कांग्रेस समेत पंडे-पुजारियों के भारी विरोध के बीच उत्तराखंड में चारधाम बिल पास, कई हिंदू मठ-मंदिर भी खिलाफ

इस बिल के जरिये बीजेपी सरकार का मकसद बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चारों धाम और 49 अन्य मंदिरों को एक श्राइन बोर्ड के दायरे में लाना है, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करेंगे और इसका संचालन एक मुख्य अधिशासी अधिकारी यानी एक आईएएस अधिकारी करेगा।

फोटोः एस एम ए काजमी
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एस एम ए काजमी

कांग्रेस और तीर्थ पुरोहितों के जबरदस्त विरोध के बावजूद उत्तराखंड विधानसभा में शरद सत्र के आखिरी दिन मंगलवार को उत्तराखंड चारधाम श्राइन प्रबंधन बिल- 2019 पास हो गया। इस बिल का कांग्रेस के साथ ही राज्य के पंडे-पुजारियों समेत विभिन्न हिंदू मठ-मंदिरों ने भी भारी विरोध किया। इस बिल के खिलाफ उत्तराखंड के बाहर से भी काफी आवाजें उठ रही थीं। इस बिल का मकसद राज्य के विभिन्न हिंदू मंदिरों का नियंत्रण उसी तरह नियंत्रण में लेना है, जैसा कि वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड और तिरुपति बालाजी श्राइन बोर्ड करता है।

इस बिल के पास होने के बाद पंडे-पुजारियों ने अपना आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है और इस बिल को हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। कांग्रेस ने भी ऐलान किया है कि उत्तराखंड में उसकी सत्ता आते ही वह इस कानून को रद्द कर देगी। इस बिल के तहत बीजेपी सरकार का मकसद बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चारों धाम और 49 अन्य मंदिरों को एक धार्मिक बोर्ड के दायरे में लाना है।

विधानसभा में विपक्ष की नेता और कांग्रेस नेत्री इंदिरा ह्दयेश ने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान ऐसे बिल को पुरोहितों और पुजारियों की भावनाओं को देखते हुए नहीं पेश किया गया था। उन्होंने कहा, “हमारी आपत्ति के बावजूद बीजेपी सरकार ने बिल को पास कर दिया। हमारी मांग थी कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए।” वहीं उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष विधायक प्रीतम सिंह ने कहा कि जैसे ही कांग्रेस सत्ता में आएगी, इस कानून को रद्द कर दिया जाएगा। वहीं उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धसमाना ने कहा कि इस बिल के खिलाफ पार्टी का आंदोलन जारी रहेगा।


इस बिल के खिलाफ राज्य के 51 मुख्य हिंदू मंदिरों से जुड़े सैकड़ों पंडे-पुरोहित आंदोलन कर रहे हैं। बिल का विरोध कर रहे पुरोहितों और पुजारियों का कहना है कि सरकार ने ऐसा बिल लाने से पहले उनसे सलाह-मश्विरा नहीं किया गया। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल और 51 तीर्थ पुरोहितों की महापंचायत ने कहा कि यह बीजेपी का तानाशाही रवैया है, जिसमें तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों की अनदेखी की जा रही है। उनका कहना है कि यही पुरोहित-पुजारी आदिकाल से मंदिरों और तीर्थों की देखभाल करते रहे हैं।

सुरेश सेमवाल ने कहा, “हर मंदिर का अपना विशिष्ट स्थान और महत्व है और हम लोग उस व्यवस्था का अंग हैं। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार इतना बड़ा कदम उठाने में हमें कैसे अनदेखा कर सकती है। हम सिर्फ यह मांग कर रहे हैं कि सरकार हमसे संवाद करे।” लेकिन विधानसभा में बिल पेश करने वाले उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का तर्क है कि सभी तीर्थों और मंदिरों में बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए श्राइन बोर्ड का होना बहुत जरूरी है।

इस बिल के पास होने के बाद अब इस श्राइन बोर्ड की अध्यक्षता मुख्यमंत्री करेंगे और इसका संचालन एक मुख्य अधिशासी अधिकारी यानी सीईओ करेगा, जोकि एक आईएएस अधिकारी होगा। सतपाल महाराज ने पुरोहितों और पुजारियों को आश्वासन दिया है कि उनके हितों का ध्यान रखा जाएगा।

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