अंकिता भंडारी को इंसाफ के लिए सुलग रहा उत्तराखंड, सरकार की तरफ से लीपापोती की हर कोशिश जारी
मां सोनी देवी ने बड़े ही साफ शब्दों में पूछा कि यह कौन वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी है जो मेरी बेटी से ‘अतिरिक्त सेवा’ पाने के लिए पुलकित आर्य पर दबाव डाल रहा था और चूंकि मेरी बेटी ने मना कर दिया तो पुलकित और उसके दो सहयोगियों ने उसकी हत्या कर दी।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले में 2018 में हुई अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में उसे इंसाफ दिलाने के लिए पहाड़ियां सुलग रही हैं। पूरे राज्य में आरएसएस के महामंडेश्वर (महासचिव) अजय कुमार की गिरफ्तारी के लिए विरोध पैना होता जा रहा है। सनसनीखेज अंकिता भंडारी मामले में कई गवाहों ने अजय कुमार का नाम ‘रहस्यमय वीआईपी’ के रूप में लिया है।
अंकिता भंडारी 19 वर्षीय रिसेप्शनिस्ट थी जो 18 सितंबर, 2022 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले में वनतारा रिजॉर्ट से लापता हो गई थी। पांच दिन बाद उसका शव ऋषिकेश के पास गंगा नदी नहर पर बने चिल्ला बैराज में मिला था। शरीर पर चोटों के कई निशान थे। अंकिता की मां सोनी देवी और पिता वीरेंद्र सिंह भंडारी दो हफ्ते से श्रीनगर में धरने पर बैठे हैं।
सोनी देवी ने साफ-साफ कहा है कि पुलिस ने अंकिता की मौत से दो दिन पहले उनके बॉयफ्रेंड पुष्पदीप के साथ हुई चैट को रिकवर कर लिया है जिसमें बताया गया है कि कैसे बीजेपी नेता का बेटा पुलकित आर्य जो वनतारा रिजॉर्ट का मालिक है, अंकिता पर किसी ‘वीआईपी को विशेष सेवा’ मुहैया कराने के लिए दबाव बना रहा था। जब पुष्पदीप ने उससे पूछा कि क्या ‘अतिरिक्त सेवा’ का मतलब यौन संबंध बनाना है, तो अंकिता ने इसका जवाब हां में देते हुए बताया कि उसे इस ‘अतिरिक्त सेवा’ के लिए 10,000 रुपये की पेशकश की जा रही थी। अंकिता ने अपने दोस्त को साफ कहा था कि ‘गरीब होने का मतलब यह नहीं है कि मैं खुद को बेचने को राजी हूं।’
सोनी देवी ने बड़े ही साफ शब्दों में कहा, ‘यह कौन वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी है जो मेरी बेटी से ‘अतिरिक्त सेवा’ पाने के लिए पुलकित आर्य पर दबाव डाल रहा था और चूंकि मेरी बेटी ने मना कर दिया, पुलकित आर्य और उनके दो सहयोगी सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता ने उसकी हत्या कर दी। उत्तराखंड पुलिस राज्य के बड़े नेताओं की तरह मामले पर पर्दा डालने की कोशिश क्यों कर रही है?’ वह सवाल करती हैं, ‘मेरी बेटी की हत्या के दो दिन पहले और दो दिन बाद के अजय कुमार के चैट रिकॉर्ड को पुलिस कैसे हासिल नहीं कर पाई?’
अंकिता ने रिजॉर्ट में मुश्किल से तीन सप्ताह तक काम किया था और उसने अपने दोस्त पुष्पदीप को बताया था कि महीने का वेतन लेकर वह नौकरी छोड़ देगी। ऐसा होता, इससे पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। सोनी देवी ने मार्मिक स्वर में कहा, ‘मुझे उनका वेतन मिलने के बजाय उनका शव मिला।’
पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य भी आरएसएस पदाधिकारी हैं और वह धामी सरकार में बिना विभाग के मंत्री भी रह चुके हैं। पिता-पुत्र दोनों को बीजेपी से निकाल दिया गया है जबकि पुलकित आर्य और उनके साथियों को गिरफ्तार कर पौड़ी जेल में बंद कर दिया गया। पुलकित ने बाद में एक याचिका दायर कर दावा किया कि उसकी जान को खतरा है जिसके बाद उसे चमोली जेल में स्थानांतरित कर दिया गया।
स्थानीय समाचारपत्र ‘जागो उत्तराखंड’ के संपादक आशुतोष नेगी के नेतृत्व में स्थानीय पत्रकार अंकिता के अभिभावकों को भरपूर सहयोग दे रहे हैं। पुलिस ने नेगी को फर्जी आरोप में 5 मार्च को गिरफ्तार कर लिया। वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेज ने नेगी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि अदालत सच्चाई का पता लगाने के लिए इस जांच की निगरानी करे क्योंकि उत्तराखंड पुलिस और नौकरशाही लगातार तथ्यों को छिपाने में लगी है। याचिका में इस बात का जिक्र किया गया है कि कैसे बीजेपी विधायक रेनू बिष्ट और एसडीएम प्रमोद कुमार के कहने पर जेसीबी चालक ने उस कमरे को ध्वस्त कर दिया जिसमें अंकिता रहती थी और इस तरह अहम फोरेंसिक सबूत नष्ट हो गए।
