क्या कॉलेजियम द्वारा सरकारी एजेंसियों की आपत्ति का खुलासा करने से चिढ़ गए हैं कानून मंत्री किरन रिजिजू?
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने बयान में ऐसा कुछ भी संवेदनशील नहीं कहा है जिससे किसी व्यक्ति की विश्वसनीयता या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कानून मंत्री किरेन रिजिजू से उस मुद्दे पर सवाल पूछा जिसमें रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के मामले में खुफिया ब्यूरो और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) जैसी सरकारी एजेंसियों की आपत्तियों का खुलासा करता है।
पिछले सप्ताह कॉलेजियम ने एक सार्वजनिक बयान दिया था जिसमें बताया गया था कि आखिर वह क्यों पांच वकीलों की हाईकोर्ट जज के रूप में नियुक्ति पर जताई गई आपत्तियों को खारिज कर रहा है। बयान में खुफिया ब्यूरो (आईबी) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का नाम लिया गया था। बयान में इन एजेंसियों की आपत्तियों को सामने रखते हुए कहा गया था कि क्यों इन आपत्तियों को स्वीकार नहीं किया गया है।
इसी पर कानून मंत्री किरन रिजिजू ने मंगलवार को बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि इन आपत्तियों का खुलासा करना एक गंभीर मसला है क्योंकि एजेंसियों की रिपोर्ट गुप्त होती है और सरकार इस स्थिति से अपने तौर पर निपटेगी।
इसी पर पी चिदंबरम ने भी बयान दिया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “आखिर किरन रिजिजू को कॉलेजियम के बयान पर आपत्ति क्यों हैं कि उन्होंने तीन जजों की नियुक्ति की सिफारिश पर आईबी और रॉ की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया? कॉलेजियम ने किसी संवेदनशील मामले का खुलासा नहीं किया है जिससे किसी व्यक्ति विशेष की विश्वसनीयता पर या राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई आँच आती हो। रिपोर्ट में ऐसी सामग्री थी जो न्यायाधीश बनने के लिए किसी व्यक्ति की पात्रता के लिए उपयुक्त नहीं थी। लोगों को यह जानने का अधिकार है कि जब कॉलेजियम द्वारा फिट माने गए व्यक्ति को केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से मनमाने और अप्रासंगिक आधार पर खारिज कर दिया गया था।”
इस मुद्दे पर कानूनी गलियारों में विचार थोड़ा बंटे हुए हैं। वरिष्ठ वकील फाली नरीमन ने मंगलवार को एक टीवी शो में कहा कि कानून मंत्री और देश के प्रधान न्यायाधीश को आपस में बैठकर बंद करने में बात करनी चाहिए और सारे मुद्दों को सुलझाना चाहिए। वहीं कुछ अन्य पर्यवेक्षकों ने इस सुझाव का स्वागत किया। लेखक और संविधान विशेषज्ञ गौरतम भाटिया इस सुझाव से सहमत नहीं नजर आते। उन्होंने कहा कि, “वह तो बंद कमरे में खुफिया डील की बात कर रहे हैं, क्या इसे हम एक महान सिद्धांत के तौर पर स्वीकार सकते हैं?”
आखिर क्या है पूरा मामला?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पांच जजों की नियुक्ति की सिफारिश की था। लेकिन सरकार ने खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट का सहारा लेकर इन नियुक्तियों का विरोध किया। इसी के जवाब में कॉलेजियम ने बयान जारी किया है। मौजूदा प्रक्रिया के मुताबिक अगर कॉलेजियम किसी जज की नियुक्ति की दोबारा सिफारिश करता है तो सरकार इसे मानने के लिए बाध्य है।
लेकिन इन पांच वकीलों की जज के तौर पर नियुक्ति के मामले में सरकार कॉलेजियम के सिफारिश के बावजूद नियुक्ति की अधिसूचना जारी करने से इनकार कर रही है। इन जजों की नियुक्ति एक से पांच साल के लिए की जानी है। याद दिला दें कि 2017 में कॉलेजियम ने वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश की थी और सरकार द्वारा वापस किए जाने के बाद बने कॉलेजियम ने भी फिर से उनके नाम की जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी। पिछले सप्ताह कॉलेजियम ने एक बार फिर सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश की है और सार्वजनिक बयान देकर यह भी बता दिया है कि आखिर वह क्यों सरकार की आपत्तियों को अनदेखा कर रहा है।
कॉलेजियम ने बताया है कि एक मामले में रॉ की आपत्ति यह है कि वकील के पार्टनर (लिव इन पार्टनर) विदेशी नागरिक हैं, जबकि खुफिया ब्यूरो यानी आईबी ने उनकी यौन प्राथमिकताओं और एलजीबीटीक्यू मामले पर रुचि के कारण आपत्ति जताई है। कॉलेजियम ने बिना नाम लिए कहा है कि बहुत से ऐसे लोग संवैधानिक पदों पर हैं जिनका विवाह विदेशी नागरिकों से हुआ है। वैसे तो कॉलेजियम ने नाम नहीं बताए हैं लेकिन बता दें कि एक पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा विदेशमंत्री विदेशी नागरिक रहे हैं।
वैसे सौरभ कृपाल ने अपनी यौन प्राथमिकताओं को कभी छिपाया नहीं है और न ही इस बात को छिपाया है कि उनका पार्टनर स्विस नागरिक है। कॉलेजियम ने कहा है कि, लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं है कि उनके निर्णय पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे। उन्हें भी अपने विचार रखने का पूरा अधिकार है।
इसी तरह चेन्नई के वकील आर जॉन सथयन को मद्रास हाईकोरट का जज नियुक्त करने की सिफारिश को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा था। कॉलेजियम ने बताया है कि आईबी ने उनके बारे में लिखा है कि सथयन की छवि एक अच्छे पेशेवर वकील की है और उनकी विश्वसनीयता को लेकर कोई आपत्तिजनक बात सामने नहीं आई।
इनके अलावा सोमाशेखर सुदर्शन का नाम बॉम्बे हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए भेजा गया था। उनके खिलाफ कानून मंत्रालय ने एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से आपत्ति की है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने विचार रखे हैं वह वह गहरे है और वे पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति हैं। लेकिन कॉलेजियम का कहना है कि उन्होंने सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर अपने विचार रखे हैं जिनके बारे में मीडिया में चर्चा हो रही है और वे आपत्तिजनक नहीं हैं। कॉलेजियम के मुताबिक उनके विचारों में कुछ भी ऐसा हीं है जिसे सरकार की नीतियों की आलोचना माना जाए।
इसी तरह कोलकाता के दो वकीलों अमितेश बनर्जी और शाक्य सेन के नाम भी कॉलेजियम निरंतर नियुक्ति के लिए भेज रहा है। इन दोनों के बारे में सरकारी एजेंसियों या कानून मंत्रालय ने कोई आपत्ति नहीं जताई है, फिर भी इनके नाम वापस भेज दिए गए।
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