सेहत, शिक्षा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, बिजली निजी क्षेत्र को देने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार
योगी सरकार शिक्षा, सेहत, बिजली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जिम्मेदारी से ‘आजाद’ होने की तैयारी में है। इन क्षेत्रों में निजीकरण पर सरकार होमवर्क पहले ही कर चुकी है। बस, उसे सही वक्त का इंतजार है।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पिछले अप्रैल में अपनी स्थापना का 100 वर्ष पूरा किया है। अभी तक बोर्ड में पंजीकृत 27 हजार से अधिक स्कूलों का संचालन सोसाइटी या ट्रस्ट के माध्यम से होता है। अब इन स्कूलों को प्राइवेट कंपनियां भी संचालित कर सकेंगी। शिक्षा विभाग के अधिकारी कार्य योजना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रेजेंटेशन दिखा भी चुके हैं। मुख्यमंत्री इस ड्राफ्ट को अपनी सैद्धाांतिक सहमति दे चुके हैं। कभी भी इसे कैबिनेट की हरी झंडी मिल सकती है।
कंपनियां आसानी से स्कूल खोल सकें, इसके लिए नियमों को आसान भी बनाया जा रहा है। पहले स्कूल खोलने के लिए जमीन का बैनामा जरूरी था लेकिन अब 30 साल की भूमि की रजिस्टर्ड लीज या डीड भी मान्य होगी। कंपनियां सीधे इंटर स्तर की मान्यता ले सकेंगी, यानी कक्षा छह से 12 की जगह कक्षा 11 और 12 की मान्यता ली जा सकेगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की संस्तुतियों की आड़ में इसे अमली जामा पहनाया जा रहा है। प्रदेश में सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के स्कूलों की संख्या भले ही लगातार बढ़ रही हो लेकिन अभी भी बड़ी आबादी यूपी बोर्ड के स्कूलों पर ही निर्भर है। यूपी बोर्ड में मान्यता प्राप्त 27,892 विद्यालयों में शैक्षिक सत्र 2021-22 में कक्षा नौ से 12 तक के कुल पंजीकृत छात्र-छात्राओं की संख्या एक करोड़ 10 लाख से अधिक है।
इसी तरह, गांवों के अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है। पहले चरण में 15 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों का चयन किया जा रहा है। महानिदेशक (चिकित्सा स्वास्थ्य) के निर्देश पर सूबे के सभी 75 जिलों से इसके लिए एक-एक सीएचसी का चयन किया जा चुका है। विभाग को इनमें से 15 स्वास्थ्य केन्द्रों का चयन करना है। इसमें मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर में बेलघाट स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का चयन तय माना जा रहा है। इन अस्पतालों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की तर्ज पर संचालित किया जाएगा।
बता दें कि ग्रामीणों को घर के पास इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए हर ब्लॉक में एक लाख की आबादी का मानक बनाकर सीएचसी स्थापित हैं। कुछ ब्लॉकों में एक से अधिक सीएचसी भी स्थापित हैं। प्रदेश में 821 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। इनमें से बमुश्किल 650 ही क्रियाशील हैं। शेष में मरीजों की भर्ती और इलाज कागजों में ही होता है। गोरखपुर के अरांव जगदीशपुर, बासूडिहा, बेलघाट में अस्पताल के नाम पर सिर्फ बिल्डिंग ही है। सीएचसी में 30 बेड का अस्पताल होता है। इसमें बालरोग, एनेस्थीसिया, मडिसिन, गायनी के विशेषज्ञ अनिवार्य तौर पर होने चाहिए। इसके अलावा, आर्थो सर्जन और जनरल सर्जन में से कम-से-कम एक की तैनाती का मानक है।
बीते जून महीने में कायाकल्प अवार्ड योजना के तहत प्रदेश की सीएचसी की रैकिंग हुई थी। इसमें सिर्फ 265 ही मानक पर खरे उतरे थे। वैसे, सेहत के क्षेत्र में सरकार पहले ही अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना शुरू कर चुकी है। सभी प्रमुख सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी, सीटी स्कैन और एमआरआई जांच की सुविधा प्राइवेट हाथों में दी जा चुकी है। सरकारी अस्पतालों में 60 फीसदी से अधिक चिकित्सक संविदा पर हैं। इन्हें प्राइवेट प्रैक्टिस की छूट है। ऐसे में, चिकित्सक अस्पतालों में कितना समय देते होंगे, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा का कहना है कि ‘जिला अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेजों में नर्स से लेकर पैरामेडि कल स्टाफ की तैनाती ठेका सिस्टम पर हो रही है। अब प्रशासनिक कार्यालयों और डेटा एंट्री के लिए भी आउटसोर्सिंग पर कर्मचारी रखे जाने लगे हैं।’
एक जिला-एक मेडिकल कॉलेज का सपना योगी सरकार पीपीपी मोड में संचालित कालेजों से पूरा करने जा रही है। प्रदेश में 16 जिलों में प्राइवेट भागीदारी से मेडिकल कॉलेज खोलने की तैयारी है। महराजगंज और संभल जिले में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोले जाने को यूपी कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी है। केन्द्र सरकार की प्रधानमंत्री मातृ सुरक्षा योजना के तहत महीने में एक दिन प्राइवेट चिकित्सक पहले ही एंट्री पा चुके हैं। महीने की हर 9 तारीख को प्राइवेट चिकित्सक महिलाओं को चिकित्सकीय परामर्श देते हैं।
बिजली निगम से जुड़े 27 लाख से अधिक कर्मचारी लोकसभा में प्रस्तुत बिजली कानून संशोधन बिल, 2022 का विरोध कर रहे हैं। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि ‘बिल प्रस्तुत करने के पीछे मंशा पॉवर सेक्टर को पूरी तरह प्राइवेट करना है। विधेयक में प्रावधान है कि एक ही क्षेत्र में एक से अधिक वितरण कंपनियों को लाइसेंस दिया जाएगा, यानी निजी क्षेत्र की नई वितरण कंपनियां सरकारी क्षेत्र के नेटवर्क का इस्तेमाल कर बिजली आपूर्ति कर सकेंगी। इससे निजी कंपनियां मात्र कुछ शुल्क देकर मुनाफा कमाएंगी और सरकारी कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी।’
इसी तरह, उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को भी प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी है। पिछले चार साल में रोडवेज में बसें तो नहीं खरीदी गईं, अलबत्ता 2,500 से अधिक बसें आरटीओ में सरेंडर कर दी गईं।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष चेतनारायण सिंह का कहना है कि ‘बीजेपी सरकारी कर्मचारियों को ही खत्म करने पर तुली है। पहले पेंशन बंद हुई, अब जबरिया रिटायर किया जा रहा है। सरकार छोटे से लेकर बड़े पदों को ठेका के माध्यम से तैनात कर रही है।’
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