इतिहास गवाह है: जब-जब प्याज के दाम पर जनता रोती है, तो सत्ता पक्ष को रुलाती जरूर है

देश का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब प्याज के दाम के चलते जनता को रोना आया है तो उसने पलटकर सत्ता को रुलाया जरूर है। वह 80 के दशक के चौधरी चरण सिंह हों या 90 के दशक के साहिब सिंह या सुषमा स्वराज।

फोटो : Getty Images
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आखिर प्याज ने हम हिंदुस्तानियों को रुला दिया। और क्यों न रोएं। जब प्याज 100 रुपए प्रति किलो से अधिक भाव में बिकेगी तो रोना आएगा ही। अरे इस देश में ऐसी कौन सी हांडी है जो प्याज के बगैर पकती हो। परंतु अब घर के चूल्हे के पास खड़ी प्याज काटती महिला की आंखों से ही आंसू नहीं टपक रहे हैं, बल्कि प्याज के लिए जेब से पैसा देने वाला भी रो रहा है। वह बेचारा तो अब फूट-फूट कर रो रहा है, और क्यों न रोए, ऐसी कौन सी सब्जी या अन्य वस्तुए हैं जिनके दाम आसमान नहीं छू रहे। एक हरी मटर ही ले लीजिए, इस सर्दी के मौसम में गाड़ी भर-भर मुहल्ले-मुहल्ले सब्जी वाले बेचा करते थे। काम से आते-जाते लोग किलो-डेढ़ किलो खरीदते और घर चल देचे। जाड़े में मटर का भाव दस रुपए किलो चिल्ला-चिल्लाकर होता था। पर अभी दिल्ली में अब वही मटर अस्सी रुपए प्रति किलो बिक रही है। मारा मारा फिरने वाला टमाटर 50 से 80 रुपए प्रति किलो के भाव है।

अब कीजिए तो क्या कीजिए। केवल एक ही उपाय है, और वह यह कि इन महंगी सब्जियों को खाना बंद कर दीजिए। प्याज छोड़िए, मटर छोड़िए, टमाटर छोड़िए। चलिए हरी मटर नहीं खाते, लेकिन कौन सी हंडिया है जो प्याज और टमाटर के बिना बन जाती है। पहले तो गांवों में रहने वाले कितने गरीबों ने बिस्कुट खरीदना बंद कर दिया, तब ही तो पारले जी बिस्कुट बनाने वाली कंपनी ने 10 हजार लोगों को काम से निकाल दिया।

वैसे नौकरियों की छंटनी आम बात हो गई है। कार या ट्रक बनाने वाले कारखाने लोगों को काम से बाहर कर रहे हैं। और वह करें भी क्या। ट्रक का धंधा पिछले महीने 25 फीसदी घट गया। जाहिर है कि वह घर बिठाकर तो मजदूर को तन्ख्वाह तो देंगे नहीं। ऐसा ही हाल मारुति, महेंद्रा और होंडा जैसे कारखानों का है।

एक साल में एक करोड़ नए रोजगार देने के मोदी सरकार के दावे तो पहले ही हवा हो चुके हैं, अब तो हाल यह है कि एक साल में एक करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो जाएं इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए। जो रोजगार से लगे हैं उन्हें भी देखिए कि कब तक वेतन मिलता रहता है। खुद सरकार का खजाना खाली समझिए। मोदी जी अपने पिछले कार्यकाल में आरबीआई से मोटा पैसा लेकर उड़ा चुके हैं। ऐसा अंग्रेजों के समय से अब तक पहली बार हुआ है।

इस बार भी मोदी सरकार को अभी एक साल भी नहीं हुआ है लेकिन सरकार ने देश की संपत्ति बेचने की घोषणा कर उन्हें नीलामी पर चढ़ा दिया। रेलवे बिक रहा है, हवाई अड्डे बिक रहे हैं, बीपीसीएल बिक रही है तो एयर इंडिया की बोली लगने वाली है। साहब क्या नहीं बिक रहा। आदमी अपनी बनाई संपत्ति बेचता कब है, जब खर्च के पैसे नहीं बचते। अब सब समझ लीजिए कि सरकार भी ठन-ठन गोपाल की कगार पर है। ऐसे में सरकारी बाबुओँ को कब तकवेतन मिलता रहेगा, भगवान ही जाने।


अरे भाई, किस-किस का रोना रोइए। प्याज को रोइए, हरे मटर को रोइए के उजड़ते रोजगार को रोइए। लेकिन यह मत भूलिए कि जब तक जनता प्याज के लिए रोती है चुनाव में सरकार को रोना पड़ता है। चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में प्याज के दाम 80 के दशक में आसमान छू गए और उन्हें सरकार से हाथ धोना पड़ा था। ऐसा ही 90 के दशक में दिल्ली में हुआ था जब बीजेपी के साहिब सिंह की कुर्सी गई और सुषमा स्वराज के हाथों से दिल्ली की सत्ता चली गई थी।

अब हमें यह नहीं पता कि प्याज मोदी सरकार और बीजेपी को कितना रुलाएगी, लेकिन यह तो साफ नजर आ रहा है कि हवा बदल रही है। महाराष्ट्र में बीजेपी चुनाव जीतकर भी सत्ता से बाहर है। इन हालात में इस माह जब झारखंड के चुनावी नतीजे आएंगे तो क्या होगा, अभी कहना जल्दबाज़ी होगी। हां इतना जरूर है कि अगर जनता को प्याज के भाव पर रोना आता है, तो चुनाव में जनता सत्तापक्ष को रुलाती जरूर है।

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