योगी-माया पर तो लगा दी गई पाबंदी, क्या पीएम मोदी के प्रचार करने पर रोक लगाने की हिम्मत दिखाएगा आयोग?
चुनाव आयोग ने सख्त कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीएसपी मुखिया मायावती के प्रचार करने पर रोक लगा दी। इन दोनों पर चुनावी भाषण में सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने का आरोप है। लेकिन पीएम मोदी के मामले में आयोग चुप है। आखिर क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जैसे ही चुनाव आयोग के निर्देश दिया कि उसके अफसर आकर कोर्ट को बताएं आखिर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है, इसके चंद घंटे के भीतक ही आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के प्रचार करने पर रोक लगा दी। मायावती पर 48 घंटे तो योगी पर 72 घंटे की रोक लगाई गई है।
लेकिन इसी किस्म की शिकायतें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी हुई हैं, पर उस पर चुनाव आयोग में सन्नाटा है और इसे संदिग्ध चुप्पी माना जा रहा है।
दरअसल योगी आदित्यनाथ ने 9 अप्रैल को एक भाषण में केरल में यूडीएफ का घटक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को हरा वायरस कहा था और हिंदु-मुस्लिम वोटरों का इशारा करते हुए अली-बजरंग बली का बयान दिया था। इससे पहले मायावती ने भी एक चुनावी सभा में मुसलमानों से वोट की अपील की थी। लेकिन योगी के अली-बजरंग बली का बयान देने के बाद मायावती ने फिर से 13 अप्रैल को कहा था कि अली और बजरंग बली दोनों ही एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ हैं।
इन्हीं बयानों को आधार बनाते हुए चुनाव आयोग ने इन दोनों नेताओं के प्रचार करने पर रोक लगा दी है। इस रोक से दूसरे चरण के लिए प्रचार पर खासा असर पड़ सकता है, क्योंकि दूसरे दौर की वोटिंग के लिए प्रचार का आखिरी दिन मंगलवार को है। देखना होगा कि जब 48 घंटे की रोक के बाद 19 अप्रैल को मायावती फिर से प्रचार उतरेंगी तो किस तरह के बयान सामने आएंगे।
इससे पहले चुनाव आयोग योगी आदित्यनाथ को ‘मोदी की सेना’ वाले बयान के लिए चेतावनी दे चुका है।
लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामले पर चुनाव आयोग क्यों ढिलाई बरत रहा है। क्या पीएम के लिए आचार संहिता के नियम अलग हैं?
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि, “कांग्रेस ने हिंदुओं का अपमान किया। लोगों ने अब इसे सजा देने का फैसला कर लिया है। इस पार्टी के नेता बहुसंख्यक आबादी (हिंदू) वाली सीटों से चुनाव लड़ने में डरने लगे हैं। इसीलिए अब वे ऐसी जगह से चुनाव लड़ रहे हैं जहां बहुसंख्यक कम संख्या में है।” महाराष्ट्र के वर्धा में हुई पीएम की इस रैली का भाषण का देश भर के मीडिया ने सीधा प्रसारण किया था।
इसके अलावा प्रधानमंत्री पुलवामा शहीदों के नाम पर भी वोट मांग रहे हैं। उनके भाषणों में भारतीय सेनाओं और बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक का भी जिक्र रहता है।
यहां दिलचस्प है कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के सामने बेबस है। आयोग ने कह कि, “इस मामले में चुनाव आयोग के अधिकार बेहग सीमित हैं...हम नोटिस जारी कर सकते हैं और जवाब मांग सकते हैं, लेकिन किसी पार्टी या उम्मीदवार को अयोग्य घोषित नहीं कर सकते...मायावती को अपना जवाब 12 अप्रैल तक देना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ...हम सिर्फ सलाह ही जारी कर सकते हैं और बार-बार कोई नियमों का उल्लंघन करता है तो हम एक शिकायत दर्ज कराते हैं...”
इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़ने से कोर्ट ने पूछा कि क्या यह सही है कि क्या सांप्रदायिक भावनाएं उठाने के लिए चुनाव आयोग सिर्फ इतना ही कर सकता है, संजय हेगड़ ने कोर्ट को बताया कि संविधान की धारा 324 के तहत चुनाव आयोग के पास काफी अधिकार हैं।
इस बीच एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने भी दोहराया कि आचार संहिता उल्लंघन के मामले में चुनाव आयोग ने एक गवर्नर पर पाबंदी लगाई है और अगर कोई और नियमों का उल्लंघन करता पाया जाता है तो उस पर भी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा।
उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग के पास ऐसे मामलों में नेताओं पर दो, तीन या फिर दस दिन तक प्रचार करने पर पाबंदी लगाने का विकल्प रहता है।
लेकिन सवाल तो अभी बाकी है, क्या प्रधानमंत्री के प्रचार करने पर पाबंदी लगाएगा चुनाव आयोग?
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