आरोपी पुलकित आर्य ने पुलिस को बताया है कि सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे और पुलिस ने बिना जांच किए ही उसके बयान को सच मान लिया। अभियोजन पक्ष की ओर से अभियुक्त पुलकित आर्य के स्कूटर पर पीछे बैठी अंकिता का एक छोटा वीडियो तो दिखाया लेकिन उसने यह नहीं बताया कि अंकिता ने उसके थोड़ी ही देर बाद पुष्पदीप से कहा था, ‘मैं इन लोगों के साथ हूं। मैं बहुत डरी हुई हूं।’ इस बातचीत के तुरंत बाद अंकिता की हत्या कर दी गई। रिजॉर्ट के कर्मचारियों ने हलफनामे में कहा है कि जब पुलकित और उसके साथियों ने उसे रिजॉर्ट से बाहर निकाला तो वह चिल्ला रही थी और रो रही थी।
सोनी देवी अजय कुमार के साथ-साथ बीजेपी विधायक रेनू बिष्ट और तत्कालीन एसडीएम प्रमोद कुमार की गिरफ्तारी की भी मांग कर रही हैं जिन्होंने सभी सबूतों को नष्ट करने के आदेश जारी किए थे- जेसीबी चालक ने हलफनामा दिया है कि उसने रेनू बिष्ट और प्रमोद कुमार के आदेश पर कमरा तोड़ा था।
वनतारा रिजॉर्ट यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के गंगा भोगपुर क्षेत्र में है जिसका प्रतिनिधित्व रेनू बिष्ट करती हैं। अंकिता मामले में किस तरह लीपापोती की जा रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एसआईटी रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘अंकिता फिसल गई और दुर्घटनावश नहर में गिर गई।’ जिस कमरे में अंकिता रहती थी, उसके ध्वस्त होने के बाद, इस परिसर में बड़े ही रहस्यमय तरीके से आग लग गई जिससे जो भी सबूत बचे रहे होंगे, वे भी नष्ट हो गए। आग लगातार दो दिन लगी। इसमें संदेह नहीं है कि धामी सरकार बहुत बड़ी लीपापोती में लगी हुई है क्योंकि राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने सदन में कहा था कि ‘(इस मामले में) वीआईपी का मतलब व्यक्ति नहीं, बल्कि एक कमरे से है।’
धरने को जनता का भारी समर्थन मिल रहा है और इससे धामी सरकार का समीकरण गड़बड़ा गया है। सरकार चिंतित है कि अगर अंकिता को इंसाफ के लिए हो रहा धरना-प्रदर्शन लोकप्रिय आंदोलन बन गया, तो यह आगामी लोकसभा चुनावों में संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। न केवल कॉलेज प्रोफेसर और छात्र बल्कि राज्य के बुद्धिजीवी और बीजेपी महिला समर्थक भी धरने को समर्थन दे रहे हैं। ऐसी ही एक बीजेपी महिला कार्यकर्ता ने कहा, ‘हर गांव में कुल देवी की मूर्ति होती है और हम सब देवी पंथ के उपासक हैं। हमारे राज्य में महिलाओं को सर्वोच्च स्थान पर रखा जाता है क्योंकि जहां पुरुष काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं, महिलाएं पीछे रह जाती हैं और बूढ़े माता-पिता घर और जमीन की देखभाल करती हैं। हम ऐसी घृणित हत्या को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं।’
जस्टिस फॉर अंकिता कमेटी का गठन किया गया है। इसके सदस्यों में पत्रकारों सहित राज्य के विभिन्न वर्ग के लोग शामिल हैं। पत्रकारों के इस तरह के समर्थन पर नाराजगी जताते हुए पुलिस ने स्थानीय समाचारपत्र ‘जागो उत्तराखंड’ के संपादक आशुतोष नेगी के खिलाफ कार्रवाई की और उन्हें 15 दिनों के लिए जेल में डाल दिया। नेगी की जमानत अर्जी पर सुनवाई भी नहीं हुई क्योंकि पौड़ी जिला न्यायाधीश छुट्टी पर थे और वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।
कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में विपक्ष तथ्यों को छिपाने को लेकर धामी सरकार पर हमले कर रहा है। कांग्रेस नेता करण माहरा ने राज्य पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता से भी गया-गुजरा व्यवहार करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस और जस्टिस फॉर अंकिता समिति- दोनों गांव-गांव जाकर इस बात को उजागर कर रहे हैं कि कैसे जान-बूझकर इस युवा महिला को इंसाफ के रास्ते में रोड़े अटकाए जा रहे हैं।
सोनी देवी और उनके पति वीरेंद्र भंडारी- दोनों रोजाना डोभी श्रीकोट गांव से सरकारी बस पकड़कर 18 किलोमीटर दूर श्रीनगर शहर पहुंचते हैं और वे सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक धरने पर बैठते हैं। शाम को वे फिर से बस पकड़कर गांव लौट जाते हैं। सोनी देवी पोस्ट ग्रेजुएट हैं। वह कहती हैं, ‘मैं चाहती हूं कि हत्यारों को ऐसी कठोर सजा मिले कि यह दूसरों के लिए एक उदाहरण बने और हमारी बेटियों के साथ ऐसे दुर्व्यवहार न करें।’ वीरेंद्र भंडारी कहते हैं कि ‘अपराध के ठीक एक दिन बाद दोषियों को सारे सबूत नष्ट करने की इजाजत क्यों दी गई? हमें एसआईटी जांच पर भरोसा नहीं है और हम चाहते हैं कि मामले को सीबीआई अपने हाथ में ले।’
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