यूपी के मदरसों और मुस्लिम इलाकों में गांधी जी को दी गई श्रद्धांजलि, उलेमाओं से बापू के रिश्तों को किया गया याद
मौलाना अरशद कासमी ने बताया कि गांधी जी के देवबंद के उलेमाओं से बहुत अच्छे रिश्ते थे। मौलाना हुसैन अहमद मदनी और बापू में विचारों की समानता थी और अंग्रेजों के खिलाफ मिलकर लड़ रहे थे। गांधी जी हमेशा आजादी की लड़ाई में उलेमाओं की कुर्बानियों की सराहना करते थे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई मदरसों और मुस्लिम संगठनों ने आज महात्मा गांधी को खिराजे अक़ीदत पेश करते हुए राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को याद किया। मदरसों में खासकर दारुल उलूम देवबंद और महात्मा गांधी के गहरे रिश्तों की चर्चा की गई। इस दौरान गांधीजी द्वारा चलाए अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनो में मदरसों की भूमिकाओं पर भी बात हुई। देवबंद दारुल में भी उलेमाओं ने गांधी जी को याद करते हुए कहा कि गांधी जी के किरदार के दम पर और उनके सभी समाज पर असर के चलते ही भारत के लोग स्वतंत्र हो पाए थे।
कई मुस्लिम संगठनों ने भी कार्यक्रम आयोजित कर गांधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुजफ्फरनगर में पैगाम-ए-इंसानियत नाम की संस्था ने कार्यक्रम आयोजित कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण किया। सहारनपुर में मौलाना फरीद मजहिरी ने महात्मा गांधी का स्मरण करते हुए कहा कि उनका उलेमाओं से बेहद नजदीक का रिश्ता था और मुंबई अधिवेशन में दारुल उलूम के प्रतिष्ठित उलेमा मौलाना महमूदल हसन ने ही उन्हें महात्मा सिम्त इंसान बताया था। इस अधिवेशन में लाखों लोगों के सामने मौलाना महमुदल हसन ने कहा था कि गांधी जी के आचार-विचार और कार्यशैली महात्मा जैसी है। यह सामान्य से बहुत आलातरीन शख्सियत हैं। इन्हें महात्मा कहा जाना चाहिए। यह बात जमीयत उलेमा हिंद से जुड़े साहित्य में में भी मिलती है।
मुजफ्फरनगर के इस्लामिया जामिया मदरसे में भी आज गांधी जी को याद किया गया। यहां मोहतमिम मौलाना अरशद कासमी ने गांधी जी की जिंदगी पर रोशनी डालते हुए रेशमी रुमाल तहरीक में उनके समर्थन और गांधी जी द्वारा लाए गए असहयोग आंदोलन में दारुल उलूम देवबंद के समर्थन पर रोशनी डाली। मौलाना अरशद कासमी ने बताया कि असहयोग आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी सहारनपुर आए थे तो महिलाओं ने भावुक होकर अपने गहने भी उन्हें दान कर दिये थे। गांधी जी के देवबंद के उलेमाओं से बहुत अच्छे रिश्ते थे। मौलाना हुसैन अहमद मदनी और गांधी जी मे विचारों की समानता थी और अंग्रेजों के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ रहे थे। गांधी जी अक्सर आज़ादी के खिलाफ लड़ाई में मदरसों के योगदान की तारीफ करते थे। वो हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। गांधी जी आज़ादी की लड़ाई में उलेमाओं की कुर्बानियों की सराहना करते थे।
मुजफ्फरनगर के रहमानिया इलाके में भी आज मुसलमानों की सामाजिक संस्था पैग़ाम-ए-इंसानियत ने महात्मा गांधी को खिराजे अक़ीदत पेश की। यहां पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी याद किया गया, जिनका भी आज ही जन्मदिन है। यहां संस्था के अध्यक्ष आसिफ राही ने गांधी जी की देश की आजादी की लडाई में योगदान पर प्रकाश डाला और बताया कि क्यों वो दोनों तरफ की कट्टरवादी ताकतों की आंख में खटकते रहे! आसिफ राही ने कहा कि " इस देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वास्तव में एक देश के बड़े-बुजुर्ग की भूमिका में थे जो बिना किसी भेदभाव के सभी के साथ प्रेमभाव रखते थे। देश उनकी कमी आज तक महसूस कर रहा है। उनके प्रेम भाव के चलते ही उन्हें बापू कहकर पुकारा जाता है।
152वीं जयंती पर गांधी जी को याद करते हुए सज्जाद एडवोकेट ने बताया कि महात्मा गांधी सहारनपुर के खेड़ा मुग़ल गांव में आए थे, मगर वो कभी दारुल उलूम देवबंद नहीं आए, जबकि रेशमी रुमाल तहरीक के जनक मौलाना महमुदुल हसन से वो अक्सर इसकी इच्छा जताते रहते थे। यही नहीं देवबंद दारुल उलूम से महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों का पुरजोर समर्थन मिलता था। जैसे बताया जाता है कि दारुल उलूम के सीनियर उस्ताद अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी ने पत्र लिखकर गांधी जी के नमक आंदोलन का समर्थन किया था। इस पत्र में लिखा हुआ था कि नमक, घास और पानी पर टैक्स लगाने वाली सरकार का हम विरोध करते हैं और आपके आंदोलन के समर्थन में आपके साथ हैं ।
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