उत्तर प्रदेश की नजूल भूमि का मकड़जाल: चुनिंदा अमीरों और दबंगों के नाम ‘खुला पट्टा’!

1992 में कल्याण सिंह सरकार ने कुछ प्रभावशाली लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए ‘नजूल’ नियम बदले थे, अब योगी राज में वही अध्याय नए सिरे से खुला है 

उत्तर प्रदेश विधानसभा
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2 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने और उत्तर प्रदेश  की तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी सरकार की बर्खास्तगी से चार दिन पहले ही कल्याण सिंह सरकार ने राज्य की बेशकीमती ‘नजूल’ भूमि के निजीकरण का आदेश पारित किया था। इसके दो दशक से भी अधिक समय बाद बीते 7 मार्च 2024 को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने उस आदेश को पलटते हुए एक नया अध्यादेश जारी किया। दोनों फैसलों के बीच एक कहानी है, और वह यह कि राज्य की प्रमुख संपत्तियां किस तरह प्रभावशाली लोगों के कब्जे में चली जाती हैं और उनके लिए नियम-कानून किस हद तक ताक पर रख दिए जाते हैं।

‘नजूल’ भूमि का मतलब ब्रिटिश सेना द्वारा मुगल शासकों या जमींदारों से छीने गए भूखंडों से है। पूरी तरह राज्य के स्वामित्व वाली यह भूमि (या भूखंड) तब के औपनिवेशिक शासकों और बाद की सरकारों द्वारा व्यक्तियों या संगठनों को एक निश्चित अवधि के लिए 15 से 99 वर्षों के बीच कहीं भी पट्टे पर दे दिए जाते थे। हालांकि, पट्टेदारों को भूमि की प्रकृति बदलने की अनुमति नहीं थी, यानी वे न तो भूमि बेच सकते थे और न ही उस पर निर्माण कर सकते थे। 1992 के आदेश ने यथास्थिति बदल दी थी। इसके तहत पट्टेदार को शुल्क का भुगतान करके भूमि को ‘लीजहोल्ड’ से ‘फ्रीहोल्ड’ में परिवर्तित करने की अनुमति मिल गई थी, जिसके बाद सरकार से निजी संस्थाओं को स्वामित्व का हस्तांतरण संभव हो गया।

संशोधित प्रावधानों ने सरकार को उन पट्टेदारों से हस्तांतरण के लिए फ्रीहोल्ड शुल्क के रूप में बाजार दर का आधा हिस्सा लगाने की अनुमति दी जिन्होंने पट्टे की किसी भी शर्त का कभी कोई उल्लंघन नहीं किया था, हालांकि उल्लंघन करने वालों को बाजार दर का 100 फीसदी भुगतान करना था। ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों के लिए यह शुल्क (उल्लंघन न करने वाले के लिए) 75 प्रतिशत और (उल्लंघन करने वाले के लिए) 150 प्रतिशत  था। अपनी भूमि का व्यावसायिक उपयोग करने वालों के लिए यह शुल्क गैर-उल्लंघनकर्ता की स्थिति में 150 प्रतिशत और उल्लंघनकर्ताओं के लिए बाजार दर का 250 प्रतिशत निर्धारित किया गया था।

यह सब होने से सूबे के जो हजारों लोग लाभान्वित हुए, उनमें सबसे प्रमुख लोगों में से एक आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ) प्रमुख रहे राजेंद्र सिंह उर्फ ​​रज्जू भैया थे। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के पॉश सिविल लाइन्स इलाके में दो एकड़ में फैला भूखंड ‘के प्लॉट सिविल स्टेशन’ का पट्टा मूल रूप से रज्जू भैया के पिता और चार अन्य को दिया गया था। नवंबर 1958 में पट्टा समाप्त होने के बाद उस भूमि का 4,605 ​​वर्ग गज रज्जू भैया को हस्तांतरित कर दिया गया। रज्जू भैया ने कई बार इसके नवीनीकरण का आग्रह किया लेकिन कुछ तयशुदा शर्तों के उल्लंघन के कारण इलाहाबाद प्रशासन ने नवीनीकरण से इनकार कर दिया। इस भूखंड पर दो इमारतों- सरस्वती शिशु मंदिर और ज्वाला देवी इंटर कॉलेज का निर्माण किया गया था और दोनों आरएसएस की विद्या भारती द्वारा संचालित हैं। 1991 के आदेश के अनुसार, अक्तूबर 1998 में उन पर 7.89 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। 

तत्कालीन डीएम आलोक टंडन ने लिखा, ‘जुर्माना जमा करने के बाद, आपके नाम पर प्लॉट के सिविल स्टेशन (4,525 वर्ग गज) के लिए 19 नवंबर 1958 से 18 नवंबर 1988 तक के लिए एक नया पट्टा जारी किया जा सकता है जिसका हर 30 साल पर नवीनीकरण कराने की जरूरत होगी।


बहुजन समाज पार्टी में तोड़फोड़ कर मार्च 1998 में मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद कल्याण सिंह बचाव में आए। नए नियमों ने न सिर्फ उन सभी पट्टाधारकों पर लगाया गया जुर्माना माफ कर दिया गया, जिन्होंने पट्टे की शर्तों का उल्लंघन किया था; बल्कि उन्हें भारी छूट पर फ्रीहोल्ड अधिकार भी दे दिए। 1 दिसंबर 1998 को एक सरकारी आदेश के जरिए पट्टे की शर्तों के उल्लंघन पर दंड वाला प्रावधान तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की घोषणा हो गई।

