डरा रहा भुखमरी का भूत, गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे 22.2 करोड़ लोग

दुनिया आज भुखमरी की गंभीर समस्या से जूझ रही है और अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इसकी गंभीरता और इससे होने वाली मौतों को कुछ कम किया जा सकता है?

फोटोः IANS
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भारत डोगरा

अगर भुखमरी का भूत आज पूरी दुनिया को डरा रहा है तो इसके लिए दुनियाभर के देशों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। यह अचानक हमारे सामने नहीं आ खड़ा हुआ है। इसके लिए तमाम चेतावनियां मिल रही थीं जिसे नजरअंदाज किया गया।

मई, 2022 में, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्य विशेषज्ञ समूहों द्वारा तैयार की गई खाद्य संकट पर वार्षिक वैश्विक रिपोर्ट (जीआरएफसी 2022) ने दुनिया में भुखमरी का जो दृश्य सामने रखा, वह डराने वाला था। इसमें सामूहिक भुखमरी और इससे जुड़ी मौतों के बारे में भी वस्तुस्थिति सामने आई। उसके कुछ ही माह बाद सितंबर में खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और विश्व खाद्य कार्यक्रम की समीक्षा आई जो बताती है कि इन महीनों के दौरान इस मानवीय संकट के प्रति दुनिया की प्रतिक्रिया बेहद सुस्त रही जिसका नतीजा यह हुआ कि हालात पहले से खराब हो गए।

पिछली रिपोर्ट तैयार करने में एफएओ और विश्व खाद्य कार्यक्रम की भी भूमिका थी। अक्तूबर, 2022 से जनवरी, 2023 के लिए पेश आकलन में 19 ऐसे क्षेत्रों की पहचान की गई है जो भुखमरी के लिहाज से हॉटस्पॉट कहे जा सकते हैं। हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जब भुखमरी की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 53 देशों में 22.2 करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और उन्हें सहायता की तत्काल जरूरत है। 37 देशों में 4.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास खाना इतना कम है कि उनके गंभीर रूप से कुपोषित होने और इससे मौत की स्थिति में पहुंच जाने का खतरा है। संकट के पैमाने पर यह स्टेज-4 की स्थिति है। एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, स्टेज 5 (भुखमरी और मौत की तबाही) की स्थिति में कम-से-कम 9.7 लाख लोग हैं। हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए छह साल पहले की स्थिति से तुलना करें तो तब से इस श्रेणी में आने वाले लोगों की संख्या में 10 गुना इजाफा हुआ है।


इस रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की गई है कि भुखमरी की समस्या से सबसे बुरी तरह प्रभावित लाखों लोगों तक पहुंचना शायद संभव भी न हो पाए क्योंकि वे संघर्ष क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। लोकिन अगर मानवीय खाद्य सहायता पर पूरा जोर दिया जाए तो अन्य क्षेत्रों में संकट को कम करना अब भी संभव है। हालांकि हताश करने वाली बात यह है कि ऐसे समय जब मानवीय सहायता की जरूरत पहले से कहीं अधिक है, इसके स्तर में गिरावट ही दर्ज की गई है। यहां यह भी गौर करने की बात है कि रिपोर्ट में उन क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है जहां समस्या से निपटना स्थानीय क्षमता और संसाधनों के बूते संभव नहीं दिखता।

स्थिति बिगड़ती जा रही है और भुखमरी प्रभावितों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है: 2016 के पहले जीआरएफसी में स्टेज-3 में 10.8 करोड़ लोगों के होने अनुमान था जो कि छह वर्षों में दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 22.2 करोड़ हो गया है। 2021 के अनुमान (19.3 करोड़) से अब तक लगभग 2.9 करोड़ और लोग स्टेज-3 या इससे बुरी श्रेणियों में बढ़ गए हैं। 2021 में 36 देशों के लगभग 4 करोड़ लोगों को भूख के मामले में 'आपातकाल' (स्टेज-4 या उससे ऊपर) का सामना करना पड़ा; जबकि 37 देशों में अब यह तादाद बढ़कर 4.5 करोड़ हो गई है। अकेले पड़ोसी अफगानिस्तान में खाद्य असुरक्षा आपातकाल (स्टेज-4 और उससे ऊपर) से 60 लाख लोग प्रभावित हैं। 2016 से भुखमरी पर जितनी भी रिपोर्ट तैयार की गई, उनमें 39 देश/क्षेत्र हर में हैं। इन 39 देशों में इस स्तर के प्रभावित लोगों की संख्या 2016 में 9.4 करोड़ थी जो 2021 में बढ़कर 18 करोड़ हो गई।

भुखमरी वाले 19 हॉटस्पॉट ज्यादातर अफ्रीका में हैं-

सोमालिया, इथियोपिया, नाइजीरिया, कांगो, मेडागास्कर, जिम्बाब्वे और सूडान। बाकी अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, पाकिस्तान और श्रीलंका (एशिया) और हैती, होंडुरास और ग्वाटेमाला (अमेरिका) हैं। इन सवार्धिक बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के अलावा, पारंपरिक रूप से अपनी जरूरत से ज्यादा उपजाने वाले यूक्रेन और म्यांमार जैसे देश भी हैं जिन्हें उन क्षेत्रों में शुमार किया गया है जो तेजी से बिगड़ते हालात के कारण भोजन की कमी से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

यह तो हुई स्थिति की भयावहता। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जा सकता है जिससे संकट को कुछ कम किया जा सके और भुखमरी एवं भुखमरी से होने वाली मौतों की संभावित संख्या कुछ कम की जा सके? संयुक्त राष्ट्र और इसकी एजेंसियों जैसे विश्व खाद्य कार्यक्रम, अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस, और कुछ देशों की सरकारों या स्थानीय एजेंसियों की बदौलत ज्यादातर क्षेत्रों में कुछ-न-कुछ राहत उपलब्ध है। संकटग्रस्त क्षेत्रों में भोजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए, सभी ऐसे देशों जिनके पास ज्यादा खाद्य सामग्री है, उन्हें प्रभावित देशों को मुफ्त या फिर रियायती भोजन की आपूर्ति को प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन इसे प्रभावित देशों में जीएम और अन्य खतरनाक खाद्य पदार्थों को डंप करने के मौके के तौर पर नहीं लेना चाहिए, जैसा कि हाल ही में केन्या में देखने को मिला।


चूंकि इन त्रासदियों के पीछे जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारक है, जैसा कि कई देशों में अभूतपूर्व सूखे तो कुछ में असाधारण विनाशकारी बाढ़  और तमाम दूसरी आपदाओं के रूप में देखने को मिली हैं, आपातकाल व्यवस्था के तहत नवगठित 'हानि और क्षति कोष' से 2-5 अरब डॉलर की सहायता राशि की व्यवस्था की जा सकती है।

हालांकि खाद्य संकट को बढ़ाने वाले संघर्षों के स्थायी समाधान की उम्मीद करना व्यावहारिक नहीं, लेकिन अगर अस्थायी संघर्ष विराम भी हो सके तो इससे भुखमरी की आपदा से निपटने में काफी मदद मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र को इस मामले पर विचार करना चाहिए। इससे विभिन्न संघर्ष-ग्रस्त भुखमरी वाले क्षेत्रों और देशों की सहायता करने के प्रयासों और संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। प्रभावित लोगों तक औरों की पहुंच हो सकेगी और उस स्थिति में उन तक भोजन और चिकित्सा सहायता पहुंच सकेगी।

भारत डोगरा कैंपेन टु सेव अर्थ के मानद संयोजक हैं।

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