उत्तराखंड के पहाड़ों पर नस-नस में भरा जा रहा नफरत का जहर: खुली धमकी के बाद पुरोला से अल्पसंख्यकों का पलायन
उत्तराखंड को नफरत की आग में झोंकने का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। पुरोला इसकी मिसाल है, जहां एक कथित लव जिहाद के खिलाफ मुसलमानों को अपने घर-कारोबार छोड़कर जाने का अल्टीमेटम दिया गया है।
क्या भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर खुद को कमजोर महसूस कर रही है? क्या इसकी भरपाई के लिए उत्तराखंड मे सांप्रदायिक तनाव पैदा किया जा रहा है? और क्या इस राज्य को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाने का प्रयास किया जा रहा है? हाल ही में उत्तराखंड में विभिन्न जगहों पर छोटी-छोटी वजहों या अफवाहों से शुरू हुए सांप्रदायिक तनाव को देखते हुए इस तरह के कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं।
हाल के दिनों में उत्तरकाशी जिले के पुरोला में हुई घटना इसका जीता जागता उदाहरण है। इस घटना में हिंदू युवक और युवती के प्रेम प्रसंग को सिर्फ इसलिए लव जिहाद करार दिया गया कि उनका एक दोस्त मुस्लिम है। और वह दोनों के साथ घूमने गया हुआ था। बीते 26 मई को जब तीनों पुरोला बाजार के पास ही घूमने गए हुए थे तो कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया और नाबालिग लड़की को लव जिहाद में फंसा कर भगाने का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया।
लगभग अगले ही दिन तमाम हिंदूवादी संगठन सक्रिय हो गए। 28 मई को पुरोला में एक बड़ा जुलूस निकाला गया। मुस्लिम समुदाय के लोगों की दुकानें बंद करवा दी गई। दुकानों के बोर्ड तोड़ डाले गए। दुकानों पर हिंदू रक्षा अभियान नामक संगठन की ओर से एक पोस्टर चिपकाया गया, जिस पर उन्हें 15 जून तक पुरोला खाली कर देने की चेतावनी दी गई। पोस्टर में यह भी धमकी दी गई कि यदि 15 जून तक मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पुरोला खाली नहीं किया तो वह इसके जिम्मेदार खुद होंगे। उनके साथ क्या सुलूक होगा यह तो वक्त ही बताएगा।
इस मामले में खास बात यह है कि नाबालिग लड़की के साथ पकड़े गए दोनों युवकों में से एक हिंदू है। बताया जाता है कि युवती के साथ उसी का प्रेम प्रसंग चल रहा था। जितेन्द्र सैनी नामक यह युवक बिजनौर का रहने वाला है। पुरोला में जितेंद्र की दुकान के ठीक सामने बिजनौर के ही उबैद खान की भी दुकान है। दोनों अच्छे दोस्त हैं। प्रेम प्रसंग के इस मामले में उबैद खान सिर्फ सहयोगी की भूमिका निभा रहा था। हालांकि पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया है। लेकिन, पूरे प्रकरण में सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ मोर्चा खोला गया है।
पुरोला में मुस्लिम समुदाय की करीब 45 दुकानें हैं। इनमें मुख्य तौर पर गारमेंट, हेयर सैलून, फर्नीचर आदि की दुकानें शामिल हैं। 28 मई के बाद से सभी दुकाने बंद हैं। मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर लोग रातों-रात पुरोला छोड़ कर भाग गए हैं। कुछ दुकानदार दुकानें बंद करके गए हैं, जबकि कम से कम 6 दुकानदार अपना सामान समेटकर अपने घर वापस चले गए हैं।
26 मई को यह घटना सामने आने के बाद ही मुख्य रूप से हिंदू रक्षा अभियान नामक एक संगठन इस मामले में कूद पड़ा। इस संगठन के सर्वेसर्वा स्वामी दर्शन भारती बताए जाते हैं। उन्होंने 28 मई को पुरोला में बड़ी रैली निकाली और 15 जून को महापंचायत का ऐलान किया।
इस घटना की आंच पूरे उत्तरकाशी में महसूस की जा रही है। पुरोला के अलावा मोरी, बड़कोट, और उत्तरकाशी में भी इस तरह के बंद का आयोजन किया गया। उत्तरकाशी जिले की सीमा से लगते टिहरी जिले के नैनबाग में भी लव जिहाद के खिलाफ जुलूस निकाला गया। इन सभी जुलूसों में उत्तराखंड को मुसलमानों से मुक्त करने का नारा दिया जा रहा है।