1998 में नई नीति ने ‘नजूल’ भूमि पर फ्रीहोल्ड अधिकारों के लिए दो श्रेणियां बनाईं: आवासीय और वाणिज्यिक। कल्याण सिंह सरकार ने तय किया कि ऐसे अधिकारों के लिए सर्किल रेट (तय मूल्य जिसके नीचे कोई जमीन बेची और पंजीकृत नहीं की जा सकती) वही लागू होगा जो नई नीति बनने से सात साल पहले 1991 में लागू था। फ्रीहोल्ड अधिकार हासिल करने के लिए शुल्क आवासीय भूखंडों के मामले में सर्किल रेट का 40 प्रतिशत और वाणिज्यिक भूखंडों के लिए 60 प्रतिशत तय किया गया था। खास बात यह थी कि 1991 के बाद से सर्किल रेट खासे बढ़ चुके थे।

प्रयागराज रजिस्ट्री विभाग के दस्तावेज बताते हैं कि आदेश लागू होने के चार दिन बाद रज्जू भैया ने यूपी के पूर्व महाधिवक्ता वी.के.एस. चौधरी और उनके दो बेटों- रवींद्र सिंह और यतींद्र सिंह को प्लॉट के, सिविल स्टेशन के 1,784 वर्ग मीटर का फ्रीहोल्ड अधिकार हासिल करने के लिए अपना नामांकित व्यक्ति (नोमिनी) घोषित कर दिया जबकि उन्होंने स्वयं 1494.90 वर्ग मीटर के फ्रीहोल्ड अधिकार अपने नाम पर करने के लिए आवेदन किया था। इलाहाबाद जिला प्रशासन ने फ्रीहोल्ड लीज 30 नवंबर 1999 को निष्पादित कर दी जिसके छह दिन बाद, 6 दिसंबर 1999 को रज्जू भैया ने रजिस्ट्री कार्यालय में मात्र  3,36,341.35 रुपये जमाकर संपत्ति अपने नाम पर पंजीकृत करा ली। 

इस साल की शुरुआत में यूपी की बीजेपी सरकार द्वारा प्रख्यापित जिस अध्यादेश में ‘नजूल’ भूमि को फ्रीहोल्ड भूमि में बदलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया, उसमें यह भी कहा गया था कि हस्तांतरण के लंबित मामलों में जमा किया गया जुर्माना और रूपांतरण शुल्क ब्याज के साथ उन्हें वापस कर दिया जाएगा। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अध्यादेश को एक अधिनियम से बदलना चाहा। हालांकि सरकार द्वारा पेश किया गया उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रबंधन और उपयोग) विधेयक न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्ता पक्ष की भी कड़ी आपत्तियों के कारण राज्य विधानमंडल से पारित नहीं किया जा सका। विधानसभा से मंजूरी मिलने और विधान परिषद द्वारा इस पर बहस किए जाने के एक दिन बाद अंततः इसे आगे की परख  के लिए चयन समिति को भेज दिया गया।


इलाहाबाद (उत्तर) से कांग्रेस के पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह ने कहा कि यह विधेयक नजूल भूमि पर रहने वाले गरीब परिवारों और समुदायों के हितों के लिए हानिकारक है। ऐसे मामले में प्रभावशाली लोग आसानी से बच गए, लेकिन नया कानून लंबे समय से रहने वाले निवासियों को बेदखल कर देने का कारण बनेगा जिससे वैसे लोगों को काफी मुश्किलें आयेंगी जिनकी कई पीढ़ियों ने इस भूमि में निवेश किया है। पट्टों को हस्तांतरित करवाने के लिए समान्य लोग दर-दर भटकते रहते हैं और वे आज भी इंतजार कर रहे हैं जबकि अमीर और शक्तिशाली लोगों ने न सिर्फ अपने पट्टे फ्री-होल्ड भूमि में बदलवा लिए, बल्कि उन्हें जुर्माना राशि का भुगतान करने से भी छूट दी गई।

समाजवादी पार्टी के संदीप पटेल ने विधानसभा के पटल पर कहा, “यह भाजपा सरकार थी जो पहली बार 1992 में यूपी में पट्टाधारकों को फ्रीहोल्ड अधिकार देने की नीति लेकर आई थी। यह फिर से भाजपा सरकार ही थी जिसने ‘बड़े लोगों’ की मदद के लिए नियमों में बदलाव किया।” निस्संदेह, उनका इशारा रज्जू भैया की ओर था। 

2003 में अपनी मृत्यु से पहले रज्जू भैया ने ‘नजूल’ जमीन आरएसएस को दान कर दी थी। आज ‘प्लॉट के, सिविल स्टेशन’ तीन प्रमुख खंडों ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, आरएसएस कार्यालय और वी.के.एस. चौधरी के निवास के रूप में विभाजित है। मौजूदा समय में भूखंड के दूसरे हिस्से में स्थित चौधरी के आवास में रहने वाले (उनके रिश्तेदार) कुणाल रवि सिंह कहते हैं कि इस नीति से तो कई हजार अन्य लोगों को भी लाभ हुआ जिन्हें जमीन बेचने और निर्माण करने का फ्रीहोल्ड अधिकार मिल गया।

प्रयागराज में आरएसएस कार्यालय के कार्यालय प्रमुख बलराम प्रसाद इस सब पर बचाव करते हुए तर्क देते हैं कि यह संपत्ति किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक उद्देश्य के लिए है।

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