असहमति और विरोध को दबाने के लिए यूएपीए का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए : न्यायमूर्ति चंद्रचूड़
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि विरोध या असहमति को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालतों को नागरिकों को आजादी की रक्षा करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि विरोध या असहमति को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों को आजादी से वंचित करने के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सोमवार शाम भारत-अमेरिका कानूनी संबंधों पर भारत-अमेरिका संयुक्त ग्रीष्मकालीन सम्मेलन में अपने संबोधन में यह टिप्पणी की। उन्होंने जोर देकर कहा कि नागरिकों को परेशान करने और उनकी स्वतंत्रता को छीनने के लिए किसी भी कानून को लागू नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने रेखांकित किया कि एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता पर पहला काफी होता है और न्यायाधीशों को अपने निर्णय देते समय इस विषय में सचेत रहना चाहिए कि उनके दिए गए फैसलेों के बहुत गहरे प्रणालीगत प्रभाव हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने फैसलों में गहरे प्रणालीगत मुद्दों के प्रति हमेशा सचेत रहना चाहिए। भारत और अमेरिका, दुनिया के अलग- अलग कोने में हैं, लेकिन फिर भी एक गहरे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध साझा करते हैं।
ध्यान रहे कि जस्टिस चंद्रचूड़ का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद एक्टिविस्ट 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की मौत पर देश भर में गहरी नाराजगी जताई जा रही है। स्टेन स्वामी को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत एल्गर परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था। स्वास्थ्य के आधार पर वह जमानत की लड़ाई लड़ रहे थे कि इसी बीच मुंबई स्थित जेल में उनका निधन हो गया। इसके अलावा भी हाल में यूएपीए कानून के इस्तेमाल को लेकर कई मामले चर्चा में रहे हैं।
अभी हाल ही में करीब 17 महीने सलाखों के पीछे बिताने के बाद, असम के नेता अखिल गोगोई जेल से बाहर आए हैं। विवादास्पद नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर उनके खिलाफ एक मामले के सिलसिले में उन्हें यूएपीए के तहत जेल में डाल दिया गया था। इसके अतिरिक्त हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट ने छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दी है। उन्हें फरवरी 2020 की दिल्ली हिंसा के संबंध में यूएपीए के तहत बुक (प्राथमिकी) किया गया था। सरकार और पुलिस द्वारा यूएपीए के अंधाधुंध इस्तेमाल के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए अदालत ने उन्हें जमानत दी है।
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