असम में अपना ही दांव उल्टा पड़ा, तो अब एनआरसी के ही खिलाफ साजिश में मोदी सरकार
असम एनआरसी के राज्य समन्वयक ने सभी जिला उपायुक्तों और नागरिक पंजीकरण के जिला रजिस्ट्रारों से ऐसे लोगों का विवरण मांगा है जो एनआरसी में शामिल करने के अयोग्य हैं लेकिन उनके नाम पहले एनआरसी में शामिल किए गए। यह सब एनआरसी प्रक्रिया को खारिज करने का हिस्सा है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पर सरकार ही जिस तरह नए-नए किस्म से एनआरसी सूची को संदेहास्पद बनाने की कोशिश में है, उससे दूसरी तरह की आशंका पैदा हो रही है। अब एनआरसी प्राधिकरण ने असम में जिला प्रमुखों को 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित एनआरसी की अंतिम सूची में अयोग्य व्यक्तियों का विवरण देने का निर्देश दिया है।
19 फरवरी को एनआरसी के राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा ने सभी जिलों के उपायुक्त (डीसी) और नागरिक पंजीकरण के जिला रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर 24 घंटे के भीतर विवरण मांगा। हालांकि एनआरसी कार्यालय से कोई जानकारी नहीं मिल रही, लेकिन दक्षिणी असम के एक डीसी ने पत्र प्राप्त होने की पुष्टि की है। स्थानीय संगठनों का मानना है कि तीन बंगाली बहुल दक्षिणी जिलों- कछार, हैलाकांदी और करीमगंज, में कई अवैध प्रवासियों के नामों को एनआरसी में शामिल किया गया है।
गत 31 अक्टूबर को वीडियो कॉन्फ्रेंस में इस मामले को उठाने का जिक्र करते हुए शर्मा ने पत्र में कहाः “यह पता चला है कि 31 अगस्त, 2019 को अंतिम एनआरसी के प्रकाशन के बाद अपात्र व्यक्तियों के कुछ नाम अंतिम एनआरसी में मौजूद पाए गए हैं।” अयोग्य व्यक्ति का मतलब हैः डीवी (संदिग्ध मतदाता), डीएफ (घोषित विदेशी), पीएफटी (विदेशियों के न्यायाधिकरण में लंबित मामले), डीवीडी (डीवीके वंशज), डीएफडी (घोषित विदेशी के वंशज) और पीएफटीडी (विदेशियों के न्यायाधिकरण में लंबित मामले के वंशज)।
एनआरसी नियमों के तहत, डीएफ, डीवी, पीएफटी और ऐसे व्यक्तियों से जिन्होंने लिगेसी तैयार की है, उन्हें एनआरसी से बाहर रखा जाना है। एनआरसी के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि अंतिम सूची में कई ऐसे लोग शामिल हैं और इसे अब ठीक करना होगा। यही कारण है कि यह कदम उठाया जा रहा है।
शर्मा के पत्र में कहा गया है कि: ऐसे व्यक्तियों की एक सूची आपकी तरफ से पहले ही साझा की जा चुकी है ... आपसे अनुरोध है कि आप ऐसे व्यक्तियों का विवरण साझा करें जो एनआरसी में शामिल करने के लिए अयोग्य हैं, लेकिन जिनके नाम पहले साझा की गई सूची के अलावा एनआरसी में शामिल किए गए।” एनआरसी के समन्वयक हितेश शर्मा एक फेसबुक पोस्ट में दावा कर चुके हैं कि एनआरसी की अंतिम सूची में लाखों बांग्लादेशियों के नाम शामिल किए गए हैं। इस पत्र को जारी करने का समय भी ध्यान खींचने वाला है।
एनजीओ- असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने एनआरसी की नए सिरे से जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में जिस दिन याचिका दायर की, उसके एक दिन बाद ही यह पत्र जारी किया गया। एपीडब्ल्यू की तरफ से 2009 में दायर की गई याचिका के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 1951 के एनआरसी को अपडेट करने की कवायद करवाई। एपीडब्ल्यू ने दावा किया कि एनआरसी की अद्यतन सूची में 80 लाख अवैध प्रवासियों को शामिल किया गया है।
दरअसल, अंतिम एनआरसी के प्रकाशन ने राज्य की बीजेपी सरकार और एपीडब्ल्यू- दोनों को ही नाखुश कर दिया था। दोनों ने ही इसे गलत ठहराया और यह मांग की कि इसमें शामिल नामों का फिर से सत्यापन होना चाहिए। पिछले अगस्त में प्रकाशित अंतिम एनआरसी से 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर रखा गया। जो लोग बचे हैं, उन्हें एनआरसी प्राधिकरण से नोटिस प्राप्त करने के 120 दिनों के भीतर विदेशियों के ट्रिब्यूनल में अपील करनी होगी। लेकिन 120 दिन पूरे होने तक भी सूची से बाहर रहने की नोटिस जारी करने की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो पाई है।
साफ है कि लड़ाई लंबी है
एनआरसी की प्रक्रिया कितनी जटिल और कष्टदायक है, यह बाकसा जिले के तामुलपुर के गुवाहारी गांव की जबेदा बेगम उर्फ जबेदा खातून के उदाहरण से समझा जा सकता है। जबेदा ने चार साल पुरानी मतदाता सूची, माता-पिता की एनआरसी मंजूरी, भूमि राजस्व भुगतान रसीदें, स्थायी निवास और शादी, राशन कार्ड, पैन कार्ड और बैंक पासबुक से जुड़े प्रमाण पत्र सहित 15 दस्तावेज पेश किए, फिर भी गौहाटी उच्च न्यायालय ने इन दस्तावेजों को भारतीय नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
एक विदेशी ट्रिब्यूनल ने जबेदा बेगम उर्फ जबेदा खातून को मई, 2019 में 1971 के बाद की धारा का विदेशी घोषित किया। इस पर जबेदा ने इन दस्तावेजों को अपनी नागरिकता के दावे को साबित करने के लिए अदालत के सामने पेश किया। उच्च न्यायालय ने उसके दावे को खारिज करते हुए तर्क दिया कि वह अपने माता-पिता और भाई के साथ अपने संबंध को साबित करने में विफल रही है। ध्यान रहे कि असम में भारतीय नागरिक माने जाने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि वह या उसके पूर्वज 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं। असम समझौते की यही कटऑफ डेट है।
जबेदा बेगम के वकील अहमद अली ने कहा कि वह लगभग 50 साल की अनपढ़ और निर्धन महिला हैं। हमने कई दस्तावेज दिए लेकिन अदालत संतुष्ट नहीं थी, क्योंकि उसे लगा कि दस्तावेज उसके माता-पिता से संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। उच्च न्यायालय में एक अन्य वकील सैयद बुरहान उर रहमान ने कहाः “बेगम के खिलाफ जो फैसला आया है, वह यह है कि वह अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्ते को जोड़ने में सक्षम नहीं हो पाई। 1997 की मतदाता सूची में उसके पति और माता-पिता के नाम नहीं थे।
इसके अलावा, उसे डी या संदिग्ध मतदाता के रूप में चिह्नित किया गया था। गांव पंचायत दस्तावेज एक वैध प्रमाण पत्र है और इसका इस्तेमाल विवाहित महिला के लिए दस्तावेज के तौर पर किया जा सकता है। यह आगे की जांच के अधीन है। रहमान ने कहा कि जबेदा बेगम उच्च न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर कर सकती हैं या उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
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