गंगा, गाय, गांव और गरीब के नाम पर सत्ता में आई सरकार ‘जुमलों’ में सिमटी : राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह कहते हैं कि, “चुनाव करीब आते ही सरकार ने फिर गंगा की बात शुरू कर दी है और कई योजनाएं बनाई गई हैं। सारा पैसा बांट दिया गया है, इस बात की उम्मीद कम है कि गंगा की सेहत सुधरेगी, हां ठेकेदारों का स्वास्थ्य जरूर दुरुस्त हो जाएगा।”

फोटो : IANS
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संदीप पौराणिक, IANS

जल कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह मौजूदा केंद्र सरकार के रवैए से बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि गंगा, गाय, गरीब और गांव के नाम पर आई इस सरकार ने इन सभी को भुला दिया है, और यह सरकार अब सिर्फ जुमलों में सिमट कर रह गई है।

एकता परिषद और सहयोगी संगठनों द्वारा जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को लेकर मंगलवार से ग्वालियर में शुरू हुए जनांदोलन-2018 में हिस्सा लेने आए राजेंद्र सिंह से, सत्ता में आने से पहले बीजेपी द्वारा किए गए वादों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मौजूदा केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए गंगा नदी, देश का गरीब वर्ग, गाय और स्वदेशी की इकाई गांव कोई मायने नहीं रखते हैं। यह सरकार देश की सांस्कृतिक विरासत से मुंह मोड़ चुकी है। गाय-गरीब मरता है तो मर जाए, उसकी उसे चिंता नहीं है, गंगा नदी की बदहाली लगातार बढ़ती जा रही है, मगर सरकार उस ओर से आंखें मूंदे हुए है।"

उन्होंने कहा, "गंगा नदी की अविरलता, निर्मलता के लिए डॉ जी डी अग्रवाल (स्वामी सानंद) 105 दिनों से उपवास पर हैं और अब वह सिर्फ गंगाजल का सेवन करने वाले हैं। 86 साल के बुजुर्ग की इस सरकार को चिंता तक नहीं है, वह सुध नहीं ले रही। डॉ अग्रवाल उसी विचारधारा को मानने वाले हैं, जिसकी इन दिनों देश में सत्ता है। वह अपने लिए कुछ नहीं मांग रहे, वह तो इस देश की धरोहर और संस्कृति की पूंजी को बचाने की बात कर रहे हैं, मगर सरकार कान में तेल डाले बैठी है।"

स्टॉकहोम वाटर प्राइज विजेता सिंह ने कहा, "गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए गौमुख से गंगा सागर तक 'सद्भावना यात्रा' निकाली जा रही है। यह यात्रा गंगा के तटों पर जाकर उनका हाल देखेगी, साथ ही लोगों को जागृत करने का काम किया जाएगा। इस यात्रा में गंगा विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और गंगा भक्त शामिल हैं, जो अपने लिए कुछ नहीं मांग रहे, बल्कि गंगा को बचाने की बात कर रहे हैं।"

केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के समय के वादों को याद करते हुए सिंह कहते हैं, "प्रधानमंत्री ने अपने को गंगा का बेटा बताया था, तब सभी में उम्मीद जगी थी कि वह गंगा के लिए जरूर कुछ करेंगे। यही कारण था कि उस दौरान शुरू किया जाने वाला आंदोलन स्थगित कर दिया गया था, मगर बीते साढ़े चार वर्षो में एक प्रतिशत भी काम नहीं हुआ है। गंगा के लिए 20,000 करोड़ रुपये की योजना बनी, मगर खर्च कितना हुआ और गंगा की सेहत में क्या बदलाव आया, यह किसी से छुपा नहीं है।"

मैगसेसे पुरस्कार विजेता सिंह ने आरोप लगाया, "चुनाव करीब आते ही सरकार ने फिर गंगा की बात शुरू कर दी है और 18,668 करोड़ रुपये की योजनाएं बनाई गई हैं। सारा पैसा बांट दिया गया है, इस बात की उम्मीद कम है कि गंगा की सेहत सुधरेगी, हां ठेकेदारों का स्वास्थ्य जरूर दुरुस्त हो जाएगा।"

सिंह ने साफ शब्दों में कहा कि गंगा नदी किसी एक व्यक्ति या वर्ग की नहीं है, वह हमारी संस्कृति की प्रतीक है। लिहाजा उसे बचाने की जिम्मेदारी समाज के हर वर्ग की है, इसलिए वह गंगा की खातिर गौमुख से यात्रा शुरू कर चुके हैं, जो 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर जाकर विसर्जित होगी।

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