मौजूदा हालात का जायजा लेने के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने पुरोला का दौरा किया। ऊपर से देखने पर बेशक पुरोला पहले की तरह शांत नजर आ रहा हो, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। सांप्रदायिकता का जहर समाज की नस-नस में भर दिया गया है। स्थानीय निवासी भी मुस्लिम विरोध में मुखर हो रहे हैं, हालांकि, इसकी वजह बताने के लिए उनके पास कोई ठोस कारण नहीं है। ज्यादातर लोग सिर्फ सुनी-सुनाई बातें दोहरा देते हैं। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो हालिया घटनाओं को एक षड्यंत्र मानते हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि उत्तराखंड में लगातार कमजोर होती भारतीय जनता पार्टी 2024 का चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक धुर्वीकरण की नीति अपना रही है।
पुरोला में लोग मुस्लिमों के खिलाफ कई मनगढ़ंत कहानियां सुना रहे हैं। मोरी रोड पर रेस्टोरेंट चलाने वाले एक व्यक्ति से जब हमने पूछा कि क्या मुसलमानों के खिलाफ पहले भी ऐसी शिकायतें आई हैं, तो उसका जवाब था कि पहले छिपी हुई शिकायतें थी। लेकिन, ये क्या शिकायतें थी, इस बारे में वे स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कह पाए।
उधर कुछ लोग इसे राजनीतिक भी बताते हैं। पुरोला में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे एक युवक का कहना था कि यह सब बेरोजगारी से ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा है। अपना नाम न छापने की शर्त पर युवक ने कहा कि दरअसल देहरादून में बेरोजगारों पर किए गए पुलिस लाठीचार्ज के बाद से पूरे उत्तराखंड में बीजेपी विरोधी लहर है। भाजपा जानती है कि 2024 में स्थितियां उसके अनुकूल नहीं नहीं हैं। ऐसे में वह ध्यान बंटाकर और लोगों को मुसलमानों का डर दिखाकर चुनाव जीतने की रणनीति अपना रही है।
पुरोला एसडीएम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट रविंद्र सिंह रावत कहते हैं कि कुछ बदमाश पुरोला के शांत वातावरण को अशांत करना चाहते हैं। बाहर से आए कुछ शरारती तत्व इस तरह की हरकतें कर रहे हैं। रविंद्र सिंह रावत के अनुसार पुरोला में कई वर्षों से दोनों समुदाय के लोग मिलजुल कर रहते आए हैं। यहां इस तरह की हरकतें करना अफसोसजनक है। पुरोला नगर पंचायत के अध्यक्ष हरिमोहन सिंह नेगी भी मौजूदा हालत से आहत हैं। वे कहते हैं कि यह पूरी तरह से साफ है कि यह राजनीति द्वारा प्रायोजित माहौल है।
26 मई के हंगामे से पहले पुरोला में मुस्लिम समुदाय के करीब 200 लोग रह रहे थे। इन लोगों की यहां करीब 45 दुकानें थे। पुरोला छोड़कर जाने की चेतावनी दिये जाने के बाद कुछ परिवारों को छोड़कर सभी लोग रातोंरात पुरोला से चले गये। इनमें से 6 दुकानदार अपनी दुकानें समेटकर गये हैं, जबकि बाकी दुकानें बंद करके गये हैं। अब केवल 6 मुस्लिम परिवार यहां रह गये हैं। ये वे परिवार हैं जो 50 से ज्यादा वर्षों से पुरोला में रह रहे हैं और यहां उनके अपने घर हैं।
इन्हीं में से एक परिवार के सदस्य इस्लाम (बदला हुआ नाम) हैं। 42 वर्षीय इस्लाम बताते हैं कि वे लोग 50 वर्षों से पुरोला में रह रहे हैं। उनके पिताजी पुरोला आये थे और यहां रेडीमेड गारमेंट का व्यवसाय शुरू किया था। इस्लाम का तो जन्म ही पुरोला में हुआ है। इस्लाम के अनुसार हिन्दू संगठनों से मिली धमकी के बाद ज्यादातर मुस्लिम परिवार पुरोला छोड़कर चले गये हैं। लेकिन, उनका तो सब कुछ पुरोला में ही है। कहीं दूसरी जगह उनका कोई घर नहीं है, ऐसे में वे पुरोला छोड़कर कहां जाएंगे। इस्लाम कहते हैं कि अब तक किसी को हमें जान से मारना ही मार ले, हमारे पास पुरोला के अलावा कहीं भी रहने का कोई ठिकाना नहीं है।
पुरोला के ही हनीफ (बदला हुआ नाम) का कहना है कि 28 मई के बाद से वे लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। 5 जून को किसी तरह हिम्मत करके वे अपने एक अन्य साथी के साथ एसडीएम पुरोला को ज्ञापन देने गये थे। ज्ञापन में उन्होंने दुकानें खोलने के लिए जरूरी सुरक्षा उपलब्ध करवाने की मांग की थी। काफी देर तक उन्हें एसडीएम से मिलने के इजाजत नहीं मिली। आखिर में एसडीएम से अपने ऑफिस से जाते हुए उनका ज्ञापन लिया और कोई आश्वासन देने बजाय यह कहकर चले गये कि इसे हम देख लेंगे।
