उत्तराखंड में लगातार क्यों दरक रहे हैं पहाड़? इसके लिए कहीं मोदी सरकार का ये प्रोजेक्ट तो जिम्मेदार नहीं!

अब सवाल यह उठता है कि जब सामान्य और सामान्य से कम बारिश में ही उत्तराखंड में पहाड़ इतने भयावह तरीके से दरक रहे हैं तो अतिवृष्टि, बादल फटने या सामान्य से ज्यादा बारिश होने की स्थिति में क्या हालात होंगे।

फोटो: त्रिलोचन भट्ट
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त्रिलोचन भट्ट

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से आने वाली तस्वीरें और वीडियो बेहद भयावह हैं। इनमें से ज्यादातर वीडियो और तस्वीरें उन सड़कों के हैं, जिन्हें चौड़ा करने के नाम पर पिछले कई सालों से पहाड़ों को बेरहमी से खोदा जा रहा है। फाइलों में बेशक इस पहाड़ खोदने के विनाशकारी प्रोजेक्ट को चार धाम सड़क परियोजना नाम दिया गया हो, लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अब भी इसे ऑल वेदर रोड बता रहे हैं। मीडिया में एक तरफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह का बयान आता है कि ऑल वेदर रोड के कारण तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन दूसरी तरफ इन तथाकथित ऑल वेदर रोड के दरक जाने से हजारों लोगों के जगह-जगह फंस जाने की खबरें भी आती है।

फोटो: त्रिलोचन भट्ट
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उत्तराखंड में अब तक वैसी बारिश नहीं हुई, जैसी बारिश के लिए इस राज्य को जाना जाता है। कुछ पर्वतीय जिलों में तो अभी बारिश औसत से कम दर्ज की गई है। बावजूद इसके राज्य में लगातार पहाड़ दरक रहे हैं। अब तक पहाड़ों के दरकने से मोटर मार्ग बंद होने की सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं। हजारों तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और स्थानीय लोगों की पहाड़ दरकने जैसी घटनाओं के कारण मौत हो चुकी है। यह सिलसिला गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक बदस्तूर जारी है। चारधाम वाले यात्रा मार्गों पर पुलिस सोशल मीडिया के माध्यम से सड़कें बंद होने और खुल जाने की सूचना देती है, लेकिन बाकी जिलों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इन जिलों में पहाड़ दरकने और उससे मोटर मार्ग बंद हो जाने की सूचनाएं बहुत कम आ रही हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार मानसून शुरू होने से लेकर अब तक राज्य में 250 से ज्यादा जगह सड़कें बंद हो चुकी हैं। इनमें से कुछ सड़कें खोल दी गई हैं, जबकि कुछ अब भी बंद हैं। प्रशासन की ओर से बार-बार जल्दी सड़कें खोल दिये जाने के आश्वासन के साथ लोगों से धैर्य बनाये रखने की अपील की जा रही है। राज्य में मानसून आने के साथ ही तबाही शुरू हो गई थी। 30 जून को सबसे पहले हरिद्वार में जल सैलाब आया और कई गाड़ियों को कागज की नाव की तरह बहते देखा गया। उसके बाद रामनगर में मोहान के पास रानीखेत जाने वाला पुल बह गया। इस पुल के बनने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है। रानीखेत जाने वालों को दूसरे रास्तों से भेजा जा रहा है, इसके लिए उन्हें 50-60 किमी तक अतिरिक्त सफर करना पड़ रहा है। बदरीनाथ और केदारनाथ हाईवे पर तो एक के बाद एक कई पहाड़ दरक चुके हैं और हजारों तीर्थयात्री और स्थानीय लोग फंस चुके हैं या अब भी फंसे हुए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में मानसून आने के बाद से 10 जून तक यानी केवल 12 दिनों में 245 जगह सड़कें टूट चुकी थी। रिपोर्ट कहती है कि सड़कें टूटने के कारण नैनीताल और चम्पावत जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। नैनीताल में सबसे ज्यादा 38 सड़कें बंद हुई और चम्पावत में नेशनल हाईवे सहित कुल 35 सड़कें बंद हुई। चमोली जिले में भी अब तक 35 सड़कें बंद हुई हैं। इसके अलावा देहरादून और रुद्रप्रयाग जिले में 14, उत्तरकाशी में 3, बागेश्वर में 19, पिथौरागढ़ में 6 सीमावर्ती सड़कों सहित कुल 28 सड़कें बंद हुई हैं। अल्मोड़ा में 19, पौड़ी गढ़वाल में 16 और टिहरी में 24 सड़कें बंद हुई। पर्वतीय जिलों में बारिश के कारण होने वाली घटनाओं और सड़क हादसों में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। इस दौरान राज्य में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 71 लोगों की मौत हुई और 9 लोग बारिश के कारण हुई अन्य घटनाओं में मारे गये।


