गौ-रक्षकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता भारत, धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट में दावा
साल 2017 की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रा रिपोर्ट में सीएम रमन सिंह और आदित्यनाथ समेत सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा दिये गये सार्वजनिक भाषणों का जिक्र किया गया है, जो हिंसा को सही ठहराते हैं।
अमेरिकी सरकार द्वारा जारी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट, 2017 में दावा किया गया है कि भारत में गो-मांस के कथित तस्करों, उपयोगकर्ताओं और व्यापारियों पर हमलों में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी के बावजूद भारत सरकार द्वारा हमला करने वाले गो रक्षक समूहों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विदेश विभाग हर साल रिपोर्ट तैयार करता है। मंगलवार को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने 2017 की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट जारी की।
रिपोर्ट जारी करते हुए अपने भाषण में पॉम्पियो ने कहा, “आजादी और धार्मिक स्वतंत्रता को आगे बढ़ाना अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाता है। जहां एक तरफ धर्म, अभिव्यक्ति की आजादी, प्रेस और शांति पूर्ण किसी जगह पर एकत्र होने के मौलिक अधिकार पर हमले हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम विरोध, अस्थिरता और आतंकवाद को भी देख रहे हैं। पॉम्पियो ने आगे कहा कि वे सरकारें और समाज जो इन स्वतंत्रताओं की रक्षा करती हैं अधिक सुरक्षित, स्थिर और शांतिपूर्ण हैं। विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि वह 25 और 26 जुलाई को धार्मिक स्वतंत्रता पर एक सम्मेलन में दुनिया भर के नेताओं की मेजबानी करेंगे।
अमेरिकी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत सत्तारूढ़ बीजेपी के कुछ नेताओं द्वारा हिंसा का समर्थन करने वाली सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए आलोचना की गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि “2 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा था कि उनके राज्य में जो कोई भी गाय को मारेगा उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा।”
जून में तत्कालीन सांसद और बाद में उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि मदर टेरेसा भारत को ईसाई बनाने के अभियान पर थीं। कैथोलिक पादरी थॉमस मेनम्परम्पिल ने आदित्यनाथ के बयान को घटिया बताते हुए इससे इनकार किया था।
रिपोर्ट में आगे सितंबर 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अख्लाक की भीड़ द्वारा हत्या की घटना का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि बीजेपी के नेता मुसलमानों को भीड़ द्वारा मारने की घटनाओं का समर्थन कर रहे थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि “अक्टूबर 2017 में मीडिया ने बताया कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक विधायक ने जमानत पर छूटे 18 आरोपियों को नौकरी दिलाने के साथ ही जेल में मारे गए एक आरोपी के परिवार को 800,000 रुपये दिलाने में मदद की थी।"
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नागरिक समाज और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों का कहना है कि मौजूदा सरकार में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा गैर-हिंदुओं और उनके पूजा स्थलों पर हमला करने के कारण धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों में डर की भावना थी।"
रिपोर्ट में भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और गृह मंत्रालय की भूमिका की जांच करते हुये कहा गया है कि सरकारी एजेंसियों ने सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में कई मौकों पर भ्रामक रिपोर्ट दी है।
2013 में कैराना में हुई सांप्रदायिक हिंसा का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दावा है कि कि प्रभावित क्षेत्रों से हिंदुओं को भगाने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग जिम्मेदार थे, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आयोग के इस दावे को गलत बताया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि "कैराना में मुस्लिम समुदाय की तरफ से काम कर रहे हर्ष मंदर जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने एनएचआरसी के उन निष्कर्षों को सवाल उठाए हैं, जिनमें कहा गया है कि मुसलमानों के अपराध ने हिंदुओं को प्रेरित किया था और एनएचआरसी से रिपोर्ट के लिए वापस लेने और माफी की मांग की है।”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि "गृह मंत्रालय का कहना है कि 2015 में देश में सांप्रदायिक हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, लेकिन आंकड़ों में पिछले वर्ष की तुलना में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गयी। गृह मंत्रालय के अनुसार पिछले साल 644 सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 95 लोगों की मौत और 1,921 लोग घायल हुए थे।"
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