इसके बाद वे सुरक्षा की गुहार लगाने पुरोला बाजार स्थित पुलिस चौकी गये। हनीफ बताते हैं कि जब वे चौकी पहुंचे वहां सीओ मौजूद थे। सीओ ने उनकी बातें सुनी और हर तरह से सुरक्षा देने का आश्वासन दिया। उन्होंने एसएचओ से कहा कि सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरतनी है। हर मुस्लिम व्यवसायी की दुकान पर चार-चार सिपाही लगाओ और बाजार में पीएसी तैनात करवाओ। हनीफ कहते हैं कि सीओ के इस रवैये से वे आश्वास्त हो गये कि पुलिस उनके साथ है। लेकिन, शाम को एक सिपाही उन्हें बुलाने आ गया। थाने पहुंचकर कहा गया कि उनकी शिकायतें आ रही हैं। लोग बहुत नाराज हैं। दुकानें फिलहाल बंद रखें, आगजनी होने की आशंका है।
उत्तराखंड में पुरोला अकेला नहीं है, जहां हाल के दिनों में लव जिहाद के नाम पर अल्पसंख्यकों को परेशान किये जाने और उन्हें जगह छोड़ देने की धमकी देने की घटनाएं सामने आई हैं। गौचर में भी हाल के दिनों में इस तरह का एक मामला सामने आया। आरोप है कि दो मुस्लिम युवक एक स्थानीय हिन्दू नाबालिग लड़की को लेकर होटल में कमरा लेने गये थे। लोगों ने दोनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। इस घटना के बाद गौचर में भी हिन्दूवादी संगठनों ने जुलूस निकाला और मुस्लिम समुदाय के लोगों को शहर छोड़कर जाने को कहा। इन घटनाओं के विरोध में उत्तरकाशी जिला मुख्यालय के साथ ही मोरी और बड़कोट में भी हिन्दूवादी संगठनों ने प्रदर्शन किया। उत्तरकाशी से लगते टिहरी जिले के नैनबाग में दो साल पुरानी घटना को लेकर प्रदर्शन किया गया। उत्तराखंड में हाल के दिनों में चकराता, इमलीखेड़ा, त्यूणी आदि जगहों पर भी साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने का प्रयास किया गया। देहरादून में भी एक स्कूल में ईद का कार्यक्रम आयोजित किये जाने की आड़ में हंगामा करने का प्रयास किया गया।
राज्य में इस तरह के मामलों में उत्तराखंड रक्षा अभियान नामक एक अल्पज्ञात संगठन की सक्रियता लगातार बनी हुई है। संगठन के कर्ताधर्ता स्वामी दर्शन भारती 28 मई को पुरोला में मौजूद थे और प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे। इसी दिन पुरोला में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकानों की बोर्ड आदि तोड़े गये। कुछ दुकानों पर काले रंग के क्रॉस लगाये गये और समुदाय के लोगों को पुरोला छोड़ने की धमकी दी गई। दबाव आने के बाद पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन यह अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया। खास बात यह है कि प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले स्वामी दर्शन भारती ने दो दिन बाद ही अपने फेसबुक पेज पर पुलिस के बड़े अधिकारियों के साथ मुलाकात का अपना फोटो पोस्ट किया।
इस बीच 9 मई को राज्य में कई जगहों पर भीड़ की हिंसा के खिलाफ और लव जेहाद के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को परेशान किये जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया गया और ज्ञापन सौंपा गये। इस तरह के प्रदर्शन मुख्य रूप से देहरादून, बागेश्वर, नैनीताल, ऋषिकेश, रामनगर, पौड़ी, टिहरी, कोटद्वार, अल्मोड़ा, चम्पावत, सल्ट, गोपेश्वर, गैरसैंण, जोशीमठ, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, लालकुआं, हल्द्वानी, थराली और रुद्रपुर में किया गया।
अधिकारियों के माध्यम से सभी जगहों पर सरकार को ज्ञापन भेजे गये। ज्ञापन में पुरोला सहित राज्यभर में नफरत का माहौल बनाये जाने पर नाराजगी जताई गई और आरोप लगाया गया कि सरकार इस तरह की गतिविधियों के रोकने के बजाय साम्प्रदायिकता को भड़का रही है। मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार लव जिहाद और लैंड जिहाद का जिक्र किया जा रहा है, जो साफ तौर में लोगों को एक समुदाय के खिलाफ भड़काने का प्रयास है। ज्ञापन देने वालों पर राज्य के जनवादी संगठन और विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल थे।
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