स्वामी सानंद की मौत पर गुस्से में काशी, राष्ट्रव्यापी जनांदोलन का आव्हान

गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए बीते 111 दिनों से अनशन कर रहे प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के निधन से समूचा काशी मर्माहत और गुस्से में है। काशीमें तो लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा कि स्वामी सानंद नहीं रहे।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने पूरे काशी को झकझोर कर रख दिया है। जैसे ही प्रोफेसर जी डी अग्राव के निधन की खबर काशी वासियों को मिली, वे शोक में डूब गए, साथ ही उनका गुस्सा भी उफन रहा है, कि गंगा की निर्मलता के बलिदान देने वाले प्रोफेसर अग्रवाल को सरकारें कोरे आश्वासन ही देती रह गईं।

इसके बाद गंगा ग्राम कैथी में गंगा के दक्षिणेश्वर महादेव घाट पर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को श्रद्धांजलि दी गई। कैथी गांव के लोगों ने स्वामी सानंद के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

घाट पर ही हुई शोकसभा में गंगातट वासियों, गंगा प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनके निधन को अपूर्णीय क्षति बताते हुए उनकी मौते के लिए सरकार कि हठवादिता को जिम्मेदार ठहराया।

शोकसभा में वक्ताओं ने कहा कि , ‘ अदालत के तमाम आदेशों के बावजूद स्वामी जी के अनशन के मामले में उत्तराखंड और केंद्र की सरकार ने हठवादी रवैया अपनाया। स्वामी जी का बड़ी बांध परियोंजनाओं को निरस्त करने की मांग बहुत ही जायज थी, लेकिन कार्पोरेट जगत के इशारे पर सरकारें गंगा के नाम पर जनता को केवल धोखा देती रही हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे स्वामी जी का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा। देश भर में गंगा प्रेमी जनांदोलन के लिए बाध्य होंगे।‘

सामाजिक कार्यकर्ता बल्लभाचार्य पांडेय ने कहा कि काशी के गंगा प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता उनके निधन से मर्माहत है और इसके लिए सरकार को जिम्मेदार मानते है।

गौरतलब है कि 100 से ज्यादा दिनों से अनशन कर रहे स्वामी जी ने 9 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे जल का भी परित्याग कर दिया था। उसी दिन सुबह उतराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक स्वामी जी से मिलने आये थे, तो स्वामी जी ने उनको साफ़ शब्दों में बता दिया था कि गंगा जी के गंगत्व को बनाये रखने के लिए भागीरथी, अलकनंदा, मन्दाकिनी, नंदाकिनी, धौलीगंगा और पिंडर पर निर्माणाधीन और प्रस्तावित समस्त बांधों की परियोजनाओं को निरस्त करने और गंगा जी के उच्चतम बाढ़ प्रवण क्षेत्र में खनन व वन कटान प्रतिबंधित करने के लिए वे अधिसूचना ले आयेंगे, तभी वे अपने उपवास को विराम देंगे। लेकिन, उसके बाद सरकार की ओर से कोई पहल नही हुई, नतीजा स्वामी जी को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा।

वक्ताओं ने बताया कि इससे पहले भी हरिद्वार में स्वामी निगमांदन और काशी में स्वामी नागनाथ भी गंगा के लिए अपने प्राणों की बलि दे चुके हैं।

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