फिर बढ़ी व्यापमं घोटाले की तपिश, BJP नेताओं में हड़कंप, कई वर्तमान और पूर्व मंत्रियों के नाम आने की आशंका
मध्य प्रदेश की सियासत में बीते एक दशक से व्यापमं घोटाला सुर्खियों में रहा है क्योंकि इस मामले से जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की न केवल मौत हो चुकी है बल्कि दो हजार से ज्यादा लोग सलाखों के पीछे भी जा चुके हैं।
मध्यप्रदेश में व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की तपिश एक बार फिर बढ़ने वाली है और इसकी आंच सत्तारूढ़ बीजेपी के कई नेताओं से लेकर कई वर्तमान और पूर्व मंत्रियों तक पर आने की आशंका जताई जा रही है, जिससे भगवा ब्रिगेड में अंदर ही अंदर हचलच का माहौल है। राज्य की सियासत में बीते एक दशक से व्यापम घोटाला सुर्खियों में रहा है क्योंकि इस मामले से जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की न केवल मौत हो चुकी है बल्कि दो हजार से ज्यादा लोग सलाखों के पीछे भी जा चुके हैं।
इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है, तो वहीं स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) भी कार्रवाई में लगी हुई है। इस मामले में पहले भी बीजेपी और राष्टीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े कई नेताओं पर आंच आ चुकी है। पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा कई बीजेपी और कांग्रेस के नेता जेल भी जा चुके हैं। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दो बड़े पदाधिकारियों को भी इस घोटाले की आंच ने झुलसाया है।
अब ताजा मामला पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह द्वारा छह अक्टूबर 2014 में की गई शिकायत पर एसटीएफ द्वारा दर्ज किया गया प्रकरण है। इस मामले में आठ लोगों को आरोपी बनाया गया है जिन्होंने चिकित्सा महाविद्यालय में दाखिला लिया था। यह शिकायत लगभग आठ साल पुरानी है और अब उस पर एसटीएफ ने प्रकरण दर्ज किया है। इसी के चलते एफआईआर की टाइमिंग पर सवाल उठ रहे है।
दिग्विजय सिंह ने अपनी शिकायत में कहा है कि वर्ष 2006 के बाद जो भी परीक्षाएं व्यापमं ने कराई हैं उसमें से अधिकांश में कुछ लोगों ने आर्थिक लाभ प्राप्त करने के मकसद से व्यापमं के अधिकारियों के साथ मिलकर और मध्य प्रदेश शासन के मंत्री, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अन्य लोगों के प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग से इस व्यापक घोटाले को अंजाम दिया।
दिग्विजय सिंह की शिकायत में कहा गया है कि विभिन्न मेडिकल कॉलेज में फर्जी तरीके से प्रवेश की संभावनाएं है, ऐसा इसलिए क्योंकि चयनित छात्र जिनके निवास के पता समान हैं, ऐसे प्रकरण जिनमें छात्रों ने कक्षा 10वीं और 12वीं की परीक्षा उत्तर प्रदेश बोर्ड से उत्तीर्ण की है और मध्य प्रदेश के मूल निवासी का प्रमाण पत्र संदिग्ध है, इसके साथ ही परीक्षा फॉर्म में लगाए गए फोटो और सीट आवंटन में चस्पा फोटो में भिन्नता है।
इस मामले की एसटीएफ ने जांच की और उसमें आठ छात्रों को संदिग्ध पाया गया। जांच में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि इन छात्रों ने वर्ष 2008 और 2009 की परीक्षा में सॉल्वर बिठाए और परीक्षा उत्तीर्ण कर भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।
एसटीएफ द्वारा दिग्विजय सिंह की आठ साल पुरानी शिकायत पर प्रकरण दर्ज किए जाने के बाद से सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर गर्म है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आने वाले दिनों में एक बार फिर बीजेपी के कई बड़े नेता मुसीबत में पड़ सकते हैं, इतना ही नहीं उन प्रभावशाली लोगों के नाम भी चर्चा में आ सकते हैं जो बड़े पदों पर बैठे हुए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले दर्ज हुई इस शिकायत का सियासी तौर पर भी इस्तेमाल संभव है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई नेता, नौकरशाह और प्रभावशाली लोग पहले भी न केवल आरोपों के घेरे में आए हैं बल्कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा है। अब एक बार फिर कहीं ऐसा ही न हो जाए।
इस तरह की आशंकाओं को बल भी इसलिए मिल रहा है क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले यह एफआईआर दर्ज हुई है और इसमें बीजेपी के मंत्रियों से लेकर वरिष्ठ नेताओं और अन्य लोगों तक का जिक्र है। इस एफआईआर में जिन बातों का जिक्र है वह साफ बताती है कि आने वाले दिनों में बड़ा खेला हो सकता है।
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