कोरोना कहर में झूठ के वेन्टिलेटर पर उत्तर प्रदेश, बिना सैंपल विधायक तक हो रहे पॉजिटिव-निगेटिव
कुशीनगर से बीजेपी विधायक जटाशंकर त्रिपाठी ने कोई सैंपल नहीं दिया, फिर भी गोरखपुर डिप्टी सीएमओ ने फोन कर बताया कि 7 मई को दिए सैंपल में वह पॉजिटिव मिले हैं। इसके पहले इन्हीं विधायक को 24 घंटे में ही पॉजिटिव और निगेटिव, दोनों बताने का कारनामा हो चुका था।
कोराना वायरस की तपिश में भी उत्तर प्रदेश में लोगों का इलाज झूठ के वेन्टिलेटर पर हो रहा है। आम लोगों की कौन कहे, बीजेपी के विधायकों तक को बिना सैंपल लिए ही पॉजिटिव-निगेटिव बताया जा रहा है। यहां काम कैसे चल रहा है, उसके कुछ उदाहरण भी मौजूद हैं। दरअसल कुशीनगर से बीजेपी विधायक जटाशंकर त्रिपाठी ने कोई सैंपल ही नहीं दिया, फिर भी गोरखपुर के डिप्टी सीएमओ ने फोन कर उन्हें जानकारी दी कि 7 मई के दिए गए सैंपल में वह पॉजिटिव मिले हैं।
इसके पहले इन्हीं विधायक को 24 घंटे में ही पॉजिटिव और निगेटिव- दोनों बताने का कारनामा स्वास्थ्य विभाग कर चुका है। विधायक जटाशंकर त्रिपाठी बताते हैं कि ‘12 अप्रैल को लक्षण आने के बाद जांच कराया। कई फर्जी रिपोर्ट आ गई। अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं।’ उधर, विधायक डॉ. अरुण कुमार ने पांच दिनों बाद भी कोरोना जांच की रिपोर्ट नहीं मिलने को लेकर सीएम को पत्र लिखकर शिकायत की है।
इसी तरह गोरखपुर शहर के शिवपुर सहबाजगंज के रहने वाले पवन श्रीवास्तव 9 अप्रैल को संक्रमित हुए थे। 10 अप्रैल को कलक्ट्रेट में बनाए गए कोविड कंट्रोल रूम से पूछताछ में उन्होंने संपर्क में आए 10 लोगों के नाम बताए। कंट्रोल रूम के बाबुओं ने बिना सैंपल लिए ही करीबियों की कोरोना रिपोर्ट जारी कर दी। इस सूची में शामिल दूरदर्शन केंद्र गोरखपुर से सेवानिवृत्त रमेश चंद्र शुक्ल बिना जांच रिपोर्ट आने की जानकारी मिलते ही चौंक गए। वह बताते हैं, ‘बीमार नहीं था तो नमूना क्यों देता?’
ध्यान रहे कि यूपी में कोरोना संक्रमण से इस वर्ष चार बीजेपी विधायकों की मौत हो चुकी है। रायबरेली की सलोन सीट से विधायक दल बहादुर कोरी, नवाबगंज के केसर सिंह गंगवार, लखनऊ पश्चिम क्षेत्र के सुरेश कुमार श्रीवास्तव और औरैया जिले के सदर के विधायक रमेश चंद्र दिवाकर ने कोरोना संक्रमण के चलते दम तोड़ दिया। सुरेश श्रीवास्तव की पत्नी मालती श्रीवास्तव ने भी 24 अप्रैल को दम तोड़ दिया। प्रदेश सरकार के दो मंत्री- चेतन चैहान और कमल रानी वरुण का निधन पिछले वर्ष हुआ था।
अपने ही विधायकों और करीबियों की मौतों से केंद्रीय मंत्रियों से लेकर विधायकों तक का गुस्सा लेटर बम के रूप में अलग फूट रहा है। केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने बीते दिनों मुख्यमंत्री को पत्र में लिखा कि स्वास्थ्य विभाग के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारी फोन तक नहीं उठाते हैं। रेफरल के नाम पर मरीज एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भटकते रहते हैं और वे बेमौत मर रहे हैं। ऑक्सीमीटर, मल्टीपैरा मॉनिटर, बायोपैक मशीन, वेन्टिलेटर समेत अन्य जरूरी उपकरणों को डेढ़ से दोगुनी कीमत पर बेचा जा रहा है।
वहीं, फरीदपुर विधायक प्रो. श्याम बिहारी लाल और बिथरी विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी को लेकर जांच कमेटी बनाने की मांग कर डाली। बस्ती के रूधौली से बीजेपी विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि विभिन्न सीएचसी और पीएचसी केंद्रों पर जांच किट, रेमडेसिविर इंजेक्शन, ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं है।
सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर नगर के बीजेपी विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने तीन मई को अपने फेसबुक वाल पर लिखा था, ‘मुख्यमंत्री जी के ओएसडी अभिषक कौशिक ने फोन किया। हमने बता दिया कि ऑक्सीजन की कमी, बेड की अनुपलब्धता, वेन्टिलेटर नहीं मिलने से नागरिक बहुत नाराज हैं।’ लखनऊ के मोहनलालगंज से बीजेपी सांसद कौशल किशोर के साथ मंत्री बृजेश पाठक भी खराब हेल्थ व्यवस्था को लेटर बम फोड़ चुके हैं।
उत्तर प्रदेश की बेहाली की खबरें सब जगह भरी पड़ी हैं। तमाम तस्वीरें चुगली कर रही हैं। फिर भी, यूपी सरकार यह बताकर आंखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना की विभीषिका से निबटने में उसकी प्रशंसा की है। जबकि, सच्चाई यह है कि जिस लेख को सामने रखकर यह दावा किया जा रहा है, उसमें ही डब्ल्यूएचओ ने यूपी सरकार के साथ अपनी पार्टनरशिप की बात बताई है। इसमें कहा गया है कि ‘डब्ल्यूएचओ ने कोविड से निबटने में प्रशिक्षण और माइक्रो प्लानिंग में यूपी सरकार की मदद की है।’
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