कल तक शवों को नदी में बहाए जाने को परंपरा बता रहे थे योगी आदित्यनाथ, अब कर दिया आदेश हजारों रुपए जुर्माना वसूलने का
इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर में गंगा नदी में लाशें बहने की तस्वीरें सामने आईं थी तो उत्तर प्रदेश के सीएम ने यह कहकर बचाव किया था कि यह तो परंपरा है। लेकिन अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ही आदेश जारी किया है कि नदी में शव बहाने पर जुर्माना लगेगा।
कोरोना काल की दूसरी भयावह लहर के दौरान इस साल अप्रैल और मई महीने में गंगा किनारे के करीब 30 जिलों में लाशें पानी में उतराती दिखीं तो विपक्ष के सवालों में फंसी योगी सरकार ने इसे हिन्दू परंपरा बता कर अपना बचाव किया था। सरकार के इशारे पर कुछ मीडिया संस्थान और महंत-पुजारी भी इसे हिन्दुओं की प्राचीन परम्परा बताने में जुट गए थे। लेकिन सवालों में फंसी योगी सरकार पूरे प्रकरण में अब नया आदेश लेकर आई है। अब गंगा समेत किसी भी नदी, नाले, पोखरे में लाश प्रवाहित करते हुए पकड़े जाने पर 3000 रुपये तक का जुर्माना वसूला जाएगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीते जून महीने में गंगा में शवों को प्रवाहित किये जाने के सवाल पर एक अखबार को दिये गए इंटरव्यू में कहा था कि ‘नदी किनारे रहने वाले लोगों ने अपनी परंपरा के अनुसार ही काम किया है। इस मुद्दे पर देश की छवि को दुनिया में खराब करने की कोशिश की गई।’ योगी के इस बयान के बाद विपक्ष की तरफ से जमकर हमले हुए।
लेकिन अब नदियों में शवों को प्रवाहित करने को परंपरा बताने वाले मुख्यमंत्री ने ठोस अपशिष्ट नियमावली में नदियों में शवों के बहाने पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया है। प्रदेश सरकार ने शहरों को साफ रखने को लेकर ठोस अपशिष्ट नियमावली लागू करने का निर्णय लिया है। इसके तहत नदियों में शव बहाने पर 3000 रुपये तक का जुर्माना लगेगा। नियमावली के तहत नगर पंचायतों में 500 रुपये, नगर पालिका परिषद में 1000 रुपये जुर्माना वसूले जाने का प्रावधान किया गया है। वहीं छह लाख से अधिक आबादी वाले नगर निगमों में 3000 रुपये जुर्माना वसूलने का प्रावधान किया गया है।
ध्यान रहे कि कोरोना काल में प्रयागराज, काशी, गाजीपुर होते हुए बलिया तक हजारों की संख्या में लाशें गंगा नदी में उतराती हुई दिखीं थीं। इस पर तो विपक्ष ने योगी सरकार को जमकर घेरा था। इस मामले में यूपी और बिहार सरकार भी आमने सामने आ गई थी। पूरे प्रकरण में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी जवाब तलब किया था। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी सरकार को घेरते हुए मामले की जांच हाईकोर्ट के जज से कराने की मांग की थी।
सरकार ने पहले तो इसे अपने प्रवक्ताओं को आगे कर नकारा फिर मीडिया संस्थानों और महंत-पुजारियों समेत सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे कर इसे प्राचीन परम्परा बताने में जुट गई। आम लोगों की तरफ से भी शवों के अंतिम संस्कार को लेकर लंबी वेटिंग, लकड़ी की किल्लत आदि को लेकर अवाज उठाई जाने लगी तो सरकार बैकफुट पर आई। इसके बाद योगी सरकार ने एसडीआरएफ और पुलिस को नदियों में शवों को प्रवाह पर तत्काल रोक लगाते हुए ऐसा करने वालों के खिलाफ जुर्माना ठोंकने का आदेश दिया था। इसके साथ ही नदियों से सटे सभी गांवों और कस्बों के लोगों को भी जागरूक करने का निर्देश भी दिया गया।
इस पूरी कवायद में खुद को सवालों में घिरता देख योगी सरकार ने कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के अंतिम संस्कार के लिए 5 हजार रुपये की धनराशि देने का ऐलान किया था। यह जिम्मेदारी नगर निगम, नगर पंचायत, जिला पंचायत से लेकर ग्राम पंचायतों को दी गई। लेकिन हकीकत यह है कि अंतिम संस्कार के लिए लोगों को मुश्किल से ही आर्थिक मदद मिली। गोरखपुर से लेकर वाराणसी तक अभी भी तमाम लोग इस मदद के लिए दौड़ लगा रहे हैं।
उधर नदियों में शव प्रवाहित करने को लेकर खुद को फंसता देख सरकार ने मामले की जांच आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ प्रोफेसर विनोद तारे को सौंपी थी। सरकार ने जांच कर यह रिपोर्ट मांगी थी कि शवों के नदियों में प्रवाहित किये जाने का पर्यावरण की दृष्टि से क्या असर होगा? जांच रिपोर्ट के बाद प्रोफेसर तारे ने दो टूक कहा कि नदियों में शवों को प्रावहित करने का तरीका गलत है। इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
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