आज 74वें स्वतंत्रता दिवस की धूम, पर इस आजादी के नायकों को भूले हम, बुरे हाल में जी रहे हैं वंशज
लंदन जाकर जलियावालां बाग नरसंहार का बदला लेने वाले उधम सिंह के वंशज पंजाब के संगरूर जिले में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। वहीं तात्या टोपे के पड़पोते विनायक राव टोपे को कानपुर के बिठूर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते देखा गया।
देश भर में आज 74वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जा रहा है। सुबह-सुबह प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से देश का शौर्यगान कर इस जश्न की शुरुआत की। लेकिन इन तमाम उत्सव और उल्लास के बीच हम आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के वंशजों को भूल गए हैं। आजादी के कई दिवानों के वंशज इतने साल बाद आज भी दयनीय स्थिति में रह रहे हैं।
देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के कुछ वंशज जहां दैनिक मजदूरी के काम में लगे हैं, वहीं कुछ तो सड़कों पर भीख मांगने तक को मजबूर हैं। मिसाल के तौर पर, शहीद उधम सिंह के भांजे के बेटे जीत सिंह को पंजाब के संगरूर जिले में एक निर्माण स्थल के पास देखा गया। जीत सिंह वहां पर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं।
जलियावालां बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए 1940 में उधम सिंह ने लंदन जाकर पंजाब के तत्कालीन उपराज्यपाल और नरसंहार को अंजाम देने वाले माइकल ओ'डायर को मौत के घाट उतार दिया था। लेकिन पंजाब में बाद की सरकारों ने शहीद उधम सिंह के परिवार की कोई सुध नहीं ली।
इसी तरह 1857 के विद्रोह के नायकों में से एक तात्या टोपे के वंशज कानपुर के बिठूर में संघर्ष कर रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के 73 से अधिक विस्मृत (भुला दिए गए) नायकों के वंशजों पर चार किताबें लिखने वाले पूर्व पत्रकार शिवनाथ झा का कहना है, "मैंने तात्या टोपे के पड़पोते विनायक राव टोपे को बिठूर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हुए देखा।"
अपनी कोशिशों के दौरान शिवनाथ झा ने शहीद सत्येंद्र नाथ के पड़पोते की पत्नी अनिता बोस को भी खोज निकाला और उन्होंने देखा कि मिदनापुर में अनिता की हालत भी दयनीय बनी हुई है।सत्येंद्र नाथ और खुदीराम बोस अलीपुर बम कांड में शामिल थे। दोनों को 1908 में फांसी दी गई थी। अंग्रेजों द्वारा दी गई फांसी के वक्त सत्येंद्र नाथ 26 वर्ष के थे और खुदीराम महज 18 साल के थे।
अपने दैनिक जीवन में संघर्ष कर रहे स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के वंशजों की मदद के लिए शिवनाथ झा हमेशा प्रयासरत रहते हैं। उन्होंने विनायक राव टोपे और जीत सिंह को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए पांच लाख रुपये भी एकत्र किए थे। शिवनाथ झा ने कहा, "मैंने सत्येंद्र नाथ के अपाहिज पड़पोते और उनकी पत्नी अनिता बोस को भी खोज निकाला, जो मिदनापुर में लकवाग्रस्त हालत में थीं। मैंने उनसे बात की, वह बोलने में सक्षम थीं। पूर्व पत्रकार झा ने कहा कि अब वह इस बुजुर्ग दंपति के पुनर्वास की कोशिश कर रहे हैं।
शिवनाथ झा और उनके दोस्त एक एनजीओ चलाते हैं और स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन शैली का विस्तार से वर्णन करते हुए किताबें प्रकाशित करते हैं। उनका संगठन 800 पृष्ठों की एक नई किताब '1857-1947 के शहीदों के वंशज' को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष प्रस्तुत करने का विचार कर रहा है।
इस पुस्तक में झांसी की रानी, जसपाल सिंह (बाबू कुंवर सिंह कमांडर-इन-चीफ), वाजिद अली शाह, मंगल पांडे, जबरदस्त खान, तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर, दुर्गा सिंह, सुरेंद्र साई, उधम सिंह, अशफाकउल्ला खान, खुदीराम बोस, भगत सिंह, सत्येंद्र नाथ (खुदीराम बोस के गुरु), चंद्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, राज गुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, जतिंद्रनाथ मुखर्जी जैसे अन्य कई नायकों के वंशजों का उल्लेख किया गया है।
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