फोटो: त्रिलोचन भट्ट
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राज्य में मानसून सीजन में अब तक हुई बारिश के आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि अब तक कहीं भी अतिवृष्टि जैसी घटना नहीं हुई है। बादल फटने जैसी कोई घटना भी इस सीजन में अब तक सामने नहीं आई है। राज्य के कुछ जिलों में तो अभी बारिश भी सामान्य से कम ही दर्ज की गई है। राज्यभर में 11 जुलाई की सुबह तक औसत बारिश 337.3 मिमी दर्ज हुई थी, जो सामान्य से 9 प्रतिशत ज्यादा है। लेकिन, कई जिलों में अब तक सामान्य से कम बारिश हुई है। आपदा की दृष्टि से सबसे ज्यादा संवेदनशील दो जिलों उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग में अभी सामान्य बारिश भी नहीं हुई है। उत्तरकाशी में सामान्य से 28 प्रतिशत कम 208.3 मिमी बारिश हुई है तो रुद्रप्रयाग में अब तक 307.1 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 20 प्रतिशत कम है। पौड़ी में सामान्य से 35 प्रतिशत कम और हरिद्वार में सामान्य से 47 प्रतिशत कम बारिश अब तक दर्ज की गई है।

अब सवाल यह उठता है कि जब सामान्य और सामान्य से कम बारिश में ही उत्तराखंड में पहाड़ इतने भयावह तरीके से दरक रहे हैं तो अतिवृष्टि, बादल फटने या सामान्य से ज्यादा बारिश होने की स्थिति में क्या हालात होंगे। दूसरा सवाल यह भी कि हाल के वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि पहाड़ इतनी बुरी तरह से दरकने लगे हैं। इस सवाल का सीधा से उत्तर है चारधाम सड़क परियोजना यानी तथाकथित ऑल वेदर रोड। अब तक जितने भी भयावह वीडियो उत्तराखंड से आये हैं, वे इसी ऑल वेदर रोड से आये हैं। इसके अलावा ग्रामीण सड़कों के आसपास वाले क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं सबसे ज्यादा दर्ज की गई हैं। इन दोनों तरह की सड़कों के निर्माण की प्रक्रिया देखें तो बेहद घटिया, अवैज्ञानिक और गैर जिम्मेदाराना है।

सबसे ज्यादा प्रभावित सड़कों की बात करें तो वह ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग है। ऑल वेदर रोड के नाम पर सबसे ज्यादा छेड़छाड़ इसी सड़क के साथ हुई है। हाल के दिनों में जो सबसे भयावह तस्वीरें आई हैं, वे भी इसी रोड की हैं। जोशीमठ के पास यह सड़क अब भी बंद है और तीर्थयात्रियों के साथ ही स्थानीय लोग भी फंसे हुए हैं। जोशीमठ डंपिंग जोन के पास तीन दिन पहले बड़ा भूस्खलन हो गया था। यहां अब तक सड़क नहीं खोली जा सकी है। सड़क के इस हिस्से से होकर पैदल आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई है। प्रशासन ने जल्द सड़क खोलने का आश्वासन दिया है और धैर्य बनाये रखने की बात कही है। इसके अलावा पातालगंगा के पास लंगसी सुरंग के पास भी बड़ा भूस्खलन हो गया था, यहां सड़क अब आने-जाने लायक खोल दी गई है। जोशीमठ से आग भी बदरीनाथ मार्ग बंद है। जगह-जगह सड़क बंद होने के कारण सिर्फ तीर्थयात्री और स्थानीय लोग ही नहीं फंसे बल्कि 40 पोलिंग पार्टियां भी फंस गई थी। बदरीनाथ विधानसभा क्षेत्र के लिए 10 जुलाई को उपचुनाव करवाया गया था। चुनाव से ठीक पहले जोशीमठ से आगे सड़क पर भारी मलबा आ गया था। इससे वोट डालने के अपने गांव जाने वाले लोग वोट नहीं डाल पाये।

मतदान के दौरान की कई दूसरी जगहों पर भी ऑलवेदर रोड दरक गई। इससे 40 पोलिंग पार्टियां जहां-जहां फंस गई थी। चार पार्टियों को हेलीकॉप्टर के जरिये वापस लाना पड़ा। सैकड़ों की संख्या में बदरीनाथ और हेमकुंड यात्रा पर आये तीर्थयात्री भी इस क्षेत्र में फंसे हुए हैं। रोजमर्रा की चीजों की सप्लाई बंद होने के कारण स्थानीय लोगों के साथ ही तीर्थयात्रियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सबसे बड़ी चिन्ता बनी हुई है। वजह यह है कि सड़क बंद होने के कारण जो पूरा इलाका कटा हुआ है, वहां कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है या सिर्फ नाममात्र की है। ऐसी हालत में कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार पड़ गया तो उसे अस्पताल तक पहुंचाना कठिन हो जाएगा।

उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड एक बड़ा नासूर बन चुकी है। इस रोड के निर्माण से पहले ही कई सवाल उठाये गये थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा के नेतृत्व में इस प्रोजेक्ट से होने वाले नुकसान का पर्यावरणीय आकलन करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी को बीजेपी सरकार से बुरी तरह प्रभावित किया। हालात यहां तक पहुंच गये कि डॉ. रवि चोपड़ा को इस्तीफा देना पड़ा। कुछ और सदस्यों ने भी कमेटी को छोड़ दिया। हालांकि डॉ. चोपड़ा ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को स्वीकार भी किया। इस पर आदेश भी दिया। लेकिन बाद में केन्द्र सरकार इन सड़कों को सामरिक महत्व की होने के तर्क के साथ सुप्रीम पहुंची और इस तरह ऑल वेदर रोड के नाम पहाड़ों को तहस-नहस करने की इजाजत मिल गई। इसका नतीजा सामने है। भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती कहते हैं कि जिस तरह से ऑल वेदर रोड के नाम पर पहाड़ों को अवैज्ञानिक तरह से काटा गया है, उसके चलते आने वाले सालों में भी लगातार ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

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