पश्चिम बंगाल चुनाव: नंदीग्राम में बीजेपी का उग्र हिंदुत्व मुश्किल में, किसानों की अपील से भी प्रभावित हुए वोटर
बीजेपी डॉक्टर्ड फोटो के जरिये सोशल मीडिया पर देश भर में चाहे जो कैम्पेन चला रही हो, ममता के पक्ष में उपजी सहानुभूति लहर से वह परेशान है। इसी वजह से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने नेताओं से भाषणों में ममता की चोटों का जिक्र करने से बचने को कहा है।
नंदीग्राम में खेती-किसानी ही मुख्य कारोबार है। किसानों की महापंचायत ने एक काम तो यहां किया ही है कि लोग किसी-न-किसी के पक्ष में गोलबंद होने लगे हैं। दरअसल, महापंचायत में किसान नेताओं ने साफ कहा भी कि वे किसी का समर्थन नहीं कर रहे, वे सिर्फ यह अपील करना चाहते हैं कि किसी भी ऐसे उम्मीदवार को वोट दें जो भारतीय जनता पार्टी को हरा सके। इसका असर यह है कि लोग बीजेपी विरोधी प्रत्याशी को तौल रहे हैं। नंदीग्राम में वोटिंग 1 अप्रैल को है।
यहां के किसान मोहम्मद यूसुफ कहते हैं कि ‘किसान नेताओं ने बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील की है। उसका फायदा यहां बीजेपी-विरोधी उम्मीदवार को मिल सकता है क्योंकि राज्य में लेफ्ट का किसान संगठन अब भी मजबूत है।’ बिरुलिया बाजार में चाय दुकान चलाने वाले सोमेश्वर नाथ एक दूसरी बात कहते हैं। उनका कहना है कि बीजेपी को जब यह सीट हाथ से निकलती नजर आई तो उसने दीदी पर हमला करा दिया। बीजेपी को चुनाव में इसका नतीजा भुगतना होगा।’ बिरुलिया बाजार ही वह जगह है जहां ममता के साथ 10 मार्च को हमले की घटना हुई थी।
इस हमले को लेकर बीजेपी डॉक्टर्ड फोटो के जरिये सोशल मीडिया पर देश भर में चाहे जो कैम्पेन चला रही हो, ममता के पक्ष में उपजी सहानुभूति लहर से वह खासा परेशान है। इसी वजह से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने तमाम नेताओं से अपने भाषणों में ममता की चोटों का जिक्र करने से बचने को कहा है। अपने विरोधियों पर व्यंग्यपूर्वक तरह-तरह के आरोप लगाने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने इस मुद्दे पर बोलने से खुद को रोके रखा। हां, उन्होंने जिस तरह ममता के पूजा-पाठ और चंडी पाठ का जिक्र किया, उससे समझा जा सकता है कि ममता ने कैसे बीजेपी के मर्म पर चोट पहुंचाई है।
दरअसल, ममता साफ कहती हैं कि ‘मैं हिंदू ब्राह्मण परिवार की बेटी हूं और रोज सुबह चंडीपाठ करती हूं। मेरे साथ हिंदू कार्ड मत खेलें।’ वह सभाओं में यह भी कह रहीं कि वह हिंदू धर्म और इसकी परंपराओं के बारे में बीजेपी नेताओं से कहीं ज्यादा जानती हैं और किसी को शक है तो वह उससे बहस करने और हिंदू श्लोकों के पाठ में प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं। नंदीग्राम में वह अपना परिचय ‘घरेर मेये’, यानी घर की लड़की के तौर पर दे रही हैं और उन्होंने यह ऐलान भी किया है कि वह साल के कम-से-कम तीन महीने यहीं रहेंगी।
ठीक 14 साल पहले इसी नंदीग्राम में हुए जमीन-अधिग्रहण विरोधी आंदोलन और पुलिस फायरिंग में इलाके के 14 लोगों की मौत ने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के सत्ता में पहुंचने की जमीन तैयार की थी। यह बात भी सच है कि नंदीग्राम में हुए आंदोलन को संगठित करने में तब शुभेंदु अधिकारी ने अहम भूमिका निभाई थी। ममता सरकार में लगातार मंत्री रहने के बाद शुभेंदु ने हाल में बीजेपी ज्वायन की और वह यहां से पार्टी उम्मीदवार हैं। लेकिन यहां लोग इस बात पर भी चर्चा कर रहे हैं कि बीजेपी की सरकार इस बार तो नहीं बनती दिख रही, ऐसे में अपना वोट उसे ही क्यों न दें जिसके फिर मुख्यमंत्री बनने की संभावना अधिक हो।
वैसे, बीजेपी ने इस इलाके में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हर संभव कोशिश की है। पहले गुजरात में नौकरी करते रहे लेकिन लॉकडाउन के बाद यहीं रह रहे वीरेश्वर दास तो कहते भी हैं कि ‘नंदीग्राम में अबकी नजारा बदला हुआ है। पहले यहां धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण नजर नहीं आता था। लेकिन खासकर बीते लोकसभा चुनावों के बाद तस्वीर बदल गई है।’ यहां अल्पसंख्यक मतदाताओं की आबादी लगभग 30 प्रतिशत है जबकि दलित वोटरों की तादाद करीब 40 फीसदी है। बीजेपी को भरोसा है कि दलितों के वोट उसे मिलेंगे। लेकिन अब उसकी मुख्य चिंता यह हो गई है कि अगर बीजेपी-विरोधी मत एकजुट हो गए, तो उसे खासी परेशानी हो जाएगी। अगर यहां सीपीएम भी मजबूती से लड़ी, तो अंततः उसका घाटा भी बीजेपी को ही होगा क्योंकि तृणमूल विरोधी मतों के बंटवारे से वही कमजोर होगी।
इसीलिए बीजेपी सांप्रदायिक कार्ड पर जोर दे रही है। उसके स्थानीय नेता सबूज प्रधान कहते हैं कि ‘नंदीग्राम बारूद के ढेर पर बैठा है। इसके लिए तृणमूल की तुष्टिकरण की नीति ही जिम्मेदार है। बहुसंख्यक आबादी को उनके अधिकारों से वंचित करने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।’ लेकिन जिला परिषद उपाध्यक्ष और ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट शेख सूफियान इन आरोपों को गलत बताते हैं, ‘तृणमूल कांग्रेस ने हमेशा सभी जातियों और धर्मों के हितों का ध्यान रखा है। लोग इस चुनाव में बीजेपी को धर्मनिरपेक्षता का सबक सिखा देंगे।’
वैसे, सिंगूर के रहने वाले जीवन कुमार भट्टाचार्य कहते हैं कि ‘खेती अब पहले जैसी रही नहीं और उद्योगों के नाम पर एक चवन्नी का निवेश भी नहीं हुआ है। ऐसे में हमारे घर के बच्चों को कमाने-खाने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है। ऐसे में, देखना होगा कि जमीनी हकीकत में बदलाव की उम्मीद में लोग किसे वोट करते हैं।’
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia