीब डेढ़ किलोमीटर सड़क बनी और दावा है कि यह वीडियो उसके दो दिनों बाद का है।
यही हाल जिलों की सड़कों का
जिला मुख्यालयों की जोड़ने वाली सड़कों का भी बुरा हाल है। बलिया-बांसडीह रोड पिछले दिनों तब सुर्खियों में आ गई थी जब एक पत्रकार के लाइव रिपोर्टिंग के दौरान एक ई-रिक्शा गड्ढे में पलट गया गया। स्थानीय पत्रकार अनूप हेमकर का कहना है कि 'टूटी सड़क पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं कि आए दिन कोई-न-कोई वाहन यहां दुर्घटनाग्रस्त होता रहता है। इस मार्ग को फोरलेन करने की योजना बनाई गई, धन भी स्वीकृत हुआ लेकिन काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है।' प्रयागराज में मलाका से फाफामऊ तक करीब 4 किलोमीटर सड़क में गड्ढे गिनना मुश्किल हो गया है। रोडवेज में परिचालक ताराशंकर का कहना है कि 'चार किलोमीटर सड़क में एक-एक फीट तक गड्ढे हैं। इस दूरी को तय करने में 30 मिनट से अधिक का समय लग जाता है। कई बार बस खराब हो चुकी है।' इसी तरह बस्ती-डुमरियागंज सड़क में गड्ढे ही गड्ढे हैं। पिछले जून महीने में लाखों खर्च कर गड्ढों को भरा गया था। बारिश के बाद पहले से अधिक गहरे गड्ढे हो गए हैं।
कानपुर में करीब एक किलोमीटर लंबे गंगा पुल पर गड्ढों को गिनना मुश्किल है। जौनपुर को जोड़ने वाली कमोबेश सभी सड़कों का बुरा हाल है। आजमगढ़ से जौनपुर जोड़ने वाली सड़क में गड्ढे ही गड्ढे हैं। जौनपुर शहर में टीडी कॉलेज रोड के गड्ढों को लेकर स्थानीय नेता कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। जौनपुर से मिर्जापुर जाने वाली सड़क का भी बुरा हाल है। चुनावी सभाओं में अयोध्या को जनकपुर धाम से जोड़ने वाले राम जानकी मार्ग को लेकर खूब चर्चा होती है। लेकिन इस पर सफर दुश्वारियों से भरा है। केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 2019 में ही रामजानकी मार्ग को एनएच घोषित किया था। लेकिन इसे चौड़ा करने की योजना अभी फाइलों में ही दौड़ रही है। अयोध्या से बस्ती, संतकबीर नगर, गोरखपुर होते हुए देवरिया के बिहार बॉर्डर तक की सड़क में गड्ढे गिनना मुश्किल है। गोरखपुर के गोला कस्बे में भीटी, मन्नीपुर, भरसड़ा में आधे-आधे फीट के गड्ढे में रोज गाड़ियां पलट रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की स्थिति भी जुदा नहीं है। गाजियाबाद-अलीगढ़ एक्सप्रेसवे पर बौनेर से खुर्जा सीमा तक 32 किलोमीटर लंबाई में सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं।
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