मणिपुर में लागू अनुच्छेद 355 क्या है, कितना अलग है राष्ट्रपति शासन से और क्या होगा असर?
सेना और असम राइफल्स ने गुरुवार को तीसरे दिन भी मणिपुर के कई अशांत जिलों में फ्लैग मार्च करना जारी रखा, हालांकि कई जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से छिटपुट हिंसक घटनाओं की सूचना मिलती रही। ऐसे हालात में आज केंद्र ने राज्य में अनुच्छेद 355 लागू कर दिया।
मणिपुर में बड़े पैमाने पर जारी हिंसा को देखते हुए केंद्र सरकार ने आज राज्य में अनुच्छेद 355 लागू कर दिया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अनुच्छेद 355 क्या है और क्या यह राष्ट्रपति शासन है या फिर उससे अलग है। अलग है तो यह कितना अलग है और इसके लागू होने पर किसके पास कौन सी शक्तियां होंगी? आइए जानते हैं इन सारे सवालों के जवाब।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 355
संविधान के अनुसार राज्य में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन किसी राज्य पर कोई बाहरी आक्रमण या गंभीर किस्म की आंतरिक हिंसा और अशांति होने पर केंद्र सरकार उस राज्य की कानून व्यवस्था सुधारने के लिए दखल देने का अधिकार रखती है और केंद्र सरकार को यह अधिकार मिलता है अनुच्छेद 355 से। इसके तहत केंद्र सरकार राज्य की पुलिस व्यवस्था, सेना की तैनाती और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठने का अधिकार रखती है। अनुच्छेद 355 लगाने के बाद राज्य की सुरक्षा और वहां संविधान लागू कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो जाती है।
अनुच्छेद 355 राष्ट्रपति शासन से कितना अलग?
संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। लेकिन यह तभी लगाया जा सकता है जब राज्य विधानसभा में कोई भी दल बहुमत ना सिद्ध कर सके। किसी आपातकालीन स्थिति, जैसे बाढ़, महामारी, युद्ध, हिंसा या प्राकृतिक आपदा के चलते समय पर विधानसभा चुनाव ना होने या निर्वाचित सरकार ना बन पाने पर ही अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
इसके अलावा अगर सरकार का सदन में संख्या बल कम हो जाता है और वह बहुमत खो देती है तो उस स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इसके अलावा, अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति को लगे कि राज्य सरकार संविधान के अनुरूप शासन चलाने में समर्थ नहीं है, उसके प्रावधानों और मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद 355 और 356 में सबसे खास फर्क
संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 में एक सबसे बड़ा और अहम फर्क ये है कि 356 लगने की स्थिति में राज्य की सरकार बर्खास्त हो जाती है, जबकि अनुच्छेद 355 लगाने पर ऐसा नहीं होता है। राज्य की सरकार बरकरार रहती है, लेकिन राज्य की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए कदम उठाने के सारे अधिकार केंद्र के पास चले जाते हैं। राज्य की पुलिस केंद्र के सीधे आदेश पर काम करती है।
मणिपुर में क्यों लगाना पड़ा अनुच्छेद 355
अब बात करते हैं कि मणिपुर में अनुच्छेद 355 क्यों लगाया गया। दरअसल मेइतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) कैटेगिरी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए बुधवार को आदिवासी बहुल जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आयोजन हुआ था, जिसके बाद अचानक हिंसा भड़क उठी। हजारों लोगों की बेकाबू भीड़ एक समुदाय पर टूट पड़ी। सैकड़ों घरों, दुकानों, झोपड़ियों में आग लगी दी गई।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मणिपुर सरकार ने गुरुवार को लगभग सभी जिलों में कर्फ्यू लगाने के साथ सभी जिलाधिकारियों, उप-विभागीय मजिस्ट्रेटों और सभी कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को अत्यधिक मामलों में शूट एट साइट ऑर्डर जारी करने के लिए अधिकृत कर दिया। केंद्र से भेजी गई सेना और अर्द्धसैनिक बलों को भी सड़कों पर उतार दिया गया। सेना और असम राइफल्स ने गुरुवार को तीसरे दिन भी मणिपुर के कई अशांत जिलों में फ्लैग मार्च करना जारी रखा, हालांकि विभिन्न क्षेत्रों से छिटपुट घटनाओं की सूचना मिलती रही। ऐसे हालात में आज केंद्र ने राज्य में अनुच्छेद 355 लागू कर दिया।
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