ऐसा रहा 2018: मोदी सरकार की दखलंदाज़ी और दो अफसरों की आपसी जंग से धूल में मिल गई सीबीआई की प्रतिष्ठा

गुजरता वर्ष 2018 इस बात के लिए भी याद किया जाएगा जब 77 साल के इतिहास में इस साल पहली बार देश की शीर्षस्थ जांच एजेंसी सीबीआई के दो अधिकारियों की आपसी जंग ने इसकी साख पर बट्टा लगा दिया। साथ ही इस वर्ष को ऐसे भी याद किया जाएगा जब केंद्र की मोदी सरकार ने आधी रात में इसएजेंसी की स्वतंत्रता के पर कतर दिए।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय वर्ष 2018 में कुछ ऐसे मामलों की जांच को लेकर सुर्खियों में रहे जो राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील थे। साथ ही लगभग पूरे साल सीबीआई बैंकों में हुई धोखाधड़ी के मामलों की जांच में लगी रही।

इसकी शुरुआत इस साल 31 जनवरी से हुई जब मुंबई के ब्रैडी हाउस स्थित पंजाब नेशनल बैंक की शाखा में लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग एंड फॉरेन लेटर्स ऑफ क्रेडिट जारी करके बैंक को 13,500 करोड़ रुपये की चपत लगाने का मामला सामने आया। इस मामले में हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चोकसी के खिलाफ जांच शुरू हुई।

सीबीआई की जांच शुरू होने से पहले ही दोनों मोदी और चोकसी दोनों ही देश छोड़कर भाग चुके थे। सीबीआई और ईडी ने उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाया। शुरू में चोकसी के एंटिगुआ में होने का पता चला।

इस सबके बीच सीबीआई ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले में ब्रिटिश कारोबारी क्रिश्चियन मिशेल का संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण कराया। लेकिन उसे किन शर्तों पर भारत लाया गया और वह किसकी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है, इसे लेकर नए-नए खुलासे हो रहे हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि उसके प्रत्यर्पण की पटकथा मोदी सरकार ने लिखी थी, और वह वही सब बोल रहा है जिसका इस्तेमाल पीएम मोदी और बीजेपी राजनीतिक फायदे के लिए करना चाहती है।

साथ ही सीबीआई के खाते में एक आधी-अधूरी कामयाबी भी जुड़ी जब ब्रिटेन की एक अदालत ने 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के बैंक कर्ज के साथ फरार उद्योगपति विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश दिया। हालांकि यह सिर्फ अभी आदेश है और विजय माल्या के पास इस आदेस को चुनौती देने का विकल्प भी है। विजय माल्या को लेकर सीबीआई की लापरवाही भी सामने आई, जब उसने विजय माल्या के खिलाफ जारी लुक आउट नोटिस को किसी बड़े आदेश के तहत वापस ले लिया था, जिससे माल्या को देश से बाहर जाने का मौका मिला।

लेकिन ये संदिग्ध और प्रश्नवाचक सफलताएं सीबीआई मुख्यालय में जारी उस जंग के सामने गौण नजर आती हैं, जिसका पटाक्षेप आधी रात को केंद्र सरकार ने एजेंसी की स्वतंत्रता खत्म करते हुए किया। सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके नंबर दो राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग ने सीबीआई की साख पर ऐसा बट्टा लगाया, जिससे सीबीआई की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।

इन दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिसके बाद सरकार को दोनों अधिकारियों को अवकाश पर भेजना पड़ा। ऐसी घटना सीबीआई के 1941 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार हुई। इसके बाद केंद्र ने सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को एजेंसी का अंतरिम निदेशक बना दिया।

सीबीआई ने मांस निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ एक मामले को रफा-दफा करने के लिए तीन करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के कथित आरोप में अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया। इसके बाद अस्थाना ने एक दर्जन से अधिक मामलों में अपने बॉस आलोक वर्मा के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोप लगाए।

सीबीआई के भीतर की यह लड़ाई राजनीतिक मसला बन गई और विपक्षी दल संस्थान को दूषित करने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उंगली उठाने लगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सीबीआई को अपने ही भीतर की जंग से पतनोन्मुख संस्थान बताते हुए प्रधानमंत्री पर निशाना साधा।

सीबीआई इस समय विश्वसनीयता के सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। अंतरिम निदेशक नीतिगत फैसले लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं, जिससे अधिकांश मामले प्रभावित हुए हैं। सीबीआई के एक पूर्व निदेशक ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि बखेड़े से एजेंसी के काम-काज पर गहरा असर पड़ा है।

उन्होंने कहा, "सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच के झगड़े से वास्तव में एजेंसी प्रभावित हुई है। लेकिन यह क्षणिक है। इससे एजेंसी की कार्यप्रणाली पर ज्यादा लंबा असर नहीं होगा क्योंकि यह काफी पेशेवर संगठन है। जब तक नए निदेशक पदभार ग्रहण नहीं करेंगे तब तक ऐसे ही काम चलेगा। एजेंसी दो धड़ों में बंट गयई है। एक धड़ा आलोक वर्मा के समर्थन में है, तो दूसरा राकेश अस्थाना के। कुछ कड़वाहट है, लेकिन काम चल रहा है।"

(आईएएनएस इनपुट के साथ)

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