स्पेशल फेस्टिवल ट्रेनें भी और बर्थ भी हैं, तो फिर स्टेशनों पर यात्रियों की अपार भीड़ क्यों?

इंटरनेट पर खोजिए तो पता नहीं चलेगा कि इन ट्रेनों के टिकट कहां से मिलेंगे और भीड़ के कारण टिकट खिड़की से ले नहीं सकते। आखिर गरीब कहां जाए। परेशान यात्री कहते हैं कि ये समस्या सरकार की खड़ी हुई है जिसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है।

दीपावली और छठ पर घर जाने वाले गरीबों के लिए कोई सुविधा नहीं, मुसीबतें हजार
दीपावली और छठ पर घर जाने वाले गरीबों के लिए कोई सुविधा नहीं, मुसीबतें हजार

हमें छठ पर बनारस जाना था लेकिन लगता नहीं कि जा पाऊंगा। कोई तरीका नहीं दिख रहा है। देख रहे हैं जब स्टेशन के बाहर इतनी भीड़ और मारामारी मची है, तो समझ लीजिए कि प्लेटफार्म और ट्रेन के अंदर कोई कैसे घुस पाएगा। हमने तो बस से भी जाने की सोची लेकिन वहां भी तिल रखने की जगह नहीं है। बताइए, क्या करें। साल भर का त्योहार है। सोचा था परिवार के साथ खुशियां बांटेंगे लेकिन कुछ हो नहीं सकता। इसलिए वापस जा रहा हूं। 

ऐसा कहना है आनंद विहार से लौट रहे खोड़ा में किराये के कमरे में रहने वाले रोशनलाल का जो दीवापली पर ही घर जाना चाहते थे। टिकट न मिल पाने के कारण नहीं जा सके। छठ पर भी उनका जाना संभव नहीं हो पाया क्योंकि ट्रेन का टिकट नहीं मिल पाया। तत्काल के लिए तीन दिन नेट पर लगा रहा, टिकट नहीं मिला। कभी नेट डाउन तो कभी सर्वर। रोशन कहते हैं कि अगर टिकट मिल भी गया होता तब भी जाना मुश्किल ही था। वह बताते हैं कि उनके एक रिश्तेदार ने काफी पहले स्लीपर का टिकट ले लिया था। गए भी लेकिन स्लीपर में इतनी भीड़ थी कि सांस ले पाना तक मुश्किल था। एसी कोचों का भी करीब-करीब इतना ही बुरा हाल था।

कमोबेश ऐसी ही कहानी नरेश की भी रही। उन्हें पटना जाना था। कहते हैं, कैसे जाएं। नरेश बताते हैं कि काफी पहले से सभी ट्रेनों में कोई कन्फर्म टिकट नहीं। सोचा था तत्काल में कोशिश करेंगे लेकिन उसमें भी संभव नहीं हो पाया। बहुत परेशान दिख रहे नरेश गुस्से में कहते हैं कि क्या सरकार को इतना भी नहीं पता होता कि दीपावली और छठ पर कितने लोग और कैसे अपने घरों को जाते हैं। इसके लिए पहले से पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए जाते। पता चलता है कि महीना-पंद्रह दिन पहले बताया जाएगा कि स्पेशन ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इंटरनेट पर खोजिए तो पता नहीं चलेगा कि इन ट्रेनों के टिकट कहां से मिलेंगे और भीड़ के कारण टिकट खिड़की से ले नहीं सकते। आखिर गरीब कहां जाए। वह कहते हैं कि ये समस्या सरकार की खड़ी हुई है जिसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। बताइए, बस तक नहीं मिल पा रही है।


जिन्हें इस सीजन में यात्रा नहीं करनी है, उन्हें पता नहीं लगेगा कि हाल कितना बुरा है। आनंद विहार रेलवे स्टेशन जाने पर समझ में आएगा कि हालात कितने बुरे हैं। कहने को रेलवे की ओर से कई बंदोबस्त किए गए हैं लेकिन उनमें इनके अपने गंतव्य तक पहुंच जाने के लिए शायद कुछ भी नहीं है। सब कुछ भीड़ को नियंत्रित करने के लिए किया गया है। पंडाल लगाए गए हैं, सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं, सूचना डिस्प्ले और भोजन आदि के काउंटर हैं। केवल ट्रेन और टिकट नहीं हैं। आनंद विहार और नई दिल्ली रेलवे स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म टिकटों की बिक्री भी 18 नवंबर तक बंद कर दी गई है।

एक जानकारी के मुताबिक, रेलवे अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली से अलग-अलग जगहों के लिए फेस्टिवल स्पेशन ट्रेनें चलाकर पांच लाख से ज्यादा अतिरिक्त सीटें उपलब्ध कराई गई हैं। पूरे देश में त्योहारों पर 1,700 स्पेशन ट्रेनें चलाकर 26 लाख के करीब अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की गई है। सहरसा जाने की कोशिश में आनंद विहार आए घनश्याम महतो कहते हैं कि रेलवे की ओर से कुछ भी कहा जाता रहता है। हकीकत में यह सब कहां है। मुझे तो नहीं पता कि ये स्पेशल ट्रेनें कहां हैं और इनके लिए टिकट कैसे मिल सकेगा। अगर रेलवे को यात्रियों की चिंता होती, तो यह जो अपार भीड़ यहां दिख रही है, वह क्यों होती। असल में रेलवे और सरकार को छठ यात्रियों की चिंता नहीं है। उन्हें बस अपना प्रचार चाहिए।


इसी बीच, घनश्याम के ही एक साथी दिनेश्वर राय झल्लाते हुए कहते हैं कि वंदे भारत चलाएंगे, बुलेट ट्रेन चलाएंगे, तेजस चलाएंगे। गरीबों के लिए इन त्योहारों पर एक्सप्रेस ही चला देते। वे त्योहारों पर किसी तरह घर तो पहुंच जाते। वह भी नहीं हो पा रहा है। दीवाली और छठ पर तो घर पहुंच पाना साल-दर-साल बेहद मुश्किल होता जा रहा है। दिनेश्वर तो यह भी कहते हैं कि इस समय अगर किसी के घर या रिश्तेदारी में कोई आकस्मिक घटना हो जाए, तो वह कैसे उसमें शामिल हो पाएगा। इस कठिन सवाल का जवाब भी वह खुद ही देते हैं कि लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। उनकी समस्याओं का समाधान करने वाला कोई नहीं